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आज है शहीद खुदीराम बोस का बलिदान दिवस, अंग्रेजों ने चिता स्थल पर बना दिया था टॉयलेट

11 अगस्त को शहादत दिवस के अवसर अमर शहीद खुदीराम बोस को श्रद्धांजलि दी गई। मुजफ्फरपुर जेल की जिस काल कोठरी में वे रहे थे, उनसे जुड़ी तमाम यादें संरक्षित है।

By Ravi RanjanEdited By: Published: Fri, 11 Aug 2017 03:36 PM (IST)Updated: Fri, 11 Aug 2017 10:55 PM (IST)
आज है शहीद खुदीराम बोस का बलिदान दिवस, अंग्रेजों ने चिता स्थल पर बना दिया था टॉयलेट

मुजफ्फरपुर [जेएनएन]। बंगाल के मेदनीपुर से मुजफ्फरपुर पहुंचे खुदीराम बोस ने 30 अप्रैल 1908 की रात में शहर के कंपनी बाग में अंग्रेज केनेडी परिवार पर बम फेंका था। एक मई 1980 को पूसा रोड से खुदीराम बोस को गिरफ्तार किया गया था।

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मुजफ्फरपुर कोर्ट में सुनवाई के बाद 11 अगस्त को तड़के उन्‍हें फांसी दी गई थी। कहा जाता है शहीद की चिता को जहां आग दी गई थी, वहां बाद में टॉयलेट बना दिया गया था। उसे 11 अगस्त 2014 को लोगों ने तोड़ दिया।शहादत दिवस पर गुरुवार की देर रात सेंट्रल जेल स्थित फांसी स्थल पर बोस को श्रद्धांजलि दी गई। इसमें पुलिस व प्रशासन के अधिकारी, जनप्रतिनिधि व शहर के गणमान्य लोग शामिल हुए।

खुदीराम बोस ने जलायी आजादी की मशाल
वर्ष 1857 में मंगल पांडेय द्वारा शुरू किए सिपाही विद्रोह को अंग्रेजों द्वारा दबा दिए जाने के बाद करीब 50 वर्षों तक देश में कोई जोरदार विरोध का स्वर सुनाई नहीं पड़ा। इस घोर सन्नाटे को तोड़ा खुदीराम बोस व प्रफुल्ल चंद्र चाकी ने। दोनों वीर सपूतों ने अंग्रेजी सरकार काे चुनौती देते हुए 30 अप्रैल 1908 को मुजफ्फरपुर क्लब के सामने बम विस्फोट किया।

यह विस्फोट दमनकारी जज किंग्सफोर्ड को मौत के घाट उतारने के लिए किया गया था। लेकिन, होनी को कुछ और ही मंजूर था। वह बम किंग्सफोर्ड को नहीं लग कर एक अंग्रेज वकील की बेटी व पत्नी को लगा। बम विस्फोट की इस घटना से अंग्रेजी सरकार हिल गई थी। अंग्रेजों को देश छोड़ने पर मजबूर कर दिया। बम विस्फोट के लिए अंग्रेजों ने खुदीराम बोस पर केस चलाया और 11 अगस्त 1908 को तड़के सेंट्रल जेल में उन्हें फांसी दे दी। गौरतलब है कि खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर 1889 को हुआ था।

युवाओं के लिए अनुकरणीय बन गए थे खुदीराम बोस
खुदीराम बोस की शहादत के बाद देश में देशभक्ति की लहर उमड़ पड़ी। इसका प्रभाव यह हुआ कि बिहार-बंगाल के युवा व छात्र वही धोती पहनने लगे, जिस पर खुदीराम बोस लिखी होती थी। प्रसिद्ध साहित्यकार शिरोल ने अपनी पुस्तक खुदीराम की जीवनी में लिखा है कि शहादत के बाद खुदीराम बोस युवाओं के लिए अनुकरणीय हो गए थे।

कई दिनों तक स्कूल-कॉलेज बंद रहे। चारों ओर शोक व्याप्त हो गया। इसके बाद हर युवा अपने को खुदीराम बोस समझने लगा। युवा वही धोती पहनने लगे, जिसके किनारे पर बोस का नाम लिखा होता था। धोती की मांग बढ़ने पर बंगाल में खुदीराम बोस लिखी धोती ही बिकने लगी।

खुदीराम बोस से जुड़ीं एक-एक यादें हैं सुरक्षित
मुजफ्फरपुर जेल की जिस काल कोठरी (सेल) में अमर शहीद खुदीराम बोस को रखा गया था, उस काल कोठरी के साथ-साथ फांसी स्थल को जेल प्रशासन पुण्यतिथि पर हर साल सजाता है।

1 मई 1908 से 11 अगस्त 1908 तक खुदीराम बोस को इसी सेल में रखा गया था। सेल को बंद करके रखा जाता है। हर साल 11 अगस्त को शहादत दिवस पर श्रद्धांजलि देने से पूर्व सेल की साफ-सफाई व रंगाई-पोताई होती है।

30 अप्रैल 1908 को शहर के कंपनीबाग में बम विस्फोट कर अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिला देने वाले अमर शहीद खुदीराम बोस से जुड़ी एक-एक यादें मुजफ्फरपुर सेंट्रल जेल में संरक्षित हैं।

11 अगस्त 1908 को जिस स्टैंड पर अंग्रेजी हुकूमत ने खुदीराम बोस को फांसी के फंदे पर झूला दिया। वह स्टैंड व फांसी का फंदा जेल में संरक्षित कर रखा गया है।

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यहां सजी थी शहीद की चिता
शहीद खुदीराम बोस की चिता गंडक नदी के तट पर बसे सोडा गोदाम चौक, चंदवारा में सजाया गया था। ये जगह मुजफ्फरपुर स्थित केंद्रीय कारागार से करीब दो किलोमीटर के दायरे में ही है, जहां शहीद खुदीराम बोस को फांसी दी गई थी।

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