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ढिबरा चुनने वाले बच्चों के हाथों में अब कलम-किताब

राहुल कुमार रजौली (नवादा) जिले के रजौली प्रखंड मुख्यालय से 70 किमी. दूर जंगल और पहाड

By JagranEdited By: Published: Thu, 13 Feb 2020 12:14 AM (IST)Updated: Thu, 13 Feb 2020 12:14 AM (IST)
ढिबरा चुनने वाले बच्चों के हाथों में अब कलम-किताब

राहुल कुमार, रजौली (नवादा) : जिले के रजौली प्रखंड मुख्यालय से 70 किमी. दूर जंगल और पहाड़ों से घिरी सवैयाटांड़ पंचायत के फगुनी गांव की पहचान अभ्रक खदान को लेकर रही है। यहां के बच्चे इसी अभ्रक खदान से दिनभर ढिबरा (अभ्रक का टुकड़ा) चुनने में समय जाया करते थे। गांव में स्कूल या आंगनबाड़ी केंद्र नहीं हुआ करता था। स्कूली बस्ते की जगह बच्चों की पीठ पर बोरी में ढिबरा होता था, लेकिन अब स्थितियां बदल गई। बच्चों को अभ्रक का ढिबरा चुनने से आजादी मिल गई। उनके हाथों में अब कॉपी-किताब दिखती है। बदलाव की यह पटकथा नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी की संस्था कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन फाउंडेशन ने लिखी है। बच्चों के लिए खुल गया स्कूल : फगुनी गांव में बालमित्र ग्राम परियोजना के अंतर्गत विद्यालय की स्थापना हुई। यह कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन फाउंडेशन की पहल पर संभव हुआ है। इस गांव में कुल 40 घर हैं। उन घरों में कुल मिलाकर 118 बच्चे हैं। गांव के समीप ही दो विद्यालय स्थापित कर बच्चों को बेहतर शिक्षा दी जा रही है। बच्चों से कोई शुल्क नहीं लिया जाता है। समय-समय पर संस्था द्वारा बच्चों को बेहतर पठन-पाठन के लिए कॉपी-किताब और अन्य सामग्री दी जाती है। दोनों विद्यालय में एक-एक शिक्षक नियुक्त हैं, जिन्हें संस्था वेतन आदि का भुगतान करती हैं। शिक्षक वीरेश प्रसाद बताते हैं कि उनके विद्यालय में एक से छह वर्ग तक के बच्चे पढ़ते हैं। पहले थी झोपड़ी अब बन गया कमरा : फाउंडेशन द्वारा बचपन बचाओ आंदोलन के तहत इस इलाके में 2005 से ही सामुदायिक विद्यालय संचालित किया जाता रहा है। पहले यह विद्यालय एक झोपड़ी में संचालित था, लेकिन चार नवंबर, 2019 में एक कमरे का निर्माण कराया गया। अब उसी कमरे में बच्चों की क्लास लगती है। गांव से कुछ दूर टोपा पहाड़ी पर भी एक विद्यालय संचालित है। बच्चों को शुद्ध पेयजल मुहैया कराने के लिए संस्था ने 360 फीट की गहरी बोरिग भी कराई है। गांव के लोग भी इसी पानी का इस्तेमाल करते हैं। विद्यार्थी रंजन कुमार, रजनी कुमारी, रूपा कुमारी, कृष्ण कुमार आदि बताते हैं कि हम लोग भी पढ़-लिखकर नौकरी करना चाहते हैं, जिससे अपने गांव को बदल सकें। विद्यालय के कमरे में कदम रखते ही बच्चे बोलते हैं 'नमस्ते सर' : यहां पहुंचने वालों का आतिथ्य सत्कार भारतीय अंदाज में होता है। बच्चों के बैठने, बोलने और बाहर से आने वाले लोगों का स्वागत करने का तौर-तरीका अनुशासित होता है। जैसे ही आप विद्यालय के कमरे में कदम रखेंगे, बच्चे 'नमस्ते सर' कहकर आपका स्वागत करेंगे। फिर बारी-बारी से आकर हाथ मिलाएंगे और अपना परिचय देंगे। विद्यालय की बेहतरी के लिए संस्था की कवायद जारी : विद्यालय की देखरेख करने वाली संस्था के सदस्य हेमंत चौबे बताते हैं, यहां के शिक्षकों को संस्था की ओर से प्रतिमाह 10 हजार रुपये बतौर पारिश्रमिक दिए जाते हैं। बच्चों की बेहतरी के लिए संस्था लगातार प्रयासरत है। क्षेत्र में एक सरकारी विद्यालय व आंगनबाड़ी केंद्र की स्थापना जरूरी है। क्या कहते हैं अधिकारी

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फिलहाल स्कूल खोलने का प्रस्ताव नहीं है। वैसे, इलाके का सर्वे कराया गया है। रिपोर्ट विभाग को भेजी जा रही है। जैसा निर्देश प्राप्त होगा, उसी के अनुसार आगे की कार्रवाई की जाएगी।

- मो. जमाल मुस्तफा, डीपीओ, सर्व शिक्षा अभियान, नवादा।


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