महाविहार में लुप्तप्राय देसी भाषा विषयक सेमिनार आज
नालंदा। आइआइटी पटना के लुप्तप्राय भाषा केंद्र व मानविकी एवं सामाजिक अध्ययन विभाग के संयुक्त प्रयास स
नालंदा। आइआइटी पटना के लुप्तप्राय भाषा केंद्र व मानविकी एवं सामाजिक अध्ययन विभाग के संयुक्त प्रयास से नव नालंदा महाविहार में देसी भाषा विषयक सेमिनार का आयोजन शनिवार को किया जाएगा। जिसमें भारत के विभिन्न कोने से विद्वानों को आमंत्रित किया गया है। बता दें कि अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के उपलक्ष्य में तीन दिवसीय सेमिनार का आयोजन आइआइटी पटना में किया गया है । जिसके समापन दिन के अवसर पर नव नालन्दा महाविहार के कॉन्फ्रेंस हाल में देश भर से विद्वानों का जमाबड़ा लगेगा। जिसमें मुख्य रूप से( नेहु) नार्थ ईस्ट हिल यूनिवर्सिटी, शिलॉन्ग (मेघालय), ( जेएनयू) जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली, ( एएमयू) अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, अलीगढ़, आइआइटी, मद्रास, लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ आईआईटी पटना समेत कई अन्य ख्याति प्राप्त विश्व विद्यालय के भाषाविदों का जुटान होगा। कार्यक्रम के संयोजक नव नालन्दा महाविहार के पाली विभाग के अध्यक्ष प्रो राजेश रंजन ने बताया कि लुप्तप्राय होने वाली भाषाओं तथा शुद्ध देसी भाषा पर महाविहार में यह पहला आयोजन है। जिसमें देश भर के ख्याति प्राप्त विद्वान सहित रिसर्च स्कॉलर शामिल होंगे। जिनमें आइआइटी मद्रास से सेवानिवृत्त प्रो राजेश कुमार, नेहु के डॉ शैलेंद्र कुमार ¨सह, लखनऊ विश्वविद्यालय की प्रो कविता रस्तोगी, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के प्रो इम्तियाज हुसैन, प्रो शिरीष चौधरी, डॉ स्मृति ¨सह समेत कई लोग शामिल है। आइआइटी पटना से लगभग 50 लोगों की टीम आएगी जो सेमिनार में भाग लेने के उपरांत प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के भग्नावशेष व ह्वेनसांग मेमोरियल हॉल का अवलोकन करेगी। क्या है लुप्तप्राय देसी भाषा?
लुप्तप्राय देसी भाषा वह भाषा होती है जो वर्तमान में अनुपयोगी हो रही है और लुप्त होने के कगार पर है। ऐसी भाषा के विलुप्त होने के कुछ मुख्य कारण होते हैं जिनमें इस भाषा के लोगों की संख्या धीरे-धीरे कम हो रही हो, या इसके बोलने वाले लोग अपनी भाषा को छोड़ दूसरी भाषा को ग्रहण कर रहे हों। इनमें ज्यादातर क्षेत्रीय भाषा है । भाषा विलुप्त पूरी तरह तब होती है जब उसका कोई भी बोलने वाला नहीं बचता और इस तरह वह पूर्ण रूप से विलुप्त और समाप्त हो जाती है। मानव इतिहास में कईं भाषाएं विलुप्त हुई हैं परन्तु वर्तमान में भाषाओं का विलोपन बहुत शीघ्रता से हो रहा है। इसके प्रमुख कारण हैं वैश्वीकरण और नव-उपनिवेशवाद। अधिकतर मामलों में यह होता है कि जब भौतिक रूप से प्रभावशाली और शक्तिशाली भाषाएं दूसरी भाषाओं पर अपना वर्चस्व साधती हैं, तब भौतिक रूप से निर्वल भाषाएं विलुप्त हो जाती हैं।