Move to Jagran APP

डाक्यूमेंट्री दिखाएं तभी लोगों में जगेगा गौरव का भाव : मोहम्मद केके

बिहारशरीफ। विश्वगुरु से विश्व धरोहर बने नालंदा को फिर से जगाने उठाने और पुनर्निर्माण को लेकर राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर स्मृति न्यास की ओर से नालंदा कल- आज- कल विषय पर राष्ट्रीय परिचर्चा का आयोजन रविवार को किया गया। इसमें देश के जाने-माने पुरातत्वविद शिक्षाविद एवं बुद्धिजीवी शामिल हुए। पुरातत्ववेत्ताओं ने विश्व धरोहर प्राचीन नालंदा विवि को विश्व स्तरीय तरीके से संरक्षित करने के लिए रोड मैप बनाने पर जोर दिया।

By JagranEdited By: Published: Sun, 20 Jun 2021 11:20 PM (IST)Updated: Sun, 20 Jun 2021 11:20 PM (IST)
डाक्यूमेंट्री दिखाएं तभी लोगों में जगेगा गौरव का भाव : मोहम्मद केके

बिहारशरीफ। विश्वगुरु से विश्व धरोहर बने नालंदा को फिर से जगाने, उठाने और पुनर्निर्माण को लेकर राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर स्मृति न्यास की ओर से नालंदा कल- आज- कल विषय पर राष्ट्रीय परिचर्चा का आयोजन रविवार को किया गया। इसमें देश के जाने-माने पुरातत्वविद, शिक्षाविद एवं बुद्धिजीवी शामिल हुए। पुरातत्ववेत्ताओं ने विश्व धरोहर प्राचीन नालंदा विवि को विश्व स्तरीय तरीके से संरक्षित करने के लिए रोड मैप बनाने पर जोर दिया।

loksabha election banner

पूर्व एएसआइ निदेशक एवं जाने-माने पुरातत्वविद् मोहम्मद के के ने कहा कि नालंदा जैसी भारत में कोई दूसरी विरासत नहीं है। इसे संरक्षित करना सरकार और समाज दोनों का दायित्व है। दिनकर स्मृति न्यास के अभियान की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि सरकार और आवाम को जोड़ने के लिए लोगों को जगाने की जरूरत है। इसके लिए डाक्यूमेंट्री बनाकर लोगों को दिखाना होगा, ताकि उन्हें गौरव का अहसास हो। कहा, तक्षशिला और नालंदा विवि में काफी अंतर है। तक्षशिला विवि में केवल अगड़ी जाति के लोग शिक्षा ग्रहण करते थे, जबकि नालंदा विवि में सभी जाति और धर्म के लोग शिक्षा ग्रहण करते थे। यही कारण है नालंदा विवि को काफी प्रसिद्धी मिली थी। आज भी नालंदा के गांवों में हजारों मूर्तियां बिखरी पड़ी हैं। उसे संग्रह कर पुरातत्व संग्रहालय नालंदा में संरक्षित करने की जरूरत है। जमींदोज विश्वविद्यालय पर बने गांवों को उत्खनन कराने से पहले पुनर्वासित कराया जाना चाहिए।

चंडी मौ के पुरातात्विक महत्व पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि भगवान बुद्ध जब राजगीर से सारनाथ जा रहे थे, तब पावारिक आम्रवन में ठहरे थे, वह गांव संभवत: चंडी मौ ही था।

दुर्दशा देख कहीं विश्व धरोहर का दर्जा न छिन जाए: डा फणिकांत

पूर्व एएसआई निदेशक डॉ फणिकांत मिश्रा ने कहा कि नालंदा विवि जैसा दुनिया में कोई स्मारक नहीं है। नालंदा में तीन गगनचुंबी पुस्तकालय थे। उनकी स्मृति में नालंदा में इंटरनेशनल लाइब्रेरी स्थापित होनी चाहिए। नालंदा के पुरातत्व संग्रहालय को विश्वस्तरीय नहीं तो राष्ट्रीय संग्रहालय बनाना आवश्यक है। धरोहर की दुर्दशा और रखरखाव पर चिता व्यक्त करते हुए डा. मिश्रा ने आशंका जताई कि यदि यूनेस्को की टीम नालंदा आएगी तो इसकी दुर्दशा देख विश्व धरोहर के दर्जे को वापस भी ले सकती है। धरोहरों को वैज्ञानिक तरीके से संरक्षित करना होगा। उत्खनन जहां-तहां की जा रही है, जिससे कई धरोहर साइट उपेक्षित हो रहे हैं। उन्होंने पुरातत्व विज्ञान की सर्जरी से तुलना करते हुए कहा कि उत्खनन और संरक्षण में वही होना चाहिए, जो एक सर्जन ऑपरेशन के दौरान करते हैं। प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय 16 किलोमीटर क्षेत्रफल में था। इसकी खोज आज तक नहीं की जा सकी है। उन्होंने कहा कि जब वह पटना सर्किल के अधीक्षण पुरातत्वविद् थे, तब उन्होंने इसरो के सहयोग से इसके मुख्य द्वार का पता लगाया था। विश्वविद्यालय के भूमिगत अवशेष को खोज कर एवं उत्खनन कर बहुमूल्य अवशेष प्राप्त किए जा सकते हैं।

विज्ञान विकसित हुआ, पर प्रेरणा नहीं ले रहे सरकार व समाज: प्रो सुभाष

विश्व भारती शांति निकेतन के प्रो सुभाष चंद्र राय ने कहा कि भारतीय संस्कृति, धरोहरों और शिक्षण संस्थान के उन्नयन का परि²श्य दुखी कर रहा है। संस्कृति, विरासत और शिक्षा को संभालने के लिए सरकार और समाज दोनों को बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने की जरूरत है। उन्होंने शांति निकेतन, बीएचयू, नेतरहाट आदि शिक्षण संस्थानों की चर्चा करते हुए कहा कि तब और अब की शिक्षा व्यवस्था में काफी अंतर है। यही कारण है कि विरासतों के प्रति उदासीनता बढ़ती जा रही है। नालंदा के पुस्तकालय की तरह दुनिया के किसी विश्वविद्यालय में आज भी नौ मंजिला पुस्तकालय नहीं है। विज्ञान विकसित हुआ है। इसके बावजूद समाज और सरकार उससे प्रेरणा नहीं ले रही है। धरोहरों और शिक्षण संस्थानों को बचाने के लिए संकल्प की आवश्यकता है।

नालंदा से बड़ा प्रेरणा पुंज कुछ नहीं हो सकता: डा श्रीकांत

बीज वक्तव्य देते हुए नव नालंदा महाविहार डीम्ड यूनिवर्सिटी के डॉ श्रीकांत सिंह ने कहा कि नालंदा सदियों से भारत की पहचान रही है। दुनिया के देशों को संस्कृति से जोड़ने का केंद्र बिदु रहा है। यहां आदर्श और व्यवहार की शिक्षा दी जाती थी। नालंदा सा उत्कृष्ट शिक्षा केंद्र दुनिया में पहले भी नहीं था और आज भी नहीं है। नालंदा से बड़ा प्रेरणा पुंज कुछ नहीं हो सकता है। सांस्कृतिक, दर्शन, कला, विज्ञान, अध्यात्मिकता का सबसे बड़ा केंद्र नालंदा था। उन्होंने कहा कि नई कल्पना के साथ नई उड़ान भरने से ही नालंदा के गौरवशाली अतीत को पुनस्र्थापित किया जा सकता है।

नालंदा सभ्यता व संस्कृति का द्वार

डॉ विजय राम रतन सिंह ने कहा कि नालंदा सभ्यता और संस्कृति का द्वार है। यहां की मिट्टी में विश्व की संस्कृति जमींदोज है। नालंदा के पुनर्निर्माण और नव निर्माण में बुद्धिजीवियों को बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना चाहिए। रायपुर के साहित्यकार गिरीश पंकज ने नालंदा की गौरव गाथा पर आधारित कविता पाठ करते हुए नालंदा के नव निर्माण में सहयोग देने का आश्वासन दिया। इंजीनियर राकेश ओझा ने कहा कि नालंदा के विश्व धरोहर के प्रति विदेशियों में विशेष आस्था है। पंद्रह सौ साल पहले शिक्षा जितनी दीक्षित थी आज इतनी नहीं है।

राष्ट्रकवि के उद्घोष को मंत्र बना आगे बढ़ रहे: नीरज

परिचर्चा के आयोजक न्यास अध्यक्ष नीरज कुमार ने नालंदा को फिर से श्रेष्ठ नालंदा बनाने, नव निर्माण एवं पुनर्निर्माण के लिए देश और प्रदेश के तमाम बुद्धिजीवियों शिक्षाविदों, पुरातत्वविदों, इतिहासकारों और छात्र नौजवानों का आवाहन किया। उन्होंने कहा कि नालंदा के धरोहर की सुरक्षा, संरक्षा के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा गया है। उस पत्र के बाद संस्कृति मंत्रालय हरकत में आया है। इस धरोहर को एनसीएफ से जोड़ा गया है। कहा कि राष्ट्रकवि दिनकर के उद्घोष उठो नालंदा उठो का मंत्र अपनाकर नालंदा के अतीत और विरासत को पुनर्जीवित करने के लिए राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया जा रहा है। अंत में वरीय पत्रकार रामविलास ने धन्यवाद ज्ञापन किया।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.