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मत-विमत : मार्निंग वॉक व योग-प्राणायाम में स्वास्थ्य पर चर्चा कम, चुनाव में दिलचस्पी ज्यादा

जासं नवादा सेहत के लिए मार्निंग वॉक व योग-प्राणायाम जरूरी है। शहर के हर उस स्थान पर ब

By JagranEdited By: Published: Tue, 13 Oct 2020 08:25 PM (IST)Updated: Tue, 13 Oct 2020 08:25 PM (IST)
मत-विमत : मार्निंग वॉक व योग-प्राणायाम में स्वास्थ्य पर  चर्चा कम, चुनाव में दिलचस्पी ज्यादा
मत-विमत : मार्निंग वॉक व योग-प्राणायाम में स्वास्थ्य पर चर्चा कम, चुनाव में दिलचस्पी ज्यादा

जासं, नवादा : सेहत के लिए मार्निंग वॉक व योग-प्राणायाम जरूरी है। शहर के हर उस स्थान पर बड़ी संख्या में महिलाएं, बुजुर्ग व युवक-युवतियां जुटते हैं जहां थोड़ी सी भी टहलने-घुमने के लिए उचित वातावरण है। गांधी मैदान में बुजुर्ग वकील साहब वॉकिग के लिए नियमित आते हैं। राजनीति में दिलचस्पी रखते हैं। चुनावी मौसम में सुबह-सुबह पहुंचते हैं। लेकिन अब योग-प्राणायाम कम चुनावी चर्चा में ही ज्यादा वक्त देते हैं। हर उस शख्स का इंतजार उनको होता है जो चुनावी खबर लेकर पहुंचता है। मंगलवार को भी सुबह-सुबह चौकड़ी जमी हुई थी, जिले से लेकर राज्य स्तर तक चुनावी हलचल पर चर्चा छिड़ी हुई थी। किसी ने पूछ बैठा, सर किसको वोट दीजिएगा। चंद सेकेंड सोचने के बाद शुरू होते हैं। जवाब जाति व विचारधारा के बीच अटक जाता है। साथ रहे लोग हंसने लगते हैं।

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असमंजस में हैं सिगरेट वाले नेताजी

वारिसलीगंज : वारिसलीगंज विधानसभा में चुनाव प्रचार प्रसार जोर पकड़ने लगा है। दोनों गठबंधन दलों के प्रत्याशियों के अलावा एक पूर्व माननीय की धर्मपत्नी निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में आ डटी हैं। इस राजनीतिक उफान के बीच सिगरेट वाले नेताजी अंतरद्वंद में फंसे हैं। गठबंधन धर्म का पालन करते नहीं दिख रहे हैं। कारण चाहे जो भी हो पिछले तीन दशकों से सक्रिय राजनीति करने वाले नेता जी थाना चौक पर सिगरेट फूंकते न•ार आते हैं। दरअसल, नेता जी अपनी पार्टी से टिकट के दावेदार थे। कई दफा पटना का दौड़ लगाया। सीट गठबंधन के घटक दल में चले जाने के बाद अंदर से दुखी हैं। सो गहमा गहमी के इस माहौल में भी शांत पड़े हैं। वैसे जानकर बताते हैं कि टिकट नहीं मिलने से तो क्षुब्ध थे ही, कई प्रत्याशियों से नजदीकी ने उन्हें असमंजस में डाल रखा है। ऐसे में माहौल को परख रहे हैं। अंतिम समय में कुछ निर्णय ले सकते हैं।

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गठबंधन की गांठ

वारिसलीगंज : सहयोगी दलों से गठबंधन का असर यहां नहीं दिख रहा है। गठबंधन की गांठ खुलने की बजाय और कसती जा रही है। फूल वाली पार्टी के उम्मीदवार यहां से हैं। सहयोगी घटक के कार्यकर्ता राज्य के मुखिया आगे भी चाहते हैं, लेकिन अधिकृत उम्मीदवार से पूरी तरह दूरी बना रखे हैं। ऐसे में फुल वाले नेता जी परेशान जरूर हैं, लेकिन अपने काम की बदौलत सर पर ताज बरकार रहने के प्रति आश्वस्त दिखते हैं। अपना मुखिया बनाए रखने की चाहत रखने वाला समूह गठबंधन धर्म को निभाने की बजाय जातीय समीकरण का चादर ओढ़ने की कोशिश में हैं। देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में क्या होने वाला है।


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