ज्ञान-विज्ञान, निधि व वेद से मिलती शांति : फलहारी बाबा
नालंदा। राजगीर में धर्मा धारित समाज एक छत के नीचे आकर अभेद निस्संक, सुख-दुख में एक समान एक माता-पिता
नालंदा। राजगीर में धर्मा धारित समाज एक छत के नीचे आकर अभेद निस्संक, सुख-दुख में एक समान एक माता-पिता के सपूत परामर्श स्वरूप देवत्व को पा लेते हैं। जबकि देवत्व की प्राप्ति नहीं होती तबतक दिति के संतान अशांत और अशान्ति फैलाने वाले देखे जाते हैं। स्वामी श्री चिदात्मन जी महाराज उर्फ फलहारी बाबा ने ज्ञान-विज्ञान, निधि वेद विषय पर आगे कहा है कि वैदिक युग में ऐसे वेद वेत्ता वैज्ञानिक थे जिन्हें पृथ्वी-अंतरिक्ष और आक्रोश का पूर्ण ज्ञान था। राजतंत्र एवं प्रजातंत्र की सारी व्यवस्थाएं थी। वे दिव्य मंत्र, दिव्य औषघि, दिव्य अस्त-शस्त्र और दिव्य ज्ञान के स्वामी थे। एका में नैका और नैका में एका देखते थे। स्वयं जिसे पाकर ऐसे पारस हो जाते थे जो लोहे को सोना ही नहीं पारस बना दिया करते थे। जिनकी छाया में कल्प वृक्ष की भांति सारे मनोरथ सिद्ध कर देते थे। उन्होंने आगे कहा है वेद व्यास ने जिसे चार भागों में बांटकर पुरुषार्थ और सृष्टि के सारे भेद को आसानी से स्पष्ट कर दिया। बाबा ने कहा वेद से वेदांग, दर्शन, पुराण, इतिहास और महाकाव्य प्रकट हुआ। वेद में सात प्रकार के जलनिधि बताया गया है। सब अनुसंधान का विषय है। देवमूर्ति विज्ञान, काव्य, शास्त्र के साथ आनंदपूर्वक समय व्यतीत करते हैं। जबकि मूर्ख आदि अंत को छोड़कर अर्थात धर्म और मोक्ष को छोड़कर बीच में डूब जाते हैं। समाज उत्तरोतर अशांत है। आज अपनों को अपनों से भय है। हम विनाश के कगार पर खड़े हैं। स्वयं वेद से दूर होते हुए बहुतों को इससे दूर करते गए। समाज दुराचार से, विश्व ब्रह्मांड कदाचार से त्रस्त हैं। अत: वेद-विज्ञान की ओर लौटें शोध करें। विशुद्ध ज्ञान सदा के लिए सुख-शांति और आनंद स्वरूप प्रदान करता है।