'गरीबों को न्याय' के लिए 50 वर्षो से संघर्ष कर रहे किशोरी दास
सीतामढ़ी के मोरसंड गांव से 1970 में पढ़ाई के लिए पटना आए किशोरी दास ने गरीबों के लिए लगा दिया जीवन
मृत्युंजय मानी, पटना। सीतामढ़ी के मोरसंड गांव से 1970 में पढ़ाई के लिए पटना आए किशोरी दास ने गरीबों के जीवनस्तर में सुधार को अपना लक्ष्य बना लिया। वह 50 वर्षो से स्लम में रहने वाले गरीबों के लिए संघर्ष करते आ रहे हैं। राजधानी के स्लम को व्यवस्थित कराने में अहम भूमिका निभाए।
पटना के बीएन कॉलेज में नामांकन के बाद किशोरी सीपीआइ से जुड़ गए। पार्टी ने उन्हें स्लम में रहने वालों को संगठित करने का काम दिया। 1974 में जेपी आंदोलन में उतरने के बाद वह सीपीआइ से नाता तोड़ लिए। 1980 में सीपीआइ के एक विधान पार्षद (एमएलसी) ने गरीबों की जमीन अपने नाम करा ली। इसके बाद तो वे पार्टी से काफी दूर हो गये। तब से लगातार मानवाधिकार और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में लगातार कार्य कर रहे हैं।
पढ़ाई के दौरान स्लम में रहने वालों के लिए बिजली, पानी और राशनकार्ड के लिए संघर्ष करते रहे। इसमें सफलता भी मिली और 1974 में सैदपुर, मंदिरी, नेहरूनगर और कौशलनगर झुग्गी-झोपड़ी को कानूनी मान्यता दिलाने में सफल रहे। 1994 में भी बड़ी संख्या में स्लम को व्यवस्थित कराए। बीएन कॉलेज का छात्र होने के कारण प्रशासन इनकी बातों को गंभीरता से सुनता था।
70 की उम्र में भी डटे हैं मैदान में
किशोरी 70 वर्ष की उम्र में भी गरीबों को हक के लिए डटे हुए हैं। स्लम के साथ फुटपाथी दुकानदारों को न्याय के लिए पटना उच्च न्यायालय में याचिका दायर किए हैं। किशोरी दास कहते हैं कि 50 वर्ष पहले स्लम में रहने वालों की स्थिति दयनीय थी। संघर्ष के बाद बिजली, पानी और राशन कार्ड की सुविधा मिली थी। पटना शहरी क्षेत्र में जमीन की कमी बताकर गरीबों के लिए मकान की व्यवस्था नहीं की जा रही है।
गरीबों को शहर में ही मिले आशियाना
उनका कहना है कि पटना के 70 स्लम में एक लाख से अधिक गरीब रहते हैं। सरकार इन्हें शहर से बाहर ले जाना चाहती है। शहर से बाहर जाने पर इन्हें रोजगार नहीं मिलेगा। इसलिए गरीबों के लिए बहुमंजिला भवन बनाकर उन्हें शहर में ही आशियाना देना चाहिए।