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पूर्व शिक्षा मंत्री के नाम पर बने छात्रावास की सिस्टम को कद्र नहीं

विश्वगुरु की गरिमा दिलाने को अंतरराष्ट्रीय नालंदा विवि की स्थापना की गई है तो दूसरी ओर पुरानी स्थापनाओं को जीवंत बनाने की ओर ध्यान नहीं है। वह भी ऐसा स्कूल जिसे दनियावां गांव के शिक्षाविद् शुकदेव बाबू ने अपनी जमीन पर बनवाकर सरकार को दान कर दिया था।

By JagranEdited By: Published: Wed, 07 Apr 2021 11:44 PM (IST)Updated: Wed, 07 Apr 2021 11:44 PM (IST)
पूर्व शिक्षा मंत्री के नाम पर बने छात्रावास की सिस्टम को कद्र नहीं

बिहारशरीफ। एक तरफ नालंदा को विश्वगुरु की गरिमा दिलाने को अंतरराष्ट्रीय नालंदा विवि की स्थापना की गई है तो दूसरी ओर पुरानी स्थापनाओं को जीवंत बनाने की ओर ध्यान नहीं है। वह भी ऐसा स्कूल, जिसे दनियावां गांव के शिक्षाविद् शुकदेव बाबू ने अपनी जमीन पर बनवाकर सरकार को दान कर दिया था। उनके सम्मान में स्कूल का नाम शुकदेव एकेडमी रखा गया। बाद में चंडी विधायक डॉ. रामराज सिंह शिक्षा मंत्री बने तो स्कूल परिसर के ठीक सामने शुकदेव बाबू से दान में मिली जमीन पर एक छात्रावास बनवा दिया। शिक्षा विभाग ने छात्रावास का नामकरण उन्हीं के नाम पर कर दिया। बाद के दिनों में स्कूल को हाईस्कूल से उत्क्रमित कर प्लस टू का ओहदा दे दिया गया। बड़े-बड़े नाम की छांव तले स्कूल का ओहदा बढ़ा व स्कूल तरक्की करता गया। लेकिन, छात्रावास भवन के रख-रखाव की ओर सिस्टम का ध्यान नहीं गया। नतीजतन, स्कूल का छात्रावास दो दशक से खंडहर में तब्दील है।

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पत्राचार तक सिमटी छात्रावास के जीर्णोद्धार की पहल

पिछले दिनों शुकदेव एकेडमी में पढ़ाई के दौरान छात्रावास में रह चुके पूर्ववर्ती छात्र विकास आनंद एवं मनीष भारद्वाज समेत उनके कई सहपाठियों ने इसको पुनर्जीवित करने की दिशा में पहल की है। रामराज छात्रावास के जीर्णोद्धार के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, नालंदा के सांसद कौशलेंद्र कुमार, आयुक्त पटना प्रमंडल के आयुक्त व जिलाधिकारी को पत्र लिखा है। इस पर सांसद कौशलेंद्र कुमार ने शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव को पत्र लिखा कर अनुरोध किया है कि विभाग से इस छात्रावास के नवनिर्माण एवं बाउंड्रीवाल के लिए रकम का आवंटन करे। ताकि, गांवों से आनेवाले सैकड़ों छात्र यहां रहकर पढ़ाई कर सकें।

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बाउंड्री गिरने से खेल मैदान पर काबिज होते जा रहे लोग

बता दें कि स्कूल का अपना खेल का मैदान भी है, परंतु उसकी बाउंड्री गिर चुकी है। इस पर आसपास के लोग कब्जा करते जा रहे हैं। इस विद्यालय की आय के लिए विद्यालय की बाउंड्री के सटे 50 दुकानों का निर्माण किया गया था। ताकि, विद्यालय आर्थिक रूप से सशक्त रहे। सभी दुकानों से औसतन हजार रुपये किराया मिलता है। अभी स्थिति यह है कि जिन लोगों ने दुकान किराए पर लिया था, वे खुद व्यवसाय न करके दूसरों से ज्यादा किराया वसूल रहे हैं। आशय यह कि पर्याप्त संसाधन के बावजूद शुकदेव एकेडमी की स्थिति आदर्श नहीं कही जा सकती। जबकि, यह सिमुतला या नेतरहाट के स्तर का बनने की क्षमता रखता है।


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