मार्क्सशीट व प्रमाणपत्र दें बीएड कॉलेज, नहीं तो कार्रवाई
बीएड कॉलेजों को विश्वविद्यालय ने बुधवार को अंतिम रूप से पत्र लिखा और साफ-साफ कह दिया कि शैक्षणिक सत्र 2015-17 के छात्र-छात्राओं का मार्क्सशीट व अन्य प्रमाणपत्र नहीं रोका जा सकता।
मुजफ्फरपुर। बीएड कॉलेजों को विश्वविद्यालय ने बुधवार को अंतिम रूप से पत्र लिखा और साफ-साफ कह दिया कि शैक्षणिक सत्र 2015-17 के छात्र-छात्राओं का मार्क्सशीट व अन्य प्रमाणपत्र नहीं रोका जा सकता। अगर, कोई महाविद्यालय फिर भी ऐसा करता है तो यह राज्य सरकार के निर्देश की अवहेलना मानी जाएगी और इससे उत्पन्न किसी भी स्थिति के लिए वे कॉलेज स्वयं जिम्मेदार होंगे। रजिस्ट्रार अजय कुमार राय के हस्ताक्षर से चेतावनी भरा पत्र सभी संबद्ध बीएड महाविद्यालयों को जारी कर दिया गया। कॉलेजों को इस बाबत सीधा निर्देशित करने के लिए तमाम छात्र-छात्राएं पिछले दिनों से लगातार विश्वविद्यालय का चक्कर लगा रहे थे। कुलपति खुद उनके आवेदनों पर हस्ताक्षर कर कॉलेजों को अग्रसारित करते रहे,
लेकिन कॉलेज प्रबंधनों पर जूं तक नहीं रेंग रहा था। यहां तक कि वे सीधा-सीधा इन्कार कर रहे थे और किसी भी सूरत में बिना पैसे सर्टिफिकेट्स देने को राजी नहीं हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन ने इसपर घोर आपत्ति जताई है और कहा है कि राज्य सरकार के निर्देशानुसार हर हाल में पूर्व निर्धारित शुल्क ही लिया जाए तथा पासआउट विद्यार्थियों के सारे सर्टिफिकेट्स अविलंब इश्यू किए जाएं। रजिस्ट्रार ने 14 मार्च, 2016 को राज्य सरकार के उस पत्र का हवाला दिया है, जिसमें एक लाख रुपये फीस निर्धारण का स्पष्ट जिक्र किया हुआ है।
पैसे के लिए दौड़ा रहे कॉलेज
सचिन कुमार, आशुतोष कुमार, धमर्ेंद्र कुमार, रोहित कुमार, रंजीत कुमार, अजय कुमार, ओम चंद्र झा, जयप्रकाश, मो. फिरोज, गुड्डू, खुशबू श्री, नेहा कुमारी, अनुपम कुमारी, मो. चांद, अखिलेश, मनीष कुमार ने रजिस्ट्रार द्वारा पत्र लिखे जाने के बाद अपनी जीत पर प्रसन्नता जताई। कहा कि आधा काम ही हुआ, मगर रजिस्ट्रार के इस कदम से उम्मीद जगी है। सबने कहा कि शैक्षणिक सत्र 2015-17 में राज्य के संबद्ध बीएड महाविद्यालयों में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं के लिए एक लाख रुपये शुल्क निर्धारित था। ये विद्यार्थी निर्धारित शुल्क जमा कर फाइनल परीक्षा में शामिल हुए और परीक्षा भी उत्तीर्ण कर ली, लेकिन कई कॉलेज मार्क्सशीट व अन्य सर्टिफिकेट्स रोक रखे हैं। वे निर्धारित शुल्क से अधिक रूपये डिमांड कर रहे हैं। उनका तर्क है कि हाईकोर्ट के आदेश पर वे लोग डेढ़ लाख रुपये फीस मांग रहे हैं। जबकि, हाईकोर्ट ने पुराने सत्र के विद्यार्थियों से ये राशि वसूलने का कोई आदेश दिया ही नहीं है।