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कृषि सुधार को लेकर बदलाव चाहते थे सुभाष चंद्र बोस : परिचय दास

बिहारशरीफ। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125 वीं जयंती पर नव नालंदा महाविहार (सम विश्वविद्यालय नालंदा) में कुलपति प्रो वैद्यनाथ लाभ की प्रेरणा एवं मार्गदर्शन से संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रोफेसर रवींद्र नाथ श्रीवास्तव परिचय दास (अध्यक्ष हिदी विभाग) ने कहा कि पराक्रम और पुरुषार्थ के प्रतीक सुभाष चंद्र बोस गहन चितन के अग्रदूत थे।

By JagranEdited By: Published: Sat, 23 Jan 2021 11:17 PM (IST)Updated: Sat, 23 Jan 2021 11:17 PM (IST)
कृषि सुधार को लेकर बदलाव चाहते थे सुभाष चंद्र बोस : परिचय दास
कृषि सुधार को लेकर बदलाव चाहते थे सुभाष चंद्र बोस : परिचय दास

बिहारशरीफ। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125 वीं जयंती पर नव नालंदा महाविहार (सम विश्वविद्यालय, नालंदा) में कुलपति प्रो वैद्यनाथ लाभ की प्रेरणा एवं मार्गदर्शन से संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रोफेसर रवींद्र नाथ श्रीवास्तव 'परिचय दास' (अध्यक्ष, हिदी विभाग) ने कहा कि पराक्रम और पुरुषार्थ के प्रतीक सुभाष चंद्र बोस गहन चितन के अग्रदूत थे। भारत के सभी वर्ग-समूह में वे बराबरी चाहते थे। गरीबी दूर करने और जमींदारी-उन्मूलन के बारे में उनके विचार आज भी मूल्यवान हैं। औद्योगिक समस्या से निपटने के लिए उन्होंने कृषि- सुधारों को पर्याप्त नहीं माना। वे इसमें अपेक्षित बदलाव के समर्थक थे। वे चाहते थे कि औद्योगिकीकरण की नई प्रक्रिया प्रारंभ हो। उन्होंने उपनिवेशों के मुक्तिसंग्राम को समाजवादी तंत्र की स्थापना का मार्ग बताया। वे महावीर के 'जियो और जीने दो' में विश्वास रखने वाले थे। उनकी ²ष्टि थी कि भारत में लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए कई दल होने चाहिए। उन्होंने कहा था कि उनकी लड़ाई केवल भारत के लिए नहीं अपितु 'मानवता' के लिए है। कार्यक्रम में भागीदारी करते हुए प्रो. सुशीम दुबे ने कहा कि सुभाष बाबू की वजह से अंग्रेजों को लगने लगा था कि भारत पर शासन करना मुश्किल होगा। डॉ. श्रीकांत सिंह ने कहा कि उनके व्यक्तित्व के निर्माण में अनेक महापुरुषों का योगदान रहा है। जिनमें बेनी माधव दास, स्वामी विवेकानंद, अरविद घोष, टैगोर, चितरंजन दास थे। डॉ. शुक्ला मुखर्जी ने उदाहरण देते हुए समझाया कि वे जीवन के प्रत्येक पल को 'परीक्षा'' मानते थे। उन्होंने रवींद्र नाथ टैगोर के गीत का उदाहरण देते हुए कहा कि जहां मन भयशून्य हो, सिर ऊंचा हो, ज्ञान मुक्त हो और दुनिया असंकीर्ण हो, हमें वहां जाना है। सुभाष उसी दिशा में भारतीय नागरिक को ले जा रहे थे।

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जय हिद का नारा और बापू को राष्ट्रपिता संबोधन दिया

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डॉ. विश्वजीत कुमार ने कहा कि देश के लिए 'जय हिद' का नारा, गांधी जी के लिए 'राष्ट्रपिता' सम्बोधन नेता जी ने दिया। जबकि गांधी जी ने सुभाष चंद्र बोस को 'नेता जी' सम्बोधन दिया। विभिन्न स्थानों व नगरों के नए नामकरण की प्रक्रिया उन्होंने 'भारतीयकरण' के पक्ष में आरम्भ की थी। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. सुनील प्रसाद सिन्हा ने किया। उन्होंने कहा कि सुभाष बाबू के जीवन के विविध आयाम थे। उनके सभी पक्षों से हमें सीखने व उत्साहित होने की प्रेरणा मिलती है। कार्यक्रम का संचालन डॉ. हरे कृष्ण तिवारी ने किया। उन्होंने अनेक कवियों के राष्ट्रीयता भरे उद्धरणों के साथ कार्यक्रम का संचालन किया। संगोष्ठी में प्रमुख रूप से डॉ. दीपंकर लामा, डॉ. विनोद चौधरी, डॉ. रूबी कुमारी, डॉ. प्रदीप दास, डॉ. मुकेश वर्मा, डॉ. नरेंद्र दत्त तिवारी, डॉ. बुद्धदेव भट्टाचार्य, डॉ. धम्म ज्योति, डॉ. सुरेश कुमार, जितेन्द्र कुमार आदि महाविहार के आचार्यों के साथ गैर शैक्षणिक सदस्य, शोधार्थी एवं छात्र- छात्राएं उपस्थित थीं।


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