केंद्रीय कारा में कातिल हाथ बना रहे ‘कठघरा’, बंदियों को मिल रहा प्रशिक्षण Muzaffarpur News
कत्ल व अन्य गंभीर अपराधों की सजा काट रहे बंदी बना रहे न्यायालय के लिए कठघरा समेत अन्य उपस्कर। मुजफ्फरपुर स्थित केंद्रीय कारा में 150 बंदियों को मिल रहा कौशल विकास का प्रशिक्षण।
मुजफ्फरपुर [संजय कुमार उपाध्याय]। कत्ल व अन्य गंभीर अपराध के रंग से अपने हाथ रंग चुके बंदी सृजन व भवन श्रृंगार की नई कहानी रच रहे हैं। जिन हाथों पर कातिल होने का आरोप सिद्ध हो चुका। सजा मिल चुकी। आज वहीं हाथ सजा काटने के साथ न्यायालय के उपयोग में आनेवाले कठघरा और अन्य उपस्कर का निर्माण कर रहे हैं।
मुजफ्फरपुर स्थित अमर शहीद खुदीराम बोस केंद्रीय कारा में हत्या व विभिन्न तरह के गंभीर अपराधों की सजा काट रहे बंदियों को कौशल विकास की ट्रेनिंग दी जा रही है। बंदियों की टोली जेल में ही लकड़ी से विभिन्न तरह के फर्नीचर तैयार करती है। साधारण फर्नीचर के अलावा इनके द्वारा तैयार न्यायालय के उपस्करों की भी खूब मांग है। कारा अधीक्षक राजीव कुमार सिंह इन्हें मानसिक तौर पर रोजगार सृजन के लिए तैयार करते हैं। यहां तैयार उत्पाद का स्थानीय जेल में उपयोग कर हौसला बढ़ाते हैं। कारा अधीक्षक के लिए शानदार कुर्सी, दफ्तर का रैक और आलमीरा की साज-सज्जा स्थानीय बंदियों ने की है।
मांग के अनुसार सूबे के सभी जेलों में होती है आपूर्ति
बताते हैं कि यहां तैयार फर्नीचर की आपूर्ति मांग के अनुसार सूबे के सभी 58 जेलों में की जाती है। इनके द्वारा तैयार किए जानेवाले लकड़ी के फर्नीचर में आलमीरा, चौकी, टेबल, कुर्सी, स्वास्थ्य जांच के लिए टेबल, स्कूल टेबल, बेंच-डेस्क, कठघरा व मूटकोर्ट (न्यायालय का पूरा उपस्कर) के अलावा विभिन्न दफ्तरों में लगाए जानेवाले रैक शामिल हैं।
150 बंदियों को मिल रहा प्रशिक्षण
कारा महानिरीक्षक के निर्देश के आलोक में 150 बंदियों को रोजगार परक प्रशिक्षण दिए जा रहे हैं। ताकि वे सजा पूरी कर निकले तो सीधे रोजगार से जुड़ सकें। यहां बढ़ई का काम 60, सिलाई में 30 पुरुष, 30 महिला एवं 30 बंदियों को प्लंबङ्क्षरग का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इसकी जिम्मेदारी अलग-अलग संस्थाओं को दी गई है।
इस बारे में अमर शहीद खुदीराम बोस केंद्रीय कारा के अधीक्षक राजीव कुमार सिंह ने बताया कि कारा महानिरीक्षक के निर्देश के आलोक में जेल में बंदियों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। उनके द्वारा तैयार उत्पाद सूबे के सभी जेलों में दिए जाते हैं। बंदियों ने मूटकोर्ट (कठघरा व अन्य उपस्कर) भी तैयार किया है। कोशिश यह है कि जेल निकलने के बाद बंदी रोजगार का सृजन करें।