पास रहकर भी अपनों से दूर हैं स्वजन
क्वारंटाइन सेंटरों पर आए प्रवासियों के स्वजन उनसे मिलने के लिए लालायित हो रहे हैं।
क्वारंटाइन सेंटरों पर आए प्रवासियों के स्वजन उनसे मिलने के लिए लालायित हो रहे हैं। यही कारण है कि हर सेंटरों पर अपनों की एक झलक पाने के लिए उनकी पत्नी, माता-पिता के साथ-साथ बाल -बच्चे एक पहुंचते रहते हैं। ऐसे में वहां उपस्थित जनप्रतिनिधि व प्रशासनिक अधिकारियों को शारीरिक दूरी बनाए रखनी के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ रही है। ऐसे में जो लोग स्वजनों से नहीं मिल पाते हैं। उन्हें अपनो से नहीं मिलने का दर्द कचोटने लगता है। रोह प्रखंड की कुंज पंचायत स्थित क्वारंटाइन सेंटर पर यह दृश्य सोमवार को देखने को मिला। पंचायत स्तरीय सभी क्वारंटाइन सेंटरों का यही हाल है। क्योंकि गांव पास में ही होने के कारण ग्रामीण स्वजनों से मिलने के सेंटरों पर पहुंच जा रहे हैं।
पहले प्रदेश से घर आने पर अपने बाल बच्चों के साथ बैठकर सुख-दुख की बातें कर मन को हल्का करते थे। परंतु कोरोना वायरस के कारण न चाहते हुए प्रदेश से लौटे लोग पास आकर भी स्वजन से दूर ही रह जाते हैं। क्योंकि उन्हें 21 दिनों के लिए सेंटरों में क्वारंटाइन किया जा रहा है। बावजूद अपना गुस्सा भी वहां उपस्थित जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों पर उतारने से भी नहीं हिचकते हैं। पर उन्हें कौन समझाए की यह उनके भले व कोरोना जैसी बीमारी से बचाव के लिए ऐसा किया जा रहा है। क्वारंटाइन सेंटर पर अपने स्वजनों से मिलने के लिए आने वालों की खासकर महिलाओं की आंखें इस कदर नम हो जाती हैं कि वहां उपस्थित रोग कुछ क्षण के लिए भावुक हो जाते हैं। ऐसे में उपस्थित लोग अपनी ड्यूटी को भूलते तो नहीं परंतु दूरी बनाकर अपने स्वजनों से कुशल क्षेम पूछने की आजादी दे देते हैं। ऐसे मौके पर क्वारंटाइन सेंटर का नजारा किसी जेल कम नहीं लगता है। ग्रिल के अंदर प्रवासी होते हैं और बाहर सड़क पर मुलाकाती के रूप में उनके स्वजन। यह दृश्य वहां से गुजरने वाले आम लोगों के लिए भी करुणादाई बन जाता जाता है। वैसे क्वारंटाइन सेंटर पर प्रवासियों को खाने-पीने व रहने की हर सुविधा प्रदान की जा रही है। परंतु घर के पास आकर भी अपनों से 21 दिनों तक अपनों से दूर रहने का दर्द तो रहता ही है।