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बिचड़ा डालने के समय वर्षा की कमी झेलते रहे हैं जिले के किसान

आद्र्रा नक्षत्र के प्रवेश के साथ किसानों की उम्मीदें जगी हैं। ऐसा इसलिए कि आद्र्रा नक्षत्र प्रवेश के पूर्व बूंदा-बांदी का दौर आरंभ हुआ।

By JagranEdited By: Published: Mon, 24 Jun 2019 05:47 PM (IST)Updated: Mon, 24 Jun 2019 05:47 PM (IST)
बिचड़ा डालने के समय वर्षा की कमी झेलते रहे हैं जिले के किसान
बिचड़ा डालने के समय वर्षा की कमी झेलते रहे हैं जिले के किसान

आद्र्रा नक्षत्र के प्रवेश के साथ किसानों की उम्मीदें जगी हैं। ऐसा इसलिए कि आद्र्रा नक्षत्र प्रवेश के पूर्व बूंदा-बांदी का दौर आरंभ हुआ। हालांकि अभी इतनी भी बारिश नहीं हुई है कि किसान खेतों की जुताई आरंभ कर सकें। बावजूद आद्र्रा नक्षत्र के प्रवेश के साथ किसान आशान्वित हैं। शनिवार की देर रात करीब 12 बजकर 59 मिनट पर आद्र्रा का प्रवेश हुआ। वैसे जिले के किसानों की त्रासदी यह है कि पिछले दस वर्षों से बिचड़ा डालने के समय वर्षा की कमी का सामना करते रहे हैं। इस बार भी वही स्थिति है, इस कारण खेती-बारी का काम पिछड़ रहा है।

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गत वर्ष तक किसान भूगर्भीय जलश्रोतों के सहारे डीजल व बिजली पंप सेटों के सहारे धान का बिचड़ा डालने का काम किया था। इस वर्ष प्री मानसून की बारिश नहीं होने के कारण खेतों की जोताई नहीं होने व भूगर्भय जलस्तर में लगातार गिरावट के कारण अबतक खेतों में धान के बिचड़े नहीं डाले जा सके हैं। ऐसे में खरीफ फसल के साथ भदई फसल पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। लेकिन आद्र्रा नक्षत्र आगमन के पूर्व बूंदा-बांदी आरंभ होने से किसानों में आशा का संचार हुआ है।

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औसत से कम हुई बारिष

- पिछले दस वर्षों में से दो वर्षों को अगर अपवाद माना जाए तो जिले में जून माह में औसत से काफी कम बारिश हुई है। वर्ष 2009 में जून में 62 प्रतिशत कम बारिश हुई। उसके बाद वर्ष 2018 तक लगभग यही स्थिति रही। प्रत्येक वर्ष 25 से लेकर 40 प्रतिशत तक बारिश कम हुई। वर्ष 2012 में 42 प्रतिशत बारिश जून माह में हुई, जबकि वर्ष 2013 जून माह में 05 प्रतिशत अधिक बारिश हुई थी। बाद में बारिश की स्थिति अच्छी नहीं रहने से उत्पादन में काफी कमी हुई। वर्ष 2016 व 2017 में भी जून माह में काफी कम बारिश हुई लेकिन अंत में वर्षा की कमी मात्र 05 प्रतिशत कम रहने से उत्पादन अच्छा हुआ था।

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इस वर्ष स्थिति है काफी भयावह

- जिले में पिछले साल अक्टूबर माह के बाद से अबतक अच्छी बारिश नहीं होने से स्थिति काफी भयावह है। हालात यहां तक पहुंच गया है कि पेयजल के लिए मारामारी हो रही है। ऐसे में खेतों की सिचाई का प्रश्न ही नहीं है। सिचाई के अभाव में भदई फसल नहीं लगाए जा सके हैं। मकई, मडुआ, उड़द जैसे फसलों के लिए किसानों को सोचना पड़ रहा है। भदई सब्जी की भी कमोवेश यही स्थिति है। ऐसे में किसान मायूस हैं।

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30 जून तक डाले जा सकेंगे बिचड़े

- वैसे बिचड़ा डालने का काम रोहिणी नक्षत्र में ही किया जाता रहा है, लेकिन नक्षत्र के अनुसार आद्र्रा नक्षत्र तक बिचड़ा डाला जाता है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार बिचड़ा डालने की अंतिम समय सीमा 30 जून है। जिसके समाप्त होने में पांच दिनों का समय बच रहा है। ऐसे में अगर अब भी झमाझम बारिश हुई तो बिचड़ा डालने में किसानों को आसानी होगी। अगर ऐसा नहीं हुआ तो फिर बिचड़ा डालने से भी कोई लाभ होने को नहीं हैं। क्योंकि अगर डाल भी दिया तो उसे बचा पाना मुश्किल होगा। बता दें कि जिले में 80 हजार हेक्टेयर में धान आच्छादन का लक्ष्य है। पिछले दिनों हुई हल्की बारिश के बाद खेतों में नमी आई है तो किसान बिचड़ा डालने के काम में जुट गए हैं। बीज दुकानों पर किसानों बिचड़ा लेने पहुंच रहे हैं।

बहरहाल, आद्र्रा नक्षत्र प्रवेश के पूर्व आरंभ हुई बूंदा-बांदी से किसानों में आशा का संचार हुआ है। फिर भी अगर आद्र्रा में अच्छी बारिश नहीं हुई तो अकाल को टाल पाना मुश्किल होगा। साथ पेयजल संकट भी गहराएगा।

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