बिहार संवादी: अभिनेता पंकज त्रिपाठी के आंसुओं ने किया पहला 'संवाद'
पटना के होटल मौर्या में बिहार संवादी की औपचारिक घोषणा अभिनेता पंकज त्रिपाठी से संवाद के साथ हुई। इसी होटल में पंकज कभी वेटर थे। पुरानी यादों ने उन्हें भावुक कर दिया।
By Edited By: Published: Sat, 21 Apr 2018 01:59 AM (IST)Updated: Sun, 22 Apr 2018 05:19 PM (IST)
style="text-align: justify;">पटना [कुमार रजत]। मंच बिहार संवादी की औपचारिक घोषणा का था और पहला संवाद अभिनेता पंकज त्रिपाठी के आंसुओं ने किया। जिस होटल मौर्य की रसोई में सालों पहले पंकज काम करते थे, उसी होटल में जब दैनिक जागरण के सीनियर एक्जीक्यूटिव एडिटर प्रशांत मिश्र ने उन्हें नागरिक सम्मान से नवा़जा तो आंखों से आंसू छलक पड़े। जिस शॉल को ओढ़ाकर उन्हें सम्मान दिया गया, उसी से आंखें पोछीं।
पंकज ने गौर से प्रशस्ति पत्र को देखा। छलकती आंखों से माइक तक आए। हॉल में बैठे लोगों में अपनों को देखकर चहके। बोले- 'का बोलीं हम..ऋषिकेश भइया बैठे हैं..रत्ना दीदी बैठी हैं..जेपी भाई बैठे हैं..।' फिर हॉल की उस तरफ देखा जहां मेज पर खाना लगा था और वेटर खड़े थे। एक वेटर की तरफ हाथ का इशारा करते हुए बोले- 'वहां हारुण खड़े हैं.. हमारे साथ काम करते थे इ लोग।'
भावुकता बढ़ी तो हलक सूखने लगा। बोले- 'जरा सा पानी पी लूं पहले..।' आगे बढ़कर बोतल से पानी की दो घूंट पी फिर माइक तक आए। कंठ के साथ पंकज भी अंदर तक भीग गए थे। कहने लगे- 'हम तो भाई इसी होटल में काम करते थे। पिछली गेट से आते थे और आठ घंटे की नौकरी करके चले जाते थे। जब पता चला कि जागरण की ओर से सम्मान होगा, और होटल मौर्या में होगा तो धन्य हो गए।'
आदमी जब अपनों के बीच होता है..तो जुबान खुद-ब-खुद अपनी हो जाती है। पंकज त्रिपाठी के साथ भी ऐसा ही हुआ। बोलते-बोलते भोजपुरी बोलने लगे। कहा- 'पिछले 15 साल से हम बिहार से बाहर बानी..मगर बिहार हमर अंदर से नाहि निकलल..' तालियां बजीं तो पंकज ने खुद को टोका- 'अरे, यार हम भोजपुरी में काहे बोल रहे हैं।'
पंकज ने सम्मान के लिए दैनिक जागरण को धन्यवाद दिया। कहा, 'हम प्रयास करते रहेंगे कि आगे भी यूं ही अच्छा करते रहे। अभिनेता हूं आदत है, अक्सर दूसरे लोगों की लिखी हुई लाइनें बोलने की तो अपने पास ज्यादा मसाला है नहीं। शुक्रिया।' तालियां बजती रहीं, उस हीरो के लिए जो अपना था, अपनों के बीच था।
पत्नी बोलीं, अभी और आगे चलना है
कार्यक्रम में पंकज त्रिपाठी की पत्नी मृदुला भी आई थीं। उन्होंने कहा कि सुबह से पंकज के पुराने दोस्तों से मिल रही हूं। होटल की रसोई में भी गईं जहां पंकज काम करते थे। बहुत लंबा सफर रहा है। हमलोग बहुत दूर साथ चले हैं अभी और आगे चलना है।
हर साल होगा बिहार संवादी
बिहार की स्थानीय प्रतिभा को राष्ट्रीय मंच देने का प्रतिफल है- बिहार संवादी। यह कारवां चला है, तो चलता रहेगा। हर साल दैनिक जागरण की ओर से बिहार संवादी का आयोजन होगा। दैनिक जागरण के एक्जीक्यूटिव एडीटर अनंत विजय की इस घोषणा का राजधानी के साहित्यकारों ने तालियों की गड़गड़ाहट से स्वागत किया। उन्होंने दैनिक जागरण को पटना का नंबर वन अखबार बनाने के लिए भी धन्यवाद दिया।
अनंत विजय ने कहा कि बिहार संवादी बिहारीपन का उत्सव भी है। नई प्रतिभाओं को राष्ट्रीय फलक तक पहुंचाना भी इसका मकसद है। जब बिहार संवादी में शामिल साहित्यकारों की बात सात करोड़ पाठकों तक पहुंचेगी तो कितनी बड़ी बात होगी। उम्मीद है, हिंदी यहां से और मजबूत होकर जाएगी।
पंकज ने गौर से प्रशस्ति पत्र को देखा। छलकती आंखों से माइक तक आए। हॉल में बैठे लोगों में अपनों को देखकर चहके। बोले- 'का बोलीं हम..ऋषिकेश भइया बैठे हैं..रत्ना दीदी बैठी हैं..जेपी भाई बैठे हैं..।' फिर हॉल की उस तरफ देखा जहां मेज पर खाना लगा था और वेटर खड़े थे। एक वेटर की तरफ हाथ का इशारा करते हुए बोले- 'वहां हारुण खड़े हैं.. हमारे साथ काम करते थे इ लोग।'
भावुकता बढ़ी तो हलक सूखने लगा। बोले- 'जरा सा पानी पी लूं पहले..।' आगे बढ़कर बोतल से पानी की दो घूंट पी फिर माइक तक आए। कंठ के साथ पंकज भी अंदर तक भीग गए थे। कहने लगे- 'हम तो भाई इसी होटल में काम करते थे। पिछली गेट से आते थे और आठ घंटे की नौकरी करके चले जाते थे। जब पता चला कि जागरण की ओर से सम्मान होगा, और होटल मौर्या में होगा तो धन्य हो गए।'
आदमी जब अपनों के बीच होता है..तो जुबान खुद-ब-खुद अपनी हो जाती है। पंकज त्रिपाठी के साथ भी ऐसा ही हुआ। बोलते-बोलते भोजपुरी बोलने लगे। कहा- 'पिछले 15 साल से हम बिहार से बाहर बानी..मगर बिहार हमर अंदर से नाहि निकलल..' तालियां बजीं तो पंकज ने खुद को टोका- 'अरे, यार हम भोजपुरी में काहे बोल रहे हैं।'
पंकज ने सम्मान के लिए दैनिक जागरण को धन्यवाद दिया। कहा, 'हम प्रयास करते रहेंगे कि आगे भी यूं ही अच्छा करते रहे। अभिनेता हूं आदत है, अक्सर दूसरे लोगों की लिखी हुई लाइनें बोलने की तो अपने पास ज्यादा मसाला है नहीं। शुक्रिया।' तालियां बजती रहीं, उस हीरो के लिए जो अपना था, अपनों के बीच था।
पत्नी बोलीं, अभी और आगे चलना है
कार्यक्रम में पंकज त्रिपाठी की पत्नी मृदुला भी आई थीं। उन्होंने कहा कि सुबह से पंकज के पुराने दोस्तों से मिल रही हूं। होटल की रसोई में भी गईं जहां पंकज काम करते थे। बहुत लंबा सफर रहा है। हमलोग बहुत दूर साथ चले हैं अभी और आगे चलना है।
हर साल होगा बिहार संवादी
बिहार की स्थानीय प्रतिभा को राष्ट्रीय मंच देने का प्रतिफल है- बिहार संवादी। यह कारवां चला है, तो चलता रहेगा। हर साल दैनिक जागरण की ओर से बिहार संवादी का आयोजन होगा। दैनिक जागरण के एक्जीक्यूटिव एडीटर अनंत विजय की इस घोषणा का राजधानी के साहित्यकारों ने तालियों की गड़गड़ाहट से स्वागत किया। उन्होंने दैनिक जागरण को पटना का नंबर वन अखबार बनाने के लिए भी धन्यवाद दिया।
अनंत विजय ने कहा कि बिहार संवादी बिहारीपन का उत्सव भी है। नई प्रतिभाओं को राष्ट्रीय फलक तक पहुंचाना भी इसका मकसद है। जब बिहार संवादी में शामिल साहित्यकारों की बात सात करोड़ पाठकों तक पहुंचेगी तो कितनी बड़ी बात होगी। उम्मीद है, हिंदी यहां से और मजबूत होकर जाएगी।
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