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बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए श्रमदान कर बना रहे विद्यालय भवन

बगहा दो प्रखंड के देवरिया तरूअनवा पंचायत के ग्रामीणों ने पेश की मिसाल। चंदे की राशि से बन रहा विद्यालय भवन ग्रामीण दिन-रात कर रहे मेहनत।

By Ajit KumarEdited By: Published: Mon, 17 Jun 2019 01:44 PM (IST)Updated: Mon, 17 Jun 2019 01:44 PM (IST)
बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए श्रमदान कर बना रहे विद्यालय भवन
बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए श्रमदान कर बना रहे विद्यालय भवन

पश्चिम चंपारण, जेएनएन। कभी नक्सलियों का गढ़ रहा बगहा दो प्रखंड का देवरिया तरुअनवा पंचायत अब अमन और शांति के लिए पहचाना जाता है। यह बदलाव यूं ही नहीं हुआ, दरअसल थरुहट के इस वनवर्ती इलाके में शिक्षा की अलख जगी तो लाल आतंक जड़ से मिटता चला गया। इसी पंचायत के कुनई लक्ष्मीपुर गांव के लोगों ने शिक्षा के प्रति जागरूकता की जो मिसाल पेश की है, उसकी चर्चा चारों ओर है। विभागीय उदासीनता के कारण गांव के प्राथमिक विद्यालय का भवन जर्जर हो गया था।

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 दुर्घटना की आशंका से बच्चों ने स्कूल जाने से इनकार कर दिया तो ग्रामीणों ने भवन के जीर्णोद्धार की मांग उठाई। स्थानीय जनप्रतिनिधि, विधायक व सांसद से लेकर शासन प्रशासन के आला अधिकारियों तक से ग्रामीण मिले। लेकिन बात नहीं बनी। इसके बाद सूबे के सीएम से भी विद्यालय भवन के निर्माण की गुहार लगाई, लेकिन सभी जगह निराशा ही हाथ लगी। जब किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया तो ग्रामीणों ने चंदे की राशि से भवन निर्माण की ठानी।

 इससे पहले गांव के गुमस्ता शेषनाथ बड़घडिय़ा के नेतृत्व में ग्रामीणों ने एक बैठक की। जिसमें निर्णय हुआ कि 300 की आबादी वाले इस गांव के ग्रामीण चंदा इकट्ठा करेंगे और विद्यालय का भवन बनवाएंगे। फिर शुरू हुई पांच कमरों के विद्यालय भवन निर्माण की प्रक्रिया। ग्रामीणों ने श्रमदान कर भवन निर्माण शुरू कर दिया है। करीब पांच लाख रुपये चंदे के रूप में इकट्ठा हो चुके हैं। 

कुनई गांव में कभी गरजती थी बंदूकें 

जिस पंचायत के ग्रामीणों ने प्रशासन के सामने बड़ा सवाल खड़ा किया है वहां 90 के दशक में बंदूकें गरजती थीं। नक्सलियों के आतंक से यहां के प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाई बंद थी। कई मुठभेड़ों और पुलिस की दबिश के बाद नक्सलियों ने इलाका छोड़ा तो वर्ष 1999 में कुनई लक्ष्मीपुर गांव में प्राथमिक विद्यालय का पहला भवन बना। फिर वर्ष 2004 में विधायक निधि से एक और भवन बनकर तैयार हुआ। लेकिन गुणवत्ता ठीक नहीं होने की वजह से छतें दरक गईं और बच्चों ने भय से स्कूल जाना छोड़ दिया। यहां तक कि इसमें कार्यरत शिक्षकों ने भी उस कमरे में जाना बंद कर दिया था। बच्चों की पढ़ाई बंद हुई तो जागरूक ग्रामीणों की ङ्क्षचता बढ़ गई।

दान में मिली जमीन, चार साल तक झोपड़ी में चला स्कूल 

विद्यालय भवन के जर्जर हो जाने के बाद गांव के देवनाथ बड़घडिय़ा ने स्कूल के लिए करीब डेढ़ एकड़ जमीन दान में देने की घोषणा कर दी। इससे ग्रामीणों का हौसला बढ़ा और वहां झोपड़ी बना दी गई। करीब चार साल तक झोपड़ी में स्कूल चला और अब यहां पक्के भवन का निर्माण ग्रामीण करा रहे हैं। बता दें कि उक्त विद्यालय में कुल 150 बच्चे अध्ययनरत हैं।

सीएम ने अनसुनी कर दी ग्रामीणों की बात 

गांव के गुमस्ता शेषनाथ बड़घडिय़ा, वार्ड सदस्य विष्णु देव काजी, देवेंद्र महतो, ग्रामीण परमानंद प्रसाद, तीर्थराज प्रसाद, चंद्रदेव काजी, शंकर दहईत, पारसनाथ महतो व रामसुभाग महतो आदि बताते हैं कि बीते कुछ दिनों पूर्व झोपड़ी में आग लग गई थी जिसकी वजह से बच्चों के पठन-पाठन में समस्या उत्पन्न हो गई। फिर हमने पक्का भवन बनाने का संकल्प लिया। बीते साल सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जब थारू महाधिवेशन में बिनवलिया गांव में आए थे तो उनसे मिलकर भी उन्हें ज्ञापन सौंपा गया, लेकिन उन्होंने मांग को अनसुना कर दिया।

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