hindi journalism day हिंदी पत्रकारिता ने देशज शब्दों को दिलाया स्थान
194 साल का सफर आज हिंदी पत्रकारिता ने पूरा कर लिया है। इस विधा ने समाज और संस्कृति के लिए काफी कुछ किया है। जानें कुछ खास।
पटना। हिंदी पत्रकारिता ने आज 194 साल का सफर पूरा कर लिया। इस लंबे सफर में हिंदी पत्रकारिता ने समाज और संस्कृति के लिए काफी कुछ किया है। खुद हिंदी को समृद्ध बनाने में हिंदी पत्रकारिता का बड़ा योगदान रहा है। खासकर देशज और आंचलिक शब्दों को मानकीकृत भाषा में स्थान दिलाने में हिंदी पत्रकारिता का बड़ा योगदान रहा है।
नमानस के ज्यादा नजदीक तक पहुंची पत्रकारिता
देशज शब्दों ने जनमानस तक बनाई पहचान लेखक भगवती प्रसाद द्विवेदी का कहना है कि हिंदी पत्रकारिता ने देशज शब्दों को उचित स्थान दिलाने का काम किया। उन्होंने कहा कि टुकुर-टुकुर, लबार, बकलोल, किच-किच, गंवार, मेहरारू, मउगा, बनिहार, नौ दिन चले अढ़ाई कोस जैसे शब्दों के इस्तेमाल से हिंदी पत्रकारिता जनमानस के ज्यादा नजदीक तक पहुंची।
'बिहार-बंधु' के साथ राज्य में हुई शुरुआत
बिहार विधान परिषद के सदस्य, पटना विवि के पूर्व प्राध्यापक एवं समालोचक डॉ. रामवचन राय बताते हैं कि भारत के स्वतंत्रता आंदोलन और हिंदी पत्रकारिता का विकास एक साथ हुआ। लोगों में स्वतंत्रता की चेतना जगाने में हिंदी पत्रकारिता का प्रमुख योगदान रहा। राष्ट्रीय आंदोलनो में भी हिंदी पत्रकारिता की अहम भूमिका रही। बिहार में 'बिहार-बंधु' नाम से राज्य का पहला साप्ताहिक हिंदी समाचार पत्र 1872 में बिहारशरीफ से निकला था। पत्र के संचालक मदन मोहन भट्ट तथा संपादक हसन अली थे।
'उदंत मार्तंड' से भारत में हुई थी शुरुआत
डॉ. रामवचन राय बताते हैं कि उस दौरान दिनमान पत्रिका का प्रकाशन होता था, जिसके संपादक रघुवर सहाय थे। उन्होंने इमरजेंसी के बाद 'बेपढ़ों ने पढ़े-लिखे को मुक्त किया' शीर्षक से खबर छापी थी। हिंदी पत्रकारिता का इतिहास 30 मई 1826 को 'उदंत मार्तंड' से भारत में हिंदी पत्रकारिता की नींव पड़ी। प्रतिवर्ष इसी तिथि को पूरे देश में हिंदी पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस खास दिन पर कई आयोजन भी किए जाते हैं तथा पत्रकारों का सम्मान भी किया जाता है।