देश भर में छा गया बिहार का यह बुनकर, नालंदा के इस लाल को मिलेगा राष्ट्रीय पुरस्कार
नालंदा के कपिलदेव को मिलेगा राष्ट्रीय पुरस्कार। देश के 31 बुनकरों में बिहार से अकेले हैं कपिलदेव प्रसाद। 20 साल बाद बसवनबिगहा की बुनकरी फिर से राष्ट्रीय फलक पर।
बिहारशरीफ [रजनीकांत]। 2017 में आयोजित हैंडलूम प्रतियोगिता में खूबसूरत कलाकृति बनाने के लिए देश के 31 बुनकरों को राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए चुना गया है। इनमें नालंदा के कपिलदेव प्रसाद भी शामिल हैं। बिहार को गौरव दिलाने वाले ये एकमात्र बुनकर हैं। इनके चयन ने बसवनबिगहा की बुनकरी को दो दशक बाद फिर से राष्ट्रीय फलक पर चर्चा में ला दिया है। उन्हें केंद्रीय कपड़ा मंत्रालय यह सम्मान देगा, लेकिन अभी इसकी तिथि तय नहीं हुई है।
नालंदा के पर्दें व चादर बढ़ा चुके हैं राष्ट्रपति भवन की शोभा
बिहारशरीफ प्रखंड के बसवनबिगहा के बुनकरों के बनाए पर्दे व चादर कभी राष्ट्रपति भवन की शोभा बढ़ाते थे। राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के कार्यकाल के बाद ऑर्डर मिलने बंद हो गए। वर्ष 2000 तक बिहार राज्य निर्यात निगम की ओर से यहां के पर्दे व बेडशीट जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया व अमेरिका भेजे जाते थे। इसके बाद निगम पर संकट आया तो निर्यात भी बंद हो गया। यहां की बनी बावन बूटी साड़ी की मार्केटिंग हैंडलूम कॉरपोरेशन किया करता था। अच्छी मांग थी। अब वह भी बंद हो गया।
अतीत बन गया नालंदा का इकलौता बुनकर स्कूल
कपिलदेव प्रसाद ने बताया कि आज के बाजार के लिहाज से बुनकरों की बनाई साड़ी, चादर व पर्दे की ब्रांडिंग व मार्केटिंग की जरूरत है। करीब 6 दशक से बुनकरी में लगा हूं। दादा शनिचर तांती ने इसकी शुरुआत की थी। फिर पिता हरि तांती ने सिलसिले को आगे बढ़ाया। जब 15 साल का था, तब बुनकरी को रोजगार बनाया। अब बुजुर्ग हो गया हूं तो बेटा सूर्यदेव सहयोग करता है। 70 के दशक को याद करते हुए उन्होंने बताया कि उस वक्त बिहारशरीफ स्थित नवरत्न महल में सरकारी बुनकर स्कूल खुला था। यह स्कूल हाफ टाइम था। जहां नियमित पढ़ाई जारी रखते हुए बच्चे बुनकरी का इल्म सीख जाते थे। 1963 से 65 तक यहीं बुनकरी सीखी। मेरे प्रेरणास्रोत रामनंदन सर थे। धीरे-धीरे शिक्षक रिटायर होते गए। नई बहली हुई नहीं। इस कारण 1990 में स्कूल बंद हो गया।
124 लोगों का है समूह, नियमित बाजार की दरकार
कपिलदेव प्रसाद ने बताया कि बसवन बिगहा प्राथमिक बुनकर सहयोग समिति का गठन किया गया। इसमें 124 बुनकर हैं लेकिन नियमित काम नहीं मिलने के कारण 25 से 30 परिवार ही बुनकरी को रोजगार बनाए हुए हैं। अब लोग मिल के कपड़ों को ज्यादा पसंद करते हैं। 2018-19 में 31 लाख का कपड़ा बिका लेकिन लागत के हिसाब से मुनाफा नहीं आया। मजूदरी भी रोजाना 300 से 600 के बीच देनी पड़ती है। बावन बूटी साड़ी 1200 से 2500 रुपए तक, डबल बेडशीट 1000 रुपए में, सिंगल बेडशीट 600 से 800 रुपए तक और कुशन कवर 400 रुपए तक में बिकता है। इसका नियमित बाजार मिल जाए तो यह फिर मुनाफे का उद्यम बन सकता है।