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रिटायरमेंट के आठ साल बाद भी थाने में ड्यूटी करने को मजबूर पटना का दारोगा, पेंशन भी मिल रही अधूरी

पांच केस का चार्ज देने के लिए पैतृक गांव सहरसा से पटना का चक्कर लगाते थक गया रिटायर्ड दारोगा 2013 में कोतवाली से रिटायर्ड हुए दारोगा चार्ज लेने वाले दारोगा का हो गया तबादला सेवानिवृत्त दारोगा को मालखाना का चार्ज देने में गुजर गए आठ साल

By Shubh Narayan PathakEdited By: Published: Wed, 09 Jun 2021 08:00 PM (IST)Updated: Wed, 09 Jun 2021 08:00 PM (IST)
पटना पुलिस के रिटायर्ड दारोगा की अजीब कहानी। प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

पटना, जागरण संवाददाता। थाने के मालखाने का चार्ज लेना और देना किसी पुलिस के लिए आफत से कम नहीं। एक ऐसा ही मामला कोतवाली थाने का है, जहां से वर्ष 2013 में सेवानिवृत्त दारोगा आठ साल से चार्ज देने के लिए अपने पैतृक गांव सहरसा से पटना का चक्कर लगा रहे हैं। चार्ज नहीं सौंपने से पेंशन भी पूरा नहीं मिल रहा है। सहरसा से पटना का चक्कर लगाते लगाते वह बीमार भी हो गए।  एक दारोगा उनसे मालखाने का चार्ज लिए और सामानों का मिलान भी शुरू कर दिए, लेकिन इसी बीच चार्ज लेने वाले दारोगा का तबादला हो गया। ऐसे में सेवानिवृत्त दारोगा की फिर से मुसीबत बढ़ गई।

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बदल गए कई थानेदार और मालखाना प्रभारी

दारोगा एसएनपी सिंह वर्ष 2013 में कोतवाली से सेवानिवृत्त हो गए। तब मालखाना का चार्ज इनके पास था। तत्कालीन इंस्पेक्टर उनसे मालखाना का चार्ज नहीं लिए। दूसरे इंस्पेक्टर को भी चार्ज देने का प्रयास किया, लेकिन चार्ज नहीं लिया गया। वर्ष 2018 में तत्कालीन आइजी के निर्देश पर कोतवाली में तैनात एक पुलिस पदाधिकारी मालखाना का चार्ज सौंपा गया। तब कुल 1225 सामानों की स्टेशन डायरी में इंट्री हुई थी। सामानों की गिनती और मिलान शुरू हुआ। जनवरी 2020 तक 1220 सामानों की गिनती और मिलान भी पूरा हो गया। इसी बीच, शहनवाज पर किसी अन्य मामले में कार्रवाई हुई और उनका तबादला कर दिया गया। अब सेवानिवृत्त दारोगा बचे हुए पांच केस को लेकर एक साल से कोतवाली का चक्कर लगा रहे हैं।

11 साल तक चार्ज देने को लगाते रहे चक्कर

वर्ष 2020 में फतुहा थाना का मामला सामने आया था। 11 साल पहले एक दारोगा रिटायर्ड हो गए। इनके पास ही पहले मालखाने का प्रभार था। रिटायरमेंट के पहले और उसके बाद 11 साल से वह मालखाने का चार्ज देने के लिए फतुहा थाने का चक्कर लगाते थे। इस बीच 10 थानेदार भी बदल गए। इसी तरह दीघा थाने से एक दारोगा 2014 में रिटायर हो गए थे। पांच साल तक मालखाने का प्रभार लेने को कोई तैयार नहीं हुआ। बाद में वरीय अफसरों के हस्तक्षेप से मामला सलटा।

आसान नहीं है मालखाना का चार्ज लेना और देना

एक पुलिस अधिकारी बताते हैं, जितना आसान लगता है उतना है नहीं। दो साल पूर्व मालखाने के लिए थाने के ही एक अफसर को प्रभार के लिए नामित किया गया। इस बीच, अगर मालखाना प्रभारी का तबादला होता है तो उन्हें चार्ज देने के दौरान हर एक सामान का मिलान करना होता है। हर एक सामान की तिथि, क्रमांक, जब्ती सामान के नाम और कांड संख्या, स्टेशन एंट्री सहित कई जानकारी लिखनी पड़ती है। इसमें कई दिन लग जाते हैं।


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