पाबंदी के बावजूद पॉलीथिन के प्रयोग पर कार्यपालिका खामोश
नालंदा। पॉलिथीन के मामले में न्यायपालिका ने अपना काम कर दिखाया। अब देखना है कि विधायिका तथा कार्यपाल
नालंदा। पॉलिथीन के मामले में न्यायपालिका ने अपना काम कर दिखाया। अब देखना है कि विधायिका तथा कार्यपालिका इस मामले में कितना संजीदा है। हाई कोर्ट के आदेश के कई दिन बीत गए लेकिन अब तक न तो बाजारों में जानलेवा पॉलिथीन की रौनक में कमी आई है और न राज्य सरकार पॉलिथीन के पूर्ण प्रतिबंध पर कानून बनाने की दिशा में कोई कदम उठाती दिख रही है। पूरे देश में अब तक सोलह राज्यों ने पॉलिथीन को पूरी तरह से बैन कर दिया है। ये सारे राज्य साक्षरता के मामले में भी उंचे पायदान पर है। अब देखना यह है कि बिहार जैसे राज्य में उच्च न्यायालय के आदेश को कितना सम्मान मिल पाता है। क्योंकि इसके पहले न्यायपालिका ने प्रदूषण नियंत्रण को ले जुगाड़ वाहनों के संचालन पर पूर्ण रोक लगाया था लेकिन अपने अपने जिले की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ। जुगाड़ वाहन आज भी सड़कों पर फर्राटे के साथ बड़ी मात्रा में प्रदूषण मुक्त कर रहे है।
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जागरण संवाददाता, बिहारशरीफ : एक सप्ताह पहले उच्च न्यायाल के खंडपीठ ने राज्य सराकर को पॉलिथीन के प्रयोग पर पाबंदी लगाने के साथ इस पर कानून बनाने का हुक्म दिया था। हालांकि इस मामले की अगली सुनवाई की तिथि 24 सितम्बर को निर्धारित की है। ताकि राज्य सरकार पर्यावरण में बाधक बने पॉलिथीन के मामले में राज्य की स्थिति का पूर्ण ब्यौरा दे सके। ज्ञातव्य हो हाईकोर्ट ने समाचार-पत्र में छपे मामले को संज्ञान में लेते हुए पॉलीथिन पर पाबंदी लगाने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि पॉलिथीन ड्रेनेज सिस्टम में बाधक के साथ स्वास्थ्य के प्रतिकूल है। इसपर पहले ही पाबंदी लगाई जानी चाहिए थी।
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पॉलिथीन को लेकर विशेषज्ञों की राय
दुनिया भर के विशेषज्ञों की राय पॉलिथीन के मामले में समान है। उनका कहना है कि पॉलिथीन निर्माण की रफ्तार यदि यही रही तो 2020 तक पूरी दुनिया में 12 अरब टन प्लास्टिक कचरा जमा हो चुकेगा। जिसे साफ करने में सैंकड़ों वर्ष लग जाएंगे। वहीं पूरी दुनिया के कुल तेल का 8 प्रतिशत तेल प्लास्टिक उत्पादन में खत्म हो जाते हैं।
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किन चीजों से हुआ है प्लास्टिक का निर्माण
प्लास्टिक कार्बन परमाणु पर आधारित है। जिसे पॉलिमर कहा जाता है। यह कार्बन, हाइड्रोजन, ऑकसीजन, नाइट्रोजन, क्लारेीन और सल्फर जैसे तत्वों से मुक्त सामग्री है। इसे जलाने जहां यह बड़ी मात्रा में कार्बन मुक्त करता है वहीं जमीन के अंदर गाड़ने पर यह जमीन की उर्वरा शक्ति खत्म कर देता है। इसे नष्ट होने में करीब हजार वर्ष लग जाते हैं।
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पचास माइक्रोम से पतले पॉलीथिन पर लगी है रोक
एक सप्ताह पहले उच्च न्यायालय ने पॉलिथीन पर रोक लगाने का आदेश राज्य सरकार को दिया। इसके अंतर्गत 50 माइक्रोम से पतले पॉलीथिन पर रोक लगाने का आदेश अभी दिया गया है। इस पॉलिथीन का प्रयोग फज, सब्जी दूध लाने में उपयोग किया जाता है। इसके साथ ही बिस्किट के रैपर, चिप्स तथा अन्य फास्ट फूड के पैकेट में प्रयुक्त रैपर काफी खतरनाक है जिसे खत्म होने में हजार वर्ष का समय लग जाता है।
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खुले आम प्रयुक्त किए जा रहे पॉलिथीन
न्यायालय के आदेश की धज्जियां पूरे जिले में उड़ाई जा रही है। दुकान से लेकर चलंत ठेले पर पॉलिथीन का प्रयोग व्यापक रूप से किया जा रहा है। आंकड़े बताते हैं कि पूेर जिले में प्रतिदिन हजारों ¨क्वटल पॉलिथीन की खपत है।
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महिलाओं की भूमिका महत्वपूर्ण
महिलाएं पॉलीथीन रूपी जहर को फैलाने पर रोक लगा सकती हैं क्योंकि महिलाशक्ति की प्रतिमूर्ति है। वह रचनात्मक प्रकृति की होती है। घर बच्चों व समाज की निर्मात्री होती हैं। इसलिये वह अपनी प्रवृत्तिनुसार पॉलीथीन प्रदूषण निवारण में रचनात्मक कार्य कर सकती हैं। वह घर के बच्चों पर पुरूषों को घर से बाहर जाने वक्त थैले ले जाने को प्रोत्साहित कर सकती हैं।
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सुने चिकित्सक की
शहर के जाने-माने चिकित्सक व मोती मोमोरियल के संचालक डॉ. अवधेश कुमार कहते हैं कि पॉलिथीन जीवन के लिए घातक है। इसमें पाए जाने वाले कार्बनिक पदार्थ कैंसर की ओर धकेलते हैं। अक्सर लोग चाय की चुस्की प्लास्टिक के ग्लास में लेते हैं जो स्वास्थ्य के लिए घातक है। हमें इसके उपयोग से बचना चाहिए।
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क्या कहते अधिकारी
पॉलिथीन पर रोक लगाने का उच्च न्यायालय का निर्णय स्वागत योग्य है। इसके लिए नगर विकास विभाग द्वारा अब तक कोई आदेश निर्गत नहीं किया गया है आदेश आते ही शहर में पॉलिथीन के प्रयोग पर रोक लगा दी जाएगी। वैसे भी पॉलिथीन जीवन के लिए घातक है। जिस पर अंकुश लगाने के लिए लोगों को स्वत: आगे आना चाहिए।
सौरभ जोरबाल
नगर आयुक्त