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बिहार आईं अमेरिका की दो छात्राओं को खेत में ऐसा क्या नजर आया कि बोल पड़ीं- LOVELY

Bihar News संयुक्त राज्य अमेरिका स्थित कार्नेल विश्वविद्यालय व जार्ज टाउन विश्वविद्यालय की दो छात्राएं इन दिनों बिहार के समस्तीपुर स्थित पूसा केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय का भ्रमण कर रही हैं। उन्हें जीरो टिलेज और मेड़ विधि की खेती पसंद आ रही है।

By Ajit KumarEdited By: Published: Sun, 19 Jun 2022 12:52 PM (IST)Updated: Sun, 19 Jun 2022 12:52 PM (IST)
छात्राओं ने फसल प्रणाली व विविधीकरण की जानकारी भी ली। फोटो: जागरण

पूसा (समस्तीपुर), संस। न केवल रक्षा व तकनीक के मामले में वरन खेती के क्षेत्र में भी अमेरिका दुनिया में नंबर वन माना जाता है। विभिन्न देशों के कृषि वैज्ञानिक समय-समय पर वहां जाकर शोध करते हैं। अमेरिकी वैज्ञानिकों के साथ काम करते हैं और फिर अपने देश में आकर उसका प्रयोग करते हैं, किंतु कुछ मामलों में अमेरिकी शोधार्थियों की रुचि भारत में भी है। वे यहां आकर यहां के कृषि विज्ञानिकों के साथ काम करना चाहते हैं। उनके काम करने की प्रक्रिया को समझना और जानना चाहते हैं। इसी क्रम में संयुक्त राज्य अमेरिका की दो छात्राएं बिहार के समस्तीपुर स्थित पूसा केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पहुंची हैं। 

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मक्का और मूंग की फसलों को देखा

शनिवार को यहां पहुंचीं इन छात्राओं ने बिहार में फसल प्रणाली की गहनता और फसल विविधता के बारे में गहनता से जानकारी हासिल करने के लिए बीसा के पूसा फार्म का दौरा किया। इस दौरान उन्होंने यहां के प्रमुख वैज्ञानिक डा. राजकुमार जाट के साथ बातचीत की। फार्म में लगे मक्का और मूंग की फसलों को देखा। पूसा स्थित बीसा संस्थान के मुख्य वैज्ञानिक ने कार्नेल विश्वविद्यालय की पीएचडी छात्रा कियारा क्राली और जार्ज टाउन विश्वविद्यालय की स्नातक की छात्रा ऋषिका जेराथ को फार्म में इस्तेमाल की जाने वाली तकनीकों की जानकारी दी। उन्होंने उन दोनों को यह भी बताया कि किस प्रकार बीसा, बिहार सरकार एवं अन्य संस्थानों के साथ जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम को तैयार करने की दिशा में काम करता है। इसके बाद इसे किसानों तक पहुंचाया जाता है। इस दौरान डा.अजय अनुराग और डा. पंकज कुमार समेत अन्य वैज्ञानिक भी उपस्थित थे।

मेड़ ने बहुत आकर्षित किया

दोनों छात्राओं को खेतों में बने मेड़ ने बहुत आकर्षित किया। वे यह जानकर बहुत प्रभावित हुईं कि फसल प्रणाली, फसल विविधता और नई तकनीकों को अपना कर बिहार के किसान अपनी आजीविका में निरंतर सुधार ला रहे हैं। उनके जीवन स्तर में बदलाव देखने को मिल रहा है। छात्राओं को जीरो टिलेज और मेढ़ विधि (रेज्ड बेड टेक्नोलॉजीज) के बारे में भी विस्तार से जानकारी दी गई। उन्हें यह बताया गया कि मेड़ विधि को अपनाने के बाद बिहार में मक्का की उत्पादकता काफी बढ़ी है। मानसून और सर्दी के मौसम में क्रमश: अधिक और सीमित पानी की उपलब्धता की स्थिति में मक्का की खेती के लिए मेढ़ विधि सबसे अच्छा तरीका माना जाता है। कार्नेल विश्वविद्यालय की छात्रा ने बताया कि मैं अगली बार फिर बिहार का दौरा करना चाहूंगी। मुझे यह जानकर आश्चर्य हुआ की इस राज्य में बाढ़ का बहुत अधिक प्रभाव होता है। बावजूद किसान यहां खेती करते हैं। अपनी आजीविका के साथ-साथ अपने परिवार का भी ख्याल रख रहे हैं। इस बात से उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ।


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