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पढ़ते-पढ़ते शिक्षक की भूमिका में आ गया एक छात्र

नवादा। आईआईटी दिल्ली में सिविल इंजीनिय¨रग के अंतिम वर्ष का छात्र रीतेश कुमार अपनी पढ़ाई

By Edited By: Published: Sun, 04 Sep 2016 09:16 PM (IST)Updated: Sun, 04 Sep 2016 09:16 PM (IST)
पढ़ते-पढ़ते शिक्षक की भूमिका में आ गया एक छात्र

नवादा। आईआईटी दिल्ली में सिविल इंजीनिय¨रग के अंतिम वर्ष का छात्र रीतेश कुमार अपनी पढ़ाई के बाद का बचा हुआ समय नौनिहालों को आगे बढ़ाने में देते हैं। एक छात्र को शिक्षक की भूमिका खूब रास आ रही है। पूरे मनोयोग से वे इस कार्य में लगे हैं। बच्चे भी आईआईटीयन को अपने बीच पाकर खुश होते हैं। और जीवन में सफलता के मार्ग में सहयोग के लिए रीतेश सर को धन्यवाद देते हैं। नवादा जिले के पकरीबरावां के रेवार गांव के रीतेश साधारण परिवार से आते हैं। बचपन से ही मेधावी थे। अपनी मिहनत के बूते जवाहर नवोदय विद्यालय में दाखिला लिया। नवोदय विद्यालय में पढ़ाई के दौरान ही एक ऐसा प्लेटफार्म मिला कि वे पढ़ने के साथ पढ़ाने की कला सीख गए।

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टीचर्स डे ने दिया पढ़ाने का प्लेटफार्म

-हुआ ये कि रीतेश नवोदय विद्यालय में नौवीं के छात्र थे। स्कूल में टीचर्स डे के दिन एक प्रथा थी कि उस दिन टीचर्स की बजाय छात्र ही क्लास लिया करते थे। टीचर्स डे स्कूल में बहुत ही अच्छे से सेलेब्रेट किया जाता था। इसकी तैयारी बहुत दिन पहले से शुरू हो जाती थी। टीचर्स डे पर कुछ स्टूडेंट ने फि•ाक्सि टीचर के रूप रीतेश को काम करने को कहा। पहले तो वे रा•ाी नहीं हुए लेकिन दवाब बना तो रा•ाी हो गए। वे बतौर पीजीटी फि•ाक्सि टीचर बने और 9 से 12 तक के छात्रों को पढ़ाया। छात्र शिक्षकों के पर फार्मेंस को जज करने के लिए 12 लोगों की टीम थी। शाम में सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन हुआ और अंत में जब प्राइ•ा डिस्ट्रीब्यूशन की बारी आई तो तीसरे स्थान पाने बाले के नाम की घोषणा हुई। फिर दूसरे की और जब पहली पोजिशन पाने बालों का नाम अनाउन्स करना था तो काफी टाइम लिया और जब घोषणा हुई तो वह नाम था रीतेश का। पहले तो उन्हें यकीन नहीं हुआ। जब साथी छात्र प्राइज के लिए स्टेज पे जाने लगे तो आंखों में आंसू थे। पूरा हॉल तालियों से लगातार गूंज रहा था और रीतेश लगातार रो रहे थे। ¨प्रसिपल एवं सारे टीचर्स जब स्टेज पर आकर अवॉर्ड दिया और लोग लगातार तालियां बजा रहे थे। उस समय मन में काफी कुछ उमड़ घुमड़ रहा था। दरअसल, रीतेश स्कूल में एक शांत छात्र, भीड़ से कटा-कटा रहने वाले के रूप में जाने जाते थे।

कई उपनामों से पुकारे जाने लगे रीतेश

-इस दिन के बाद स्कूल के प्रिन्सिपल, कई टीचर्स और दोस्त कई अलग-अलग नामों से पुकारने लगे। कोई डीसकार्टा जो कि एक साइंटिस्ट का नाम है तो कोई फीजीसीस्ट आदि नाम से बुलाते थे। उस दिन को रीतेश कभी नहीं भूल रहे हैं। वह दिन जीवन के बदलाव का दिन था। उसी मंच से मन में संकल्प लिया कि एक दिन ऐसा कुछ करुंगा कि पूरा देश और दुनिया तालियां बजाएगी। तब से लक्ष्य को सामने रख लगातार मेहनत करता रहा।

जिले के छात्रों के लिए शुरू किया प्रयास

-रीतेश अपने जिले के छात्र-छात्राओं के लिए एक इनिशियेटिव की शुरूआत कर चुके हैं। खुद एक छात्र हैं लेकिन समय बचाकर बच्चों को मोटिवेट करते हैं। जब कभी दिल्ली से घर लौटे तो स्कूलों में बच्चों के बीच हाजिर हो जाते हैं। मिशन को देशव्यापी बनाना लक्ष्य है। ऐसे लोगों की टीम तैयार कर रहे हैं। चर्चा के लिए पीएम को भी पत्र लिखा है। एजुकेशन सिस्टम को एक अलग स्वरूप देने की जंग छेड़ने की तैयारी उनकी है। इस साल गर्मी की छुट्टियों में जब वे आए तो जिले के हर हिस्से में स्कूलों में जाकर बच्चों को सफलता का गुर बताया। उनके इस कार्य में नालंदा एसपी कुमार आशीष व वहां के डीडीसी आईएएस अधिकारी कुंदन कुमार वारिसलीगंज में छात्रों की क्लास ले चुके हैं।

कभी भरपेट भोजन के लिए लिया था नामांकन

-रीतेश जब स्कूली शिक्षा ग्रहण कर रहे थे तो नवोदय विद्यालय में नामांकन लेने की सोची। खूब मेहनत किया और सफल भी रहे। दरअसल, नवादा जिले का जवाहर नवोदय विद्यालय उनके गांव में ही था। उन्हें पता था कि वहां भरपेट खाने को मिलता है। लेकिन 9 वीं के बाद उन्होंने नवोदय विद्यालय को छोड़ दिया। और बिहार बोर्ड से मैट्रिक की परीक्षा पास की। 2013 में इंटर पास करने के साथ ही आईआईटी में भी सफल रहे।


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