मतदाताओं को खल रहा उच्च शिक्षा व रोजगार के अवसर में कमी
बिहारशरीफ। नालंदा जिले में सात विधानसभा क्षेत्र हैं जहां तीन नवंबर को मतदान होना हैं। हर चुनाव की तरह इस बार भी जातीय समीकरण का जोर है। परंतु युवा मतदाता मुद्दों की कसौटी पर भी दलों व प्रत्याशियों को कस रहे हैं। 18 से लेकर 39 साल तक के नौ लाख 83 हजार 979 वोटरों के लिए उच्च शिक्षा व रोजगार के अवसर सबसे अधिक मायने रखता है।
बिहारशरीफ। नालंदा जिले में सात विधानसभा क्षेत्र हैं, जहां तीन नवंबर को मतदान होना हैं। हर चुनाव की तरह इस बार भी जातीय समीकरण का जोर है। परंतु युवा मतदाता मुद्दों की कसौटी पर भी दलों व प्रत्याशियों को कस रहे हैं। 18 से लेकर 39 साल तक के नौ लाख 83 हजार 979 वोटरों के लिए उच्च शिक्षा व रोजगार के अवसर सबसे अधिक मायने रखता है। मौजूदा परिप्रेक्ष्य में यह जमात दलीय आस्था से मुक्त दिख रही है। जिस किसी दल या प्रत्याशी पर भरोसा जमेगा, उसे जातीय खांचे व दलीय सीमा को तोड़कर मतदान कर सकते हैं। इसके अलावा पटना को रांची से जोड़ने वाली एनएच 20 बिहारशरीफ बाइपास में आए दिन लगने वाला भीषण जाम, जिले के सभी प्रमुख बाजारों में सड़क का अतिक्रमण, नदी व पइन का अतिक्रमण, पर्यटन को रोजगार का बड़ा जरिया बनाने के लिए ऐतिहासिक व पुरातात्विक महत्व के स्थलों पर पर्यटक सुविधाओं का विकास तथा हर पंचायत में पुस्तकालय की स्थापना प्रमुख मुद्दे हैं।
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1. उच्च शिक्षा व स्तरीय कोचिंग की व्यवस्था नहीं
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नालंदा का संधि विच्छेद ना अलम दा है, जिसका शाब्दिक अर्थ अनंत दान देने वाला होता है। जिले को यह नाम प्राचीन काल में शिक्षा का अनंत दान देने के कारण मिला था। आज परिस्थितियां ठीक विपरीत हैं। पूरे जिले में नियमित पढ़ाई कराने वाले कॉलेज नहीं हैं। ग्रेजुएशन का सेशन हर साल देर होता है। छात्र तीन की बजाए पांच साल में ग्रेजुएशन की डिग्री ले पाते हैं। व्यवसायिक शिक्षा लेने के लिए छात्रों को राज्य के बाहर जाना पड़ता है। विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए स्तरीय कोचिग का अभाव है। मेडिकल व इंजीनियरिग कॉलेजों के इंट्रेंस की तैयारी के लिए जिले के हजारों विद्यार्थी दिल्ली, कोटा व पटना का रूख करते हैं।
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2. रोजगार के अवसरों की है कमी
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नालंदा कृषि प्रधान जिला है। विभिन्न तरह की सब्जी की खेती में जिला सूबे में टॉप 3 में शामिल है। धान, गेहूं, मक्का, मूंग, धनिया, चना, सरसों व ईख यहां की प्रमुख फसलें हैं। समय पर फसल उचित कीमत पर बिक गई तो किसान शुक्र मनाते हैं। अन्यथा किसानों को औने-पौने भाव में सब्जियां व अनाज बेचने पड़ते हैं। इसी साल मक्का आधी कीमत 350 रुपए प्रति मन बेचना पड़ा। वजह लॉक डाउन के कारण मक्का खरीद के लिए दूसरे राज्यों के व्यापारियों का नहीं आना रहा। नालंदा में एक भी खाद्य प्रसंस्करण यूनिट नहीं है। जिससे उपज को अलग-अलग उत्पादों में बदला जा सके। जबकि यहां की क्षमता इतनी है कि जिले के सभी 20 प्रखंड में खाद्य प्रसंस्करण की बड़ी यूनिट लगाई जा सकती है। अगर ऐसा हो रोजगार के क्षेत्र में क्रांति आ सकती है। फिलहाल, स्थिति यह है कि ग्रेजुएशन करके अधिकांश विद्यार्थी सरकारी या बैंक की नौकरी की तैयारी में जुट जाते हैं। इन क्षेत्रों में नौकरियां सीमित हैं, इस कारण 95 फीसद विद्यार्थी बेरोजगार रह जाते हैं। उनके सामने रोजगार का कोई विकल्प नहीं रहता तो छोटी-मोटी प्राइवेट नौकरियां करने लग जाते हैं। जबकि जिले में खेती को रोजगार का जरिया बनाने की असीम संभावनाएं हैं।
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3. टूरिस्ट स्पॉट पर सुविधाएं बढ़े तो बनेंगे रोजगार के अवसर
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नालंदा में यूनेस्को द्वारा वर्ल्ड हेरिटेज की सूची में शामिल प्राचीन नालंदा विवि के भग्नावशेष के रूप में बड़ी थाती मौजूद है। परंतु इसके इर्द-गिर्द पर्यटन सुविधाओं का अपेक्षित विकास नहीं हो सका है। यहां हर साल लाखों देशी-विदेशी पर्यटक आते हैं, परंतु ठहर नहीं पाते। विवि के पास एक अदद वेंडिग जोन भी नहीं बन सका। इससे विवि के गेट के इर्द-गिर्द सड़क का अतिक्रमण करके दर्जनों फुटपाथी दुकानें सजी हुई थीं। यह दृश्य विवि की गरिमा के अनुकूल नहीं है। इसी तरह राजगीर में पुरातात्विक व एतिहासिक महत्व के कई स्थल हैं, जिनका प्रचार-प्रसार नहीं होने के कारण पर्यटकों की पहुंच से दूर हैं। इनमें बौद्ध धर्म की प्रथम संगिती वाली सप्तपर्णी गुफा, गृद्धकूट पर्वत के पीछे अशोक कालीन स्तूप, जरासंध का अखाड़ा, ब्रह्मकुंड के पीछे पर्वत पर महाभारतकालीन शिव मंदिर समेत कई अन्य स्थल शामिल हैं।
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4. बिहारशरीफ बाइपास में जाम व बाजारों के अतिक्रमण बने नासूर
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पटना को रांची से जोड़ने वाला एनएच 20 ही बिहारशरीफ शहर का बाइपास है। बाइपास में 17 नंबर व देवीसराय दो जगहों पर चौराहे और पुलिस लाइन के पास रेलवे क्रॉसिंग सड़क जाम के प्वाइंट बन गए हैं। आए दिन बाइपास में जाम लगना नियति बन गई है। जिससे जिले की रफ्तार थम जाती है। यात्रा के समय में घंटे से दो घंटे इजाफा हो जाता है। इस जाम में एंबुलेंस फंस जाए तो मरीज की मौत तक हो सकती है। अभी चार दिन पहले ही बिहारशरीफ बाइपास के जाम में पावापुरी मेडिकल कॉलेज के सौ विद्यार्थियों की बस फंस गई थी। जिससे वे समय पर परीक्षा देने चंडी स्थित नालंदा इंजीनियरिग कॉलेज में बने केन्द्र नहीं पहुंच सके और परीक्षा देने से वंचित रह गए। इसी तरह जिला मुख्यालय बिहारशरीफ की सोहसराय, भरांव पर व पुल पर के बाजार अतिक्रमण के शिकार हैं। इस कारण दिन भर जाम की स्थित बनी रहती है। इन बाजारों से होकर गुजरने वाले मोहल्लों के हजारों लोगों के लिए यह बड़ी आफत है। जाम के भय से कई लोग सुबह में घर से निकलते हैं तो दिन में घर नहीं लौटते। ट्रैफिक सामान्य होने के बाद एक ही बार रात में ही घर लौटते हैं। इस्लामपुर और हिलसा बाजार में भी अतिक्रमण की भयावह स्थिति है। बिहारशरीफ बाइपास की फोर लेनिग व रेलवे क्रांसिग पर ओवर ब्रिज बनने का टेंडर हो चुका है। इस काम को पूरा होने में कम से कम दो-तीन साल लग जाएंगे। वहीं हिलसा में भी पूर्वी व पश्चिमी बाइपास बन रहा है। जिससे लोगों को बाजार के जाम से निजात मिल जाएगी।
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5. नालंदा की पांचों प्रमुख नदियां और दर्जनों पइन पर अवैध कब्जा ..............
नालंदा जिले में पांच प्रमुख नदियां पंचाने, मुहाने, गोइठवा, पैमार व जिराइन हैं। ये पांचों नदियां जगह-जगह अतिक्रमण का शिकार होकर नाले की तरह हो गई हैं। बरसात में पानी आने पर उफन जाती हैं, निचले इलाकों में बाढ़ आ जाता है और सैकड़ों एकड़ फसल बर्बाद हो जाती है। इनमें पंचाने व मुहाने नदी पर सर्वाधिक अवैध कब्जा है। पंचाने की पुरानी धार पर तो बिहारशरीफ शहर का आधा हिस्सा बस चुका है। सोहसराय होते हुए पंचाने की नई धारा के इर्द-गिर्द भी अवैध कब्जा करके सैकड़ों घर बन चुके हैं। मुहाने नदी पर इस्लामपुर और चंडी प्रखंड मुख्यालय में लोगों ने जमकर अवैध कब्जा किया है। इन दोनों जगहों पर नदी का अतिक्रमण स्पष्ट दिखता है। बिद प्रखंड मुख्यालय में पुल पर गोइठवा नदी के जमीन पर कब्जा करके पूरी बस्ती बस गई है।