घनी आबादी में हैं, फिर भी कहलाते जंगलिया बाबा
बिहारशरीफ। शहर के प्रोफेसर कालोनी में जंगलिया बाबा का अतिप्राचीन मंदिर है। घनी आबादी के बीच स्थापित इस मंदिर की सौम्यता देखते ही बनती है। इस मंदिर की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली है। ऐसी मान्यता है कि जंगलिया बाबा के दर से आजतक कोई खाली हाथ नहीं लौटा।
बिहारशरीफ। शहर के प्रोफेसर कालोनी में जंगलिया बाबा का अतिप्राचीन मंदिर है। घनी आबादी के बीच स्थापित इस मंदिर की सौम्यता देखते ही बनती है। इस मंदिर की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली है। ऐसी मान्यता है कि जंगलिया बाबा के दर से आजतक कोई खाली हाथ नहीं लौटा। सावन के हर सोमवार को भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है। इस बार भी पहले सोमवार को भी महिलाओं की कतार लगी, लेकिन कोरोना प्रोटोकाल के तहत। सबने एक-एक करके जलाभिषेक किया।
इतिहास के मुताबिक अभी जिस घनी बस्ती के बीच मंदिर विद्यमान है, वहां पहले घना जंगल था। बेली फूल के बड़े-बड़े पेड़ थे। यही कारण है कि उस वक्त इस इलाके को बेली बाड़ा के नाम से जाना जाता था। खोदाई के दौरान काले पत्थर का शिवलिग मिला था। चूंकि, इस इलाके में घनघोर जंगल था, इसलिए जंगलिया बाबा के नाम से ये प्रसिद्ध हो गए।
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उत्तर दिशा में है मंदिर का दरवाजा : आम तौर पर शिव मंदिरों का दरवाजा पूरब दिशा की ओर होता है। लेकिन जंगलिया बाबा मंदिर का दरवाजा उत्तर दिशा की ओर है। पुजारी कहते हैं कि बाबा कैलाशवासी हैं। कैलाश पर्वत भारत के उत्तर दिशा में है, इसी कारण बाबा का दरवाजा भी उत्तर दिशा में है।
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हर सोमवार को होता है श्रृंगार : सावन के प्रत्येक सोमवार को जंगलिया बाबा का विशेष श्रृंगार किया जाता है। दूध, मधु व गंगाजल से स्नान कराने के बाद रंग-बिरंगे फूलों से श्रृंगार कराया जाता है। पुजारी दीपक कुमार ने बताया कि शाम की आरती भी काफी भव्य होती है। ऐसा आभास होता है, मानो साक्षात भगवान शिव खड़े हों।