कोरोना काल में यहां की महिलाएं बनीं आत्मनिर्भर, घर पर ही बना रहीं जैविक खाद व कीटनाशक
कोरोना काल में पंडौल कलुआही व झंझारपुर की महिलाओं ने आमदनी का नया तरीका खोजा। घर पर ही बना रहीं जैविक खाद व कीटनाशक। फसलों के लिए फायदेमंद।
मधुबनी [कपिलेश्वर साह]। महिलाओं ने कोरोना काल में घर पर ही रोजगार का नया रास्ता निकाला है। जीविका से जुड़ीं 400 से अधिक महिलाएं जैविक खाद और कीटनाशक बनाने का काम कर रही हैं। इसका उपयोग ये अपने खेतों में करने के अलावा बेचती भी हैं। दोनों उत्पाद फसलों के साथ पर्यावरण के लिए भी अनुकूल हैं।
मार्च में लॉकडाउन की शुरुआत हुई तो दुकानें बंद हो गईं। किसानों को कीटनाशक और खाद की कमी सताने लगी। ऐसे में जीविका से जुड़े पंडौल प्रखंड के संदीप कुमार आगे आए। उन्होंने पोखरसाम गांव की 35 महिलाओं को घर पर ही जैविक खाद व कीटनाशक बनाने का एक सप्ताह का प्रशिक्षण दिया। खाद का नाम 'श्रीधनजीवामृत' व कीटनाशक का नाम 'दसपरनी' रखा गया।
एक कट्ठा फसल पर 170 रुपये खर्च
इन महिलाओं ने कलुआही व झंझारपुर की अन्य महिलाओं को प्रशिक्षण दिया। आज तीनों प्रखंड की तकरीबन 400 महिलाएं घर संभालते के साथ जैविक खाद व कीटनाशक बना रही हैं। इसका प्रयोग अपने खेतों में करती हैं। इससे खेती की लागत कम हुई है। धान या अन्य फसल में प्रति कट्ठा जैविक खाद व कीटनाशक का खर्च 170 रुपये आता है, जबकि रासायनिक खाद व कीटनाशक पर 415 रुपये।
पोखरसाम गांव की गिरिजा देवी, उर्मिला देवी, साक्षी शर्मा, सोनी देवी, सोहागिया देवी, जयमाला देवी, सीता देवी, रागिनी व नीलम आदि का कहना है कि खाद और कीटनाशक का उत्पादन समूह में किया जाता है। इसमें प्रयोग होने वाले अधिकतर सामान सहजता से निशुल्क मिल जाते हैं। अपने खेत में इस्तेमाल के बाद 15 महिलाओं के एक समूह को सालभर में एक लाख तक की आमदनी हो जाती है।
इस तरह होता निर्माण
जैविक खाद बनाने में गोबर, पुआल, केले का थंभ, पपीता का पेड़, जलकुंभी, सरसों का डंठल और गुड़ इस्तेमाल किया जाता है। इन वस्तुओं को मिलाकर सीमेंट के हौज में रख दिया जाता है। तीन सप्ताह में खाद तैयार हो जाती है। कीटनाशक बनाने के लिए 25 लीटर वाले प्लास्टिक बर्तन में एक समान नीम की पत्तियां, धतूरा, बेल, अरडी का पत्ता, हल्दी, लहसुन, हरी मिर्च और तंबाकू के डंठल आदि को कूटकर गोमूत्र में मिला दिया जाता है। 40 दिन बाद इसे छानकर रख लिया जाता है। एक लीटर कीटनाशक 10 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव किया जाता है।
जिला कृषि पदाधिकारी सुधीर कुमार का कहना है कि ये महिलाएं आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रही हैं। इससे पैदा होने वाली फसल में कोई जहरीली चीज नहीं होती जो स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक हो।