यहां तंत्र साधना से लेकर मनोवांछित फल की होती है प्राप्ति
नारदीगंज बीच बाजार स्थित माता काली का मंदिर शांति सद्भावना व एकता का प्रतीक है।
नारदीगंज बीच बाजार स्थित माता काली का मंदिर शांति, सद्भावना व एकता का प्रतीक है। आम धारणा है कि मनोवांछित मुरादें पूरी करती है माता काली। यह मंदिर करीब ढ़ाई सौ वर्ष पुराना है। शारदीय नवरात्र के प्रारंभ होते ही श्रद्धालु पूजा अर्चना की तैयारी में श्रद्धा व उत्साह से जुट जाते हैं। मिट्टी की प्रतिमा स्थापना कर पूजा अर्चना की जाती है। मन्नतें पूरी होने पर पूजा अर्चना के साथ खोंइछा भरने वालों का यहां तांता लगा रहता है। संतान प्राप्ति होने के बाद याचक अपने पुत्र का मुंडन संस्कार यहां आकर कराते हैं। दूर-दराज के लोग तंत्र-मंत्र की सिद्धि के लिए मंदिर आया करते है।
---------------------
माता की महिमा से जुड़ी है कई गाथाएं
-कहा जाता है कि ढ़ाई सौ वर्ष पूर्व एक कुंभकार नवरात्र के समय में अपने शरीर पर मिट्टी का लेप लगाकर व जीभ निकालकर गांवों में घुमा करता था। माता काली के उसके रूप को देखकर लोगों की इच्छा हुई कि क्यों न माता काली की मिट्टी की प्रतिमा बनाकर पूजा अर्चना किया जाए। उसके बाद से पूजा शुरू हुआ। यह परम्परा दो तीन वर्ष ही चल पाया। उसके बाद लोगो ने माता काली की पूजा अर्चना करना छोड़ दिया। पूजा छोड़ने के बाद गांव व बाजार में महामारी फैल गई। लोग सहम गए कि माता का प्रकोप है। उसके बाद प्रतिमा स्थापना कर यहां पूजा अर्चना की गई। पूजा-अर्चना शुरू होते ही महामारी पर काबू पाया गया। प्रतिमा विसर्जन का काम नारदीडीह स्थित आहर में किया गया। अगले वर्ष नवरात्र के समय पानी के अभाव में खेतों में लगा धान सूखने लगा। पानी के लिए सभी जगह त्राहिमाम मचा हुआ था। उस समय नारदीगंज के जमींदार अहमद रजा हुआ करते थे। उन्होंने मंदिर के समीप आकर कहा कि इस बार पानी नहीं है तो माता की प्रतिमा को कब्र में दफना देंगे क्या। अगर देवी-देवताओं में शक्ति है तो वर्षा करा कर दिखा दें। इधर जमींदार मंदिर के समीप अपनी बात को बोलकर अपने घर पहुंचे ही थे कि बिना बादल के ही काफी बारिश हुई। इलाका जलमग्न हो गया। जमींदार अहमद रजा ने अपनी गलती स्वीकारी और माता काली के दरबार में पहुंचकर माथा टेका और कहा कि मैं भी आपकी पूजा करूंगा। तब जाकर वर्षा थमा। इसके बाद प्रतिमा का विसर्जन भव्य जुलूस के साथ नारदीडीह गांव स्थित आहर में किया गया। तब से मां काली की शोभा यात्रा के दौरान अभी भी जमींदार के वंशजों द्वारा माता की गोदभराई व पूजा अर्चना की परंपपरा का निर्वहण किया जा रहा है।