Move to Jagran APP

बांध और अतिक्रमण से जद्दोजहद कर रही खुरी नदी

झारखंड के सीमावर्ती पहाड़ी इलाके से निकली खुरी नदी अब जीवनदायिनी नहीं रही। इसका विराट स्वरूप अब नाले की शक्ल अख्तियार कर चुका है। निकास के मुहाने पर डैम का निर्माण और मैदानी इलाके में जगह-जगह अतिक्रमण होने से नदी अस्तित्व बचाने के लिए जद्दोजहद कर रही है। इसे बचाने के लिए जलपुरुष राजेंद्र सिंह का एक दिन का सत्याग्रह भी काम नहीं आया। उल्टे अतिक्रमण तेजी से बढ़ता जा रहा है। नवादा शहर में तो नदी का अस्तित्व नाले से भी बदतर हो गया है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 18 May 2020 09:17 PM (IST)Updated: Mon, 18 May 2020 09:17 PM (IST)
बांध और अतिक्रमण से जद्दोजहद कर रही खुरी नदी
बांध और अतिक्रमण से जद्दोजहद कर रही खुरी नदी

झारखंड के सीमावर्ती पहाड़ी इलाके से निकली खुरी नदी अब जीवनदायिनी नहीं रही। इसका विराट स्वरूप अब नाले की शक्ल अख्तियार कर चुका है। निकास के मुहाने पर डैम का निर्माण और मैदानी इलाके में जगह-जगह अतिक्रमण होने से नदी अस्तित्व बचाने के लिए जद्दोजहद कर रही है। इसे बचाने के लिए जलपुरुष राजेंद्र सिंह का एक दिन का सत्याग्रह भी काम नहीं आया। उल्टे अतिक्रमण तेजी से बढ़ता जा रहा है। नवादा शहर में तो नदी का अस्तित्व नाले से भी बदतर हो गया है।

loksabha election banner

नवादा जिले में यह नदी रजौली, अकबरपुर, नवादा सदर प्रखंड से होते हुए नालंदा जिले की सीमा में प्रवेश कर जाती है। इस रास्ते में पड़ने वाले सैकड़ों गांवों के हजारों एकड़ खेतों में खरीफ फसल की खेती के दौरान इसका पानी सिचाई के काम आता था। खेती-किसानी के लिए नदी किसी वरदान से कम नहीं थी। झारखंड के कोडरमा जिले के जंगलों से निकलने वाली खुरी नदी मुख्य रूप से बरसाती है। कई दशक पहले बरसात के मौसम में नदी अपने पूरे शबाब पर रहती थी। तब रजौली, अकबरपुर, नवादा व नालंदा जिले के गिरियक के दर्जनों गांवों के किसान पईन से पानी लाकर खरीफ फसल की खेती करते थे। नदी में बाढ़ आने पर लाल पानी जब खेतों में फैलता था तो मिट्टी की परत जमा हो जाती थी। इससे खेत में उर्वरा शक्ति बढ़ जाती थी और पैदावार ठीक होती थी। नदी के दोनों किनारे जल से लबालब होकर बहते थे तो खरीफ फसल के साथ रवि फसल होने की भी संभावना बढ़ जाती थी। अकबरपुर प्रखंड के जाखे देवीपुर, अकबरपुर, मलिकपुर नेमदारगंज आदि गांवों में किसान माघ व फाल्गुन माह में भी नदी में बांध लगाकर उसी के पानी से फसल उगाते थे। भूमई निवासी श्रीयादव बताते हैं, जब नदी में रजौली प्रखंड अंतर्गत जॉब जलाशय बांध बांधकर डैम का निर्माण कर दिया गया, तब से पानी का प्रवाह कम हुआ और खरीफ फसल की पैदावार प्रभावित होने लगी। नदी की भूमि का अतिक्रमण कर दबंगों ने बना लिया घर :

वहीं अतिक्रमणकारियों का अतिक्रमण चरम पर पहुंच गया है। पचरुखी पुल के पास से भुमई तक अतिक्रमण को सहज ही देखा जा सकता है। इतना ही नहीं दबंगों द्वारा किनारे को भरकर वहां पर घर बनाया जा रहा है। सामान्य नागरिक झगड़े के डर से कुछ भी कहने से परहेज कर रहे हैं। वहीं, दबंगों की खुरी नदी की भूमि का अतिक्रमण करने का खुली छूट मिली है। यही हाल नवादा शहर का है। मिर्जापुर से लेकर बाईपास में पुल तक अतिक्रमणकारियों ने नदी को नाला बना रखा है। पिछले 5-6 वर्षो से बरसात कम होने के कारण नदी में पानी का स्तर घटता जा रहा है। फिलहाल स्थिति यह है कि नदी सूखी हुई है। कहीं पानी दिखाई नही पड़ रहा है। वहीं प्रबुद्ध लोगों का कहना है कि स्थिति ऐसी ही कुछ वर्षो तक कायम रही तो नदी का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा।

क्या कहते हैं किसान :

खुरी नदी के मुहाने पर डैम बना दिए जाने से बरसात के दिनों में भी नदी भी सूखी रहती है। नदी में पानी नहीं आने से सिंचाई के अभाव में फसल मारी जाती है ।

-राजकुमार यादव, किसान। फोटो-13 -कृषि मुख्य रूप से बरसात पर आधारित है। वर्षा का पानी जब नदी से होकर प्रवाहित होता था तो किसान बांध लगाकर नदी के पानी को खेतों तक लाकर कृषि कार्य करते थे। लेकिन अब तो नदियां ही प्यासी हैं तो धरती की प्यास कैसे बुझेगी?

-विजय यादव, किसान। फोटो-12


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.