संगोष्ठी में भारत-तिब्बत के मैत्री रिश्तों पर हुई चर्चा
60वां तिब्बती राष्ट्रीय जनक्रांति दिवस के अवसर पर रविवार को नवादा नगर स्थित खादी ग्रामोद्योग निवास स्थान में संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
60वां तिब्बती राष्ट्रीय जनक्रांति दिवस के अवसर पर रविवार को नवादा नगर स्थित खादी ग्रामोद्योग निवास स्थान में संगोष्ठी का आयोजन किया गया। अध्यक्षता प्रो. सुरेंद्र जायसवाल ने की। भारत-तिब्बत मैत्री के जिला संयोजक ई. केबी यादव ने कहा कि भारत के पड़ोसी देश तिब्बन पर चीन का वर्षों से कब्जा चला आ रहा है। 1961 से पहले तिब्बत ने जबरन पर कब्जा जमा लिया। वहां के दलाईलामा को सुरक्षित भारत आकर शरण लेना पड़ा। इससे गुस्साए चीन ने 1962 में भारत-चीन के साथ युद्ध किया। देश के पहले पीएम जवाहर लाल नेहरू ने चीन की इस कार्रवाई को गलत ठहराया था। चीन के तिब्बत पर कब्जा से पूर्व तिब्बत एक स्वतंत्र राष्ट्र था। अनेकों बार चीन की बर्बरता पूर्ण कार्रवाई से तिब्बत की आवाम को तरह-तरह की यातनाएं उठानी पड़ी। नवादा में संगोष्ठी के माध्यम से इस बात पर जोर दिया गया कि तिब्बत को चीन से मुक्त किया जाए। साथ ही भारत से कैलाश मानसरोवर तीर्थ यात्रा में जाने वाले श्रद्धालुओं को जिन्हें करीब 40 हजार रुपये का टैक्स देना पड़ता है उससे छुटकारा मिलेगा। तिब्बत जब स्वतंत्र राष्ट्र हो जाएगा तो चीन से सुरक्षा को लेकर भारत की तरफ से सैन्य खर्चा करना पड़ रहा है उससे निजात मिलेगी। संगोष्ठी के दौरान भारत-तिब्बत मैत्री को लेकर चार पुस्तकों का वितरण भी किया गया। यह पुस्तकें दिल्ली से लाई गई हैं। जिसमें दोनों देशों के मैत्रीपूर्ण संबंध और तिब्बत-चीन के रिश्तों के बारे में विस्तार से बताया गया है। इस संगोष्ठी के मौके पर अधिवक्ता राजेंद्र प्रसाद, सहदेव यादव, पारसनाथ यादव, बालेश्वर चौधरी, अरविद यादव, गौरीशंकर यादव, सुरेश प्रसाद यादव, मनोज कुमार, शशिभूषण पाठक, संजय कुमार व अन्य उपस्थित थे।