Move to Jagran APP

Bihar Silk City News: चीन ने बुनकरों की जिंदगी से गायब की रेशम की चमक, बिहार में सिल्‍क उद्योग बदहाल

बिहार का भागलपुर सिल्‍क सिटी के नाम से फेमस है। लेकिन यहां अब रेशम उद्योग मंद पड़ता जा रहा है। यहां के बुनकरों की जिंदगी से रेशम की चमक फीकी पड़ती जा रही है। पड़ताल करती रिपोर्ट।

By Rajesh ThakurEdited By: Published: Thu, 18 Jun 2020 10:08 PM (IST)Updated: Fri, 19 Jun 2020 03:52 PM (IST)
Bihar Silk City News: चीन ने बुनकरों की जिंदगी से गायब की रेशम की चमक, बिहार में सिल्‍क उद्योग बदहाल

भागलपुर, जीतेंद्र। रेशमी शहर ने जिस नफीस देसी तसर वस्त्र के जरिए पूरे विश्व के बाजारों में अपनी धाक जमाई थी, ड्रैगन ने लुभावने सस्ते व चमकीले चीनी रेशमी धागे की आपूर्ति कर उसे बड़ी चालाकी से धीरे-धीरे ध्वस्त कर दिया। उन मिलावटी रेशमी धागे के चमकदार होने व हैंडलूम के साथ पावरलूम पर भी चलने की वजह से भागलपुर के बुनकर उसकी ओर तेजी से आकर्षित हुए और धीरे-धीरे उसके आदी होते गए, लेकिन भारतीय तसर धागे की तुलना में उनकी गुणवत्ता सही नहीं होने की वजह से बाजार में यहां के वस्त्रों की मांग गिरने लगी। उधर, चीन ने भी विश्व बाजार को आश्वस्त किया कि उनके और भारत के वस्त्र एक ही धागे से बीने हुए हैं। इसका बैड इफेक्‍ट भागलपुर में भी देखने को मिल रहा है। 

loksabha election banner

तीन माह से बंद है लूम का शोर

लेकिन दुनिया को लुभाते रेशमी धागों के पीछे बेबसी और बदहाली की भी एक तस्वीर है, जो ये धागे तैयार करने वालों के लिए जैसे नियति बन चुकी हो। बुनकर अपने हुनर से धागों को चमक देकर सुंदर-सुंदर कपड़े तैयार करते हैं, पर उनकी जिंदगी से चमक गायब है। नाथनगर के मो. कलीम अंसारी बताते हैं कि एक साड़ी तैयार करने पर 70 रुपये मेहनताना मिलता है। इसमें भी आधा पैसा लूम के रखरखाव और बिजली पर खर्च हो जाता है। अब तो पूंजी भी नहीं है कि रोजगार खड़ा कर सकें। पिछले तीन महीनों से लूम का शोर बंद है। 

योजनाओं की जानकारी नहीं 

90 फीसद बुनकरों को तो पता भी नहीं कि उनके लिए कौन-कौन सी योजना है। नाथनगर व चंपानगर के बुनकरों ने बताया कि यहां केंद्रीय रेशम बोर्ड, पावरलूम सर्विस सेंटर आदि के कार्यालय भी हैं। वस्त्र मंत्रालय ने पावरलूम व हैंडलूम सेक्टर के लिए कई योजनाएं चलाई, लेकिन इसका सीधा लाभ उन्हें नहीं नहीं मिला। 

पूंजी नहीं, कैसे लें लाभ 

पावरलूम सर्विस सेंटर से पावरलूम को अपडेट करने की योजना में 90 फीसद सब्सिडी का प्रावधान है। लेकिन इसके लिए पहले खुद ही 30 हजार रुपये एक लूम को अपग्रेड करने में लगाना पड़ता है। इतने पैसे नहीं कि पहले खुद पूंजी लगा सकें। हैंडलूम के लिए कुछ बुनकरों को 12 हजार की राशि जरूर मिली, जबकि अधिसंख्य वंचित हो गए। 

महाजन का ही आसरा 

बुनकरों को पांच वर्ष पहले धागा कार्ड दिया गया, जिससे उन्हें 10 फीसद सब्सिडी दर पर धागा उपलब्ध कराया जाना था। इस योजना में उन्हें पहले राशि जमा करनी पड़ती थी, फिर बीस दिनों बाद धागा मिलता था। चूंकि पंूजी नहीं थी, सो वे महाजन के धागे पर ही मजदूरी करने लगे। बुनकर संघर्ष समिति के सचिव अयाज अंसारी ने कहा कि सरकार ने पांच लाख रुपये की पूंजी चार फीसद ब्याज दर पर दिलाने की बात कही थी। बुनकर हाट बनाकर कपड़ा बिक्री केंद्र खोले जाने की घोषणा पर भी अमल नहीं हुआ। 

क्या है मौजूदा स्थिति 

इस समय 80 हजार बुनकरों के सामने भरण-पोषण का संकट हैं। 25 हजार से ज्यादा पावरलूम बंद हैं। 2400 हैंडलूम बनुकर भी बेरोजगार हो चुके हैं, जिनकी आजीविका मजदूरी से चलती थी। करीब 260 धागा रंगाई केंद्र, डाईंग व फिनिशिंग कार्य भी ठप है। तानी, भरनी व लरी भरने वाले करीब छह हजार लोग बेरोजगार हैं। 

बयां कर रहे अपनी पीड़ा 

पृथ्वीराज नवल कहते हैं कि रेशम उद्योग को बढ़ावा देने के लिए सरकार को पैकेज देना चाहिए। बाल्मिकी दास कहते हैं कि मजदूरी नहीं मिल रही है, दाने-दाने को मोहताज हैं। मनीष बताते हैं कि लॉकडाउन के बाद से हैंडलूम पर कार्य ठप है। मुद्दसर बताते हैं कि आर्डर मिलने के बाद पांच हजार दुपट्टा तैयार किया, लेकिन व्यापारी लेने को तैयार नहीं हैं। पूरी पूंजी फंस गई। मो. रईस अंसारी कहते हैं कि कारोबार ठप होने से अब पलायन कर नौबत आ गई है। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.