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वट सावित्री : पति की दीर्घायु व संतान प्राप्ति के लिए महिलाएं करती हैं वट वृक्ष की पूजा

लोक आस्था का पर्व वट सावित्री पूजा आज। हर वर्ष ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को होती है पूजा।

By Ajit KumarEdited By: Published: Mon, 03 Jun 2019 11:46 AM (IST)Updated: Mon, 03 Jun 2019 11:46 AM (IST)
वट सावित्री : पति की दीर्घायु व संतान प्राप्ति के लिए महिलाएं करती हैं वट वृक्ष की पूजा
वट सावित्री : पति की दीर्घायु व संतान प्राप्ति के लिए महिलाएं करती हैं वट वृक्ष की पूजा

मुजफ्फरपुर, जेएनएन। लोक आस्था का पर्व वट सावित्री सोमवार को मनाया जाएगा। यूं तो सूबे में पूरे वर्ष कोई ना कोई व्रत-त्योहार होते ही रहते हैं, लेकिन वट सावित्री का अपना अलग ही महत्व है। बिहार में करवा चौथ कहा जाने वाला यह व्रत सौभाग्य को देने वाला और संतान की प्राप्ति में सहायक माना जाता है। भारतीय संस्कृति में यह व्रत आदर्श नारीत्व का प्रतीक बन चुका है। हर वर्ष ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को ही इस व्रत को मनाया जाता है।

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 इस दिन महिलाएं अखंड सौभाग्यवती रहने की मंगलकामना के साथ वट (बड़, बरगद) का पूजन करती है। वट सावित्री व्रत को देखते हुए बाजारों में फलों की दुकानों पर काफी भीड़ देखी गई। आम, लीची, केला, संतरा, सेव आदि फलों की काफी बिक्री हुई। बिक्री में वृद्धि को देखते हुए फलों की कीमतों में भी सामान्य दिनों की अपेक्षा उछाल देखा गया।

व्रत से पूरी होती मनोकामनाएं 

इस व्रत का मुख्य उद्देश्य सौभाग्य की वृद्धि और पतिव्रत के संस्कारों को आत्मसात करना है। वट सावित्री व्रत में वट और सावित्री दोनों का विशिष्ट महत्व माना गया है। पीपल की तरह वट या बरगद के पेड़ का भी महत्व है। पुराणों के अनुसार वट में ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों का वास है। मान्यता है कि इसके नीचे बैठकर पूजा करने, कथा सुनने और व्रत रखने से मनोकामनाएं पूरी होती है।

वट वृक्ष दीर्घायु व अमरत्व का प्रतीक 

दार्शनिक ²ष्टि से वट वृक्ष दीर्घायु व अमरत्व बोध का प्रतीक है। साथ ही वट वृक्ष ज्ञान व निर्वाण का भी प्रतीक है। भगवान बुद्ध को इसी वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था। इसलिए, वट वृक्ष को पति की दीर्घायु के लिए पूजना इस व्रत का अंग बना। महिलाएं व्रत-पूजन कर कथा कर्म के साथ-साथ वट वृक्ष की परिक्रमा कर सूत के धागे लपेटती है।

चना बांटने की है परंपरा 

नवविवाहिताओं के लिए यह पूजा विशेष महत्व रखता है। इस अवसर पर उनके ससुराल से पूजा की सामग्री, बियन, नैवेद्य, मिठाई, नवीन वस्त्र, चना आदि भेजा जाता है। पूजा के बाद नवविवाहिताओं के घर फुला हुआ चना बांटने की परंपरा है।

दिन के 3.39 तक पूजन का समय 

विश्वविद्यालय पंचांग के प्रधान संपादक सह संस्कृत विवि के पूर्व कुलपति पंडित रामचन्द्र झा के अनुसार सोमवार को सूर्योदय से दिन के 3.39 बजे तक पूजन का समय है। उत्तर भारत में यह व्रत ज्येष्ठ मास के अमावस्या को मनाया जाता है जबकि दक्षिण भारत में यह ज्येष्ठ मास के पूर्णिमा को मनाया जाता है।

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