हर शनिवार पहले चाय-बिस्किट, फिर करते हैं मुफ्त इलाज
बिहारशरीफ : महंगाई के दौर में थोड़ी रियायत मिल जाए तो हर आदमी को सुकून मिल जाता है, लेकिन आप बीमार हो
बिहारशरीफ : महंगाई के दौर में थोड़ी रियायत मिल जाए तो हर आदमी को सुकून मिल जाता है, लेकिन आप बीमार हों और कोई चिकित्सक आपका मुफ्त में इलाज कर दे, तो क्या कहना। डॉक्टर को भगवान का दर्जा इसलिए दिया गया है, क्योंकि वह गंभीर से गंभीर बीमार मरीज में भी जीने की आस जगा देता है। ऐसी ही उम्मीद शहर के प्रख्यात चिकित्सक डॉ. श्याम नारायण प्रसाद ने गरीब एवं असहाय मरीजों में जगाई है। पिछले 10 वर्षों से लगातार हर शनिवार को मां सीता देवी की स्मृति में 100 मरीजों का इलाज मुफ्त में करते हैं। इतना ही नहीं मरीजों को अपनी तरफ से चाय व बिस्किट भी पिलाते हैं ताकि मरीज को अपनेपन का अहसास करा सकें। इस वजह से वह गरीबों के साथ ही आम लोगों के बीच भी खासे फेमस हो गए हैं। नालंदा व आसपास के कई जिलों से कलीनिक पर इलाज करवाने आने वाले गरीब मरीज डाक्टर साहब को भगवान का दर्जा देते हैं। उनका कहना है कि जिस तरह से डाक्टर साहब गरीबों का इलाज हर सप्ताह के शनिवार को मुफ्त में करते हैं, उससे तो यही लगता है की अभी भी धरती पर डाक्टर के रूप में भगवान हैं। इस बारे में जब डॉक्टर श्यामनारायण से बात हुई तो उन्होंने कहा कि अच्छे बनकर बड़ा बनना आसान है लेकिन बड़े बनकर अच्छे बने रहना काफी मुश्किल होता है। जो सक्षम हैं, उनका इलाज तो हो जाता है लेकिन जिनके पास रुपए नहीं हैं, वो क्या करेंगे। ऐसे में फेमस होना या नाम कमाना बेकार है। कहा, वे आर्मी में डॉक्टर थे लेकिन मन नहीं माना। संघर्ष को देखा है, तंगी क्या होती है, उसे महसूस किया है। इसलिए इसे एक मिशन बनाया जो भी आते हैं, उनसे बात कर के पहले उन्हें मानसिक रूप से स्वस्थ्य करता हूं। कोशिश होती है कि सभी ठीक हो जाएं। रसलपुर गांव निवासी छोटू ¨सह के पुत्र डॉ. श्याम नारायण प्रसाद आईएमए नालंदा के तीन बार अध्यक्ष रहे। साथ ही प्रदेश स्तर पर वाईस प्रेसिडेंट रहे। रोटरी क्लब के असिस्टेंट डिप्टी गवर्नर व रोटरी क्लब बिहारशरीफ के अध्यक्ष रहे। 1980 में भागलपुर मेडिकल कॉलेज से इन्होंने एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की और 1985 में रिम्स से एमडी की डिग्री हासिल की। डॉ. श्याम नारायण प्रसाद ने बताया कि उन्होंने 10 वीं की पढ़ाई जिले के औंगारी स्थित सरकारी स्कूल से पूरी की। उबड़ -खाबड़ रोड, हाथ में अल्युमुनियम का बस्ता और बस्ते में स्लेट, कॉपी, किताब लेकर स्कूल जाना पड़ता था। पेड़ के नीचे पढ़ाई करना, यह सब आज भी इन्हें याद है। तकलीफ तो थी लेकिन मास्टर जी अच्छे थे। ठेंठ गवई अंदाज में कहा कि मास्टर साहब पढ़ाते अच्छा थे। बिजली तो मानो, उन दिनों सपने जैसा था। लालटेन वाला युग था गांव में। 12 वीं की पढाई नालंदा कॉलेज से पूरी की। पिता छोटू ¨सह लघु ¨सचाई विभाग में थे। मां सीता देवी, 5 भाई व 1 बहन का पूरा परिवार है। सभी भाईयों ने संघर्ष के दौर को देखा था। मेडिकल साइंस में नई-नई चीजों को जानने के लिए विदेशों में जाकर लेक्चर्स भी अटेंड करते हैं ताकि यहां के लोगों का बेहतर उपचार कर सकें।