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विश्व वास्तु दिवस : कभी वास्तुकला को मिला था यहां मुकाम, आज तंग गलियों के बीच कराह रही यह कला

जमीन की भूख लूट-खसोट की प्रवृति तथा व्यवसायिकजमीन की भूख लूट-खसोट की प्रवृति तथा व्यवसायिकजमीन की भूख लूट-खसोट की प्रवृति तथा व्यवसायिकजमीन की भूख लूट-खसोट की प्रवृति तथा व्यवसायिक ।

By JagranEdited By: Published: Sun, 31 May 2020 09:19 PM (IST)Updated: Mon, 01 Jun 2020 06:17 AM (IST)
विश्व वास्तु दिवस : कभी वास्तुकला को मिला था यहां मुकाम, आज तंग गलियों के बीच कराह रही यह कला
विश्व वास्तु दिवस : कभी वास्तुकला को मिला था यहां मुकाम, आज तंग गलियों के बीच कराह रही यह कला

जन्मेंजय, बिहारशरीफ : अपनी सभ्यता, संस्कृति, कला तथा परम्पराओं से भारत पूरे विश्व का मार्ग दर्शन करता रहा है। विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता भी भारत की रही है। सन् 1921 ई में जब हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो की खुदाई हुई तो पूरा विश्व हैरान रह गया। जमीन से निकले विशालकाय भवन भारत की समृद्ध व्यवस्था को दुनिया तक पहुंचाने के लिए काफी थी। पूरे विश्व ने माना कि वास्तुकला भारत की ही देन है। लेकिन बढ़ती जनसंख्या तथा सिकुड़ती भूमि के आगे यह कला गुम होती चली गई। पहले हर छोटे-बड़े घर के निर्माण के वक्त स्थापत्य कला अथवा वास्तुकला का पूर्ण ध्यान रखा जाता था लेकिन मौजूदा वक्त में लोग जमीन की कमी का कारण बताकर इस कला से दूर भागते जा रहे हैं। आधुनिक वास्तुकला का उदाहरण है राजगीर का कन्वेंशन हॉल

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वास्तुकला हमारे जिले को विरासत के रूप में मिली है। यहां कई ऐसे भवन है जिसकी चर्चा पूरी दुनिया में है। चाहे वह नालंदा विश्वविद्यालय हो या विश्व शांति स्तूप। इसका सौंदर्य तथा इसकी कला आज भी लोगों को अपनी ओर बरबस खींचता है। यही कारण रहा कि नालंदा विश्वविद्यालय को विश्व विरासत का दर्जा दिया गया। समय के साथ भवन निर्माण का यह कला पुस्तकों तक ही सीमित रह गई। हालांकि हाल ही में राजगीर में बनाया गया कन्वेंशन हॉल एक बार फिर हमारी प्राचीन वास्तुकला को पुर्नजीवित करता दिख रहा है। इस विशालकाय हॉल में हर एक विन्दु पर ध्यान रखा गया है। चाहे भवन के अंदर आने वाली सूर्य की किरण हो या सीढि़यां तथा दरवाजे का रूख। हर जगह वास्तुकला का ध्यान रखा गया है। वहीं राजगीर का जापानी मंदिर अथवा थाई मंदिर जो न केवल अपनी बेमिशाल सुंदरता से लोगों को आकर्षित करता है बल्कि यह आधुनिक वास्तुकला का जीता-जागता नमूना भी है।

जमीन की भूख, लूट-खसोट की प्रवृति तथा व्यवसायिक सोच के कारण खत्म होती जा रही यह कला

लुप्त होती इस कला के पीछे का कारण बढ़ती जनसंख्या तथा जमीन की कमी को लोग मानते रहे। लेकिन सच्चाई यह है कि जमीन की भूख, लूट-खसोट की प्रवृति तथा व्यवसायिक सोच के कारण लोग इस कला से दूर होते जा रहे हैं। हालत यह है कि शहर की तमाम गलियां आज तंग हो चुकी है। कुछ तो ऐसी है जहां एक बार में दो व्यक्ति प्रवेश नहीं कर सकते। किसी की तबीयत नासाज हो तो फिर उसका खुदा ही मालिक है। अपने शहर में कई तंग गलियां है जहां तेजी से एक व्यक्ति भी प्रवेश नहीं कर सकता। कई बार तो मौत के बाद जनाजे भी इन गलियों से बामुश्किल निकल पाते हैं। स्मार्ट सिटी निर्माण में वास्तुकला का रखा जाएगा संपूर्ण ध्यान

शहर में स्मार्ट सिटी निर्माण की कवायद शुरू हो चुकी है। सड़क से लेकर तालाब तक को खुबसूरत बनाने का काम चल रहा है। पुस्तकालय तथा कई स्कूलों को भी स्मार्ट लुक देने पर काम चल रहा है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या स्मार्ट सिटी निर्माण के वक्त वास्तुकला का ध्यान रखा जाएगा। इस प्रश्न पर नगर आयुक्त अंशुल अग्रवाल कहते हैं कि स्मार्ट बनते शहर में वास्तुकला का खास ध्यान रखा जा रहा है। यह कला हमारी समृद्धि का द्योतक भी है। ऐसे में इस कला का पूर्ण पालन किए जाना आवश्यक है। सकारात्मक उर्जा तथा सौभाग्य लाता है वास्तुकला

विशेषज्ञों की मानें तो समाज तथा घर में सकारात्मक उर्जा बढ़ाने के लिए वास्तुकला का संपूर्ण ध्यान रखा जाना चाहिए। यह कला जहां लोगों को क्लेश तथा विषाद से दूर रखता है। वहीं घर की खुशहाली तथा सौभाग्य भी लाता है। इस कारण घर के निर्माण के वक्त वास्तुकला का संपूर्ण ध्यान रखा जाना चाहिए।


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