सूफी मंसूर खान रह के मजार पर नौवां उर्स कल
बिहारशरीफ : तेरे दर पे आया हूं, कुछ लेकर जाऊंगा जैसी सदाएं पक्की तालाब स्थित हजरत सूफी मंसूर खान नक्
बिहारशरीफ : तेरे दर पे आया हूं, कुछ लेकर जाऊंगा जैसी सदाएं पक्की तालाब स्थित हजरत सूफी मंसूर खान नक्शबंदी रह. के दरगाह में गूंजने लगी हैं। मन्नतों की पोटली लिए राज्य व जिले के कई कोनों से उनके चाहने वालों की आमद शुरू हो गई है। दरगाह रंग-बिरंगी रोशनियों से रोशन हो चुका है। एक दिवसीय उर्स का आगाज शुक्रवार से होने जा रहा है, जहां अकीदतमंद का मिन्नतों का दौर शुरू होगा। शहर के बुजुर्ग हजरत सूफी मंसूर खान नक्शबंदी रह. के मजार पर 8 फरवरी को 9 वां उर्स लगेगा। इसमें सैकड़ों लोग शामिल होंगे। इसकी तैयारी पूरी कर ली गई है। सुबह की नमाज के बाद कुरआन ख्वानी के साथ उर्स की शुरुआत की जाएगी। शहर के पक्की तालाब मोहल्ले में उनकी मजार पर जाकर लोग फातेहा पढेंगे।
हजरत के पुत्र जफर अली खान उर्फ रूमी खान ने बताया कि नौ वर्ष पहले हजरत का इंतकाल हुआ था। तब से लेकर अब तक हर वर्ष इस मौके पर उर्स लगता है। इसमें नालंदा के अलावा शेखपुरा, गया, जहानाबाद, पटना, जमशेदपुर, रांची, बोकारो, कलकत्ता व अन्य जगहों से उनके श्रद्वालु आते हैं। बाद नमाज फजर से सुबह 8 बजे तक शेरपुर मोहल्ला के सूफी मंजिल परिसर में कुरआन ख्वानी का आयोजन किया जाएगा। सुबह 8 से 9 बजे तक कूल, फातेहा, तकरीर व मीलाद का आयोजन किया जाएगा। । 9 से 10 बजे सुबह में नात व समा की महफिल लगाई जाएगी। असर की नमाज के बाद शाम करीब 4: 30 बजे हजरत के मजार पर चादरपोशी के लिए घर से चादर निकलेगी और मजार पर चढ़ाई जाएगी। मगरिब की नमाज तक चादरपोशी का सिलसिला चलेगा। इसके बाद लंगर-ए-सुफिया का भी इंतजाम किया जाएगा।
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कौन थे सूफी मंसूर खान नक्शबंदी रहमतुल्लाह मखदुम नगरी बिहारशरीफ के मोहल्ला शेरपुर निवासी सूफी मंसूर खान नक्शबंदी रह. अनेक विशेषताओं और सूफियाना प्रवृत्ति के थे । 9 फरवरी 1932 को शेखपुरा जिला के मनयौरी गांव में आंखें खोलने वाले मंसूर अहमद खान ने प्राथमिक शिक्षा अपने घर पर प्राप्त की। इनके पिता हाजी हबीबुर्रहमान खान शेखपुरा जिला के प्रभावी शिक्षित लोगों में शुमार किए जाते थे । मैट्रिक पास करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए बिहारशरीफ आ गए और नालंदा कॉलेज से ग्रेजुएशन करने के बाद लोक सेवा आयोग के प्रतियोगिता परीक्षा में सम्मिलित हुए और सहकारिता पदाधिकारी बने और संयुक्त निबंधक सहकारिता विभाग के पद पर रहते हुए उन्होंने अपने पदीय दायित्व का निर्वह्न बड़ी सफलता पूर्वक किया तथा सेवानिवृत्त हुए। बचपन से ही वे धार्मिक प्रवृत्ति के थे। उन्होंने धार्मिक और आध्यात्मिक शिक्षा हजरत मुल्ला मोबीन (रह0) से प्राप्त किया। आध्यात्मिक शिक्षा ग्रहण करने के लिए अपने आध्यात्मिक गुरु की शिक्षा दीक्षा में रहकर प्राप्त किया। सूफी मंसूर खान के संपूर्ण जीवन पर अपने गुरु हजरत मुल्ला मोबीन (रह0) की शिक्षा दीक्षा का प्रभाव रहा। बाद में हजरत शहाबुद्दीन रह.कुत्व-ए- बंगाल से भी मुरीद हुए। ईश्वर प्रेम और मानव सेवा की भावना से परिपूर्ण थे। सरकारी सेवा से निवृत्त के बाद वह पूर्ण रूप से धार्मिक एवं सामाजिक कार्यों में व्यस्त हो गए। उनका निवास शेरपुर स्थित सूफी मंजिल गरीबों, असहायों व दुखी पीड़ित लोगों की सेवा का केंद्र बना रहा ।असहायों की सहायता उनका प्रिय कार्य था। फलस्वरुप भारी संख्या में लोग उनके सूफी आवास पर पहुंचते और उनकी जरूरतों और कठिनाइयों के लिए ईश्वर से दुआ करते। हजरत मखदूम ए जहां के भक्त सैयद अब्बास मद्रासी बाबा के काफी करीब रहे। सरकारी सेवानिवृत्त के बाद उन्होंने अपने आप को सूफियाना रंग में ढाल लिया।मन तो पहले से ही सूफी था, तन भी सूफी बना लिया। प्रतिदिन मखदुम साहब के आस्ताने पर हाजिरी देते। 24 रमजान को अपने गुरुदेव और 27 मुहर्रम को पनहेस्सा शरीफ में अपने दादा पीर सूफी सज्जाद (रह0) का उर्स को संपन्न कराते और कमरे में रहकर उपरवाले की आराधना करते । 16 मई 2010 को सूफी मंसूर खान का निधन हो गया। उनके नमाज-ए-जनाजा में सैकड़ों लोगों ने भाग लिया और भावुक होकर उन्हें अंतिम विदाई दी । बिहारशरीफ के ही शाहजहां के शासनकाल में निर्मित गवर्नर हबीब खान सूरी के ऐतिहासिक कब्रिस्तान हबीब खान मस्जिद मोहल्ला, पक्की तालाब में सुपुर्द-ए-खाक किए गया। अफसोस ये हमारी निगाहों से खो गए, हम लोग उनके फैज से महरूम हो गए । गर्व की बात यह है कि उनके पुत्र पुत्रियां उच्च पदों पर रहते हुए भी अपने पारिवारिक परंपरा को कायम रखे हुए हैं । उनके छोटे पुत्र जफर अली खान रूमी तो जनसेवा में स्वयं को लगा रखा है और अपने पिता के परंपरा अनुसार तमाम बुजुर्गानेदीन के स्थानों की जियारत और समाज सेवा का सौभाग्य समझते हैं।