युवा दिवस: अपनी शर्तों पर बिंदास होकर जीती है ये नई पीढ़ी, ऐसे बदला जीने का अंदाज
आज अपनी शर्तों पर जीने वाली बिंदास नई पीढ़ी का जमाना है। इन्हें कल की फिक्र नहीं है। इसके लिए तो सारी उम्र पड़ी है। वे महत्वाकांक्षी भी हैं। सबकुछ तत्काल ही पा लेना चाहते हैं।
पटना [अमित आलोक]। राजधानी के शाश्वत ने मैनेजमेंट की पढ़ाई एक प्रतिष्ठित बी स्कूल से की है। कैंपस प्लेसमेंट में उसका चयन अधिकतम सैलरी पर हुआ। पिता भी बड़ी सरकारी नौकरी में हैं। इसलिए परिवार का अतिरिक्त दायित्व नहीं है। उसकी कार में लेटेस्ट गैजेट्स हमेशा रहते हैं।
पटना की ही सुलेखा पढ़ाई के साथ एक कॉल सेंटर में काम करती है। शॉपिंग उसका फेवरिट टाइमपास है। पूरे सप्ताह काम के बाद वीकएंड पर दोस्तों के साथ मॉल या मूवी का प्लान कभी मिस नहीं करती। उधर, कपड़ों के शौकीन बीमाकर्मी अनुपम को अपने सामान्य वेतन की चिंता नहीं। हाल ही में उसने कर्ज लेकर एलईडी टीवी व फ्रीज खरीद लिया है।
ये अपनी शर्तों पर जीने वाली आज की बिंदास नई पीढ़ी है। शादी के लिए उसके पास ‘फिलहाल’ समय नहीं। वर्तमान में जीती इस पीढ़ी को कल की फिक्र नहीं, इसके लिए तो उम्र पड़ी है। बदलाव की यह बयार बड़े नगरों से होते हुए अब बिहार में भी पहुंच चुकी है।
आर्थिक आजादी की राह पर युवा
करीब डेढ़ दशक के दौरान युवा वर्ग आर्थिक आजादी की राह पर चल पड़ा है। उनको लुभावने विज्ञापनों से आकर्षित करने में बाजार भी पीछे नहीं। सामान्य आय के युवाओं के सपनोंं को भी साकार करने के लिए बैंक व अन्य वित्तीय संस्थाएं आसान कर्ज के विकल्प लेकर मौजूद हैं। ऐसे में जेब में पैसा हो या न हो, खरीदारी आसान
हो गई है। दिल खोलकर खर्च करने की प्रवृत्ति बढ़ी है।
पहले सीमित थे अवसर
पहले के दौर में जॉब के विकल्प सीमित थे। सामान्यत: विज्ञान पढऩे वाले डॉक्टर या इंजीनियर बनते थे तो कला के विद्यार्थी सरकारी सेवा में जाते थे। शिक्षण, बैंकिंग आदि के कुछ अन्य सेक्टर भी थे, जहां सामान्य मेधा के विद्यार्थी जॉब पाते थे। गिनती के ही पब्लिक व प्राइवेट सेक्टर उद्यम थे।
सामने आए नए विकल्प
वैश्वीकरण के वर्तमान दौर ने जहां बहुराष्ट्रीय कंपनियों को बाजार दिया, वहीं इन्हें कुशल श्रम व ज्ञान भी प्रदान किया। मामला आइटी, मैनेजमेंट व मेडिकल जैसे कुछ खास सेक्टरों तक सीमित नहीं रहा। जॉब के कई नए विकल्प सामने आए। सामान्य मेधा के युवाओं के लिए भी बीपीओ, कॉल सेंटर, बीमा व वित्तीय कंपनियों ने अपने दरवाजे खोल दिए।
बेहतर पे-पैकेज व कमीशन पर कर्मियों की भर्ती की जाने लगी। मेडिकल व लीगल ट्रांस्क्रिप्सन, ऑनलाइन डाटा वर्क, ऑनलाइन सर्वे आदि के चलन बढ़े। आउटसोर्सिंग के कई ऐसे जॉब भी सामने आए, जिन्हें लोग अपनी सहुलियत से कभी भी और अपने घर से कर सकते हैं। तात्पर्य यह कि परंपरागत जॉब सेक्टर में तो अवसर बढ़े ही, अनेक नए अवसर भी पैदा हो गए। इसका लाभ युवाओं ने उठाया।
साल दर साल बढ़ रहे पे पैकेज, बढ़ी क्रय शक्ति
पटना के राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआइटी) के आंकड़ों पर गौर करें तो वहां 2010-11 के दौरान औसत पे-पैकेज 4.50 लाख, जबकि अधिकतम 8.50 लाख रुपये सालाना रहा। समय के साथ इसमें बड़ा इजाफा हुआ है। बीते साल अगस्त में इसी एनआइटी की एक छात्रा का कैंपस सलेक्शन 41 लाख सालाना के पैकेज पर हुआ।
मोतिहारी निवासी व दिल्ली में डॉक्टर उत्पल बताते हैं कि 20-25 साल पहले तो ऐसा कोई सोच भी नहीं सकता था।
राजधानी के विभिन्न प्रतिष्ठित कॉलेजों में कैंपस प्लेसमेंट के चलन का लगातार विस्तार हुआ है। ऐसे प्लेसमेंट में हर साल औसत पे-पैकेज में बढ़ोतरी हो रही है। पिछले कुछ सालों से मैनेजमेंट व टेक्निकल कॉलेजों के विद्यार्थियों के पैकेज लुभावने हुए हैं। प्रतिभा के बल पर कम उम्र में बेहतरीन पैकेज पाना अब मुश्किल
नहीं है। इससे युवाओं की क्रय शक्ति भी बढ़ी है।
कर्ज से आसान हुई राह
मैनेजमेंट व टेक्निकल कॉलेजों से इतर सामान्य विद्यार्थियों को भले ही अपेक्षाकृत कम पगार मिले, लेकिन उनके लिए भी अवसर बढ़े हैं। कम होती सरकारी नौकरियों के दौर में निजी क्षेत्र की तरफ युवाओं के झुकाव ने उनको आत्मनिर्भर बनाया है। उनके लाइफस्टाइल के सपनों को पूरा करने के लिए बाजार में आसान कर्ज
उपलब्ध हैं। पटना के एक मौल में सेल्सगर्ल शांभवी बताती है कि जेब खाली भी रहे तो क्रेडिट कार्ड से खरीदारी हो जाती है।
लगा रहे निजी उद्यम
पहले के युवा रिस्क कम लेते थे। उनमें सुरक्षित सरकारी नौकरी का क्रेज था। लेकिन, आज के युवा रिस्क लेते हैं। आसान कर्ज के माध्यम से बैंक उनकी राह आसान करते हैं। ऐसे में युवा निजी उद्यम लगाकर भी आत्मनिर्भरता की राह पर चल पड़े हैं। मुजफ्फरपुर के सॉफ्टवेयर इंजीनियर पंकज सिंह को जब एक-दो प्रयास में नौकरी नहीं मिली तो उन्होंने इंतजार नहीं किया। इंटरनेट मार्केटिंग से जुड़कर पैसे बनाए और आज पुणे व दिल्ली में उनकी इंटरनेट मार्केटिंग कंसल्टेंसी है।
बदली लाइफस्टाइल
बाजार भी युवाओं को टारगेट कर समय-समय पर अनेक फैशन और लाइफस्टाइल से संबंधित उत्पाद लांच करता रहा है। उनके आकर्षण में नई पीढ़ी के लाइफस्टाइल में काफी अंतर आया है। आज के युवा ब्रांडेड कपड़ों, जूतों व एक्सेसरीज के शौकीन है। वे कम उम्र मे ही मकान व कार भी खरीद रहे हैं। वे मल्टीप्लेक्स और डिस्को के नियमित विजिटर्स है। राजधानी के खेतान मार्केट स्थित एक प्रतिष्ठित गारमेंट शॉप संचालक मोहन लाल के अनुसार बीते कुछ सालों के दौरान उनके ग्राहकों में युवाओं की संख्या करीब 25 फीसद बढ़ी है। वे इसके पीछे का कारण उनकी बढ़ी क्रय शक्ति को मानते हैं। क्रय शक्ति में यह वृद्धि मूलत: आत्मनिर्भर युवा वर्ग की है।
सबकुछ तत्काल पाने की चाहत
मनोवैज्ञानिक डॉ. बिंदा सिंह युवा वर्ग की बदली लाइफस्टाइल को पैरेंटिंग से जोड़कर कहती हैं कि आजकल मां-बाप बच्चों को इमोशनल कम, आर्थिक सपोर्ट अधिक दे रहे हैं। वे बचपन से ही ऐशो-आराम के आदी हो रहे हैं। वे महत्वाकांक्षी भी अधिक हैं। ऐसे बच्चे जब युवा होकर अपने पैरों पर खड़े हो रहे हैं, तो वे सबकुछ तत्काल ही पा लेना चाहते हैं।
डॉ. बिंदा सिंह कहती हैं कि आज इंटरनेट ने नई पीढ़ी को ज्ञान जरूर दिया है, लेकिन इसके साइड इफेक्ट्स भी हैं। इसने युवा पीढ़ी को काल्पनिक आभाषी दुनिया से जोड़कर यथार्थ से दूर किया है। पारिवारिक प्रेम व धैर्य में कमी आई है। इसपर बचपन से ही ध्यान देना जरूरी है।