मधुबनी जिले के इन इलाकों में है नीलगायों व बंदरों का आतंक, बंजर हो रही कृषि योग्य भूमि
मधुबनी जिले के झंझारपुर अनुमंडल के लोगों को दो दशकों से नीलगाय व बंदरों के उपद्रव से मुक्ति नहीं मिल रही। किसान और आम लोग परेशान हैं और प्रशासन हाथ पर हाथ धरे बैठा है। क्षेत्र की सोना उगलने वाली जमीन बंजर बनती जा रही है।
मधुबनी, [देवकांत मुन्ना]। जिले के झंझारपुर अनुमंडल के लोगों को दो दशकों से नील गाय व बंदरों के उपद्रव से मुक्ति नहीं मिल रही। पहले कमला नदी के दोनों तटबंधों के बीच नील गाय का उत्पात था, लेकिन अब बंदरों की तबाही भी लोग झेल रहे हैं। इन दो दशकों में क्षेत्र की सोना उगलने वाली जमीन बंजर बनती जा रही है। किसान परेशान हैं। इन जानवरों के आतंक से उन्हेंं छुटकारा नहीं मिल रहा है। स्थानीय किसानों की तकरीबन 35 हजार एकड़ भूमि इन जानवरों के आतंक से प्रभावित है।
ये इलाके हैं सर्वाधिक प्रभावित
झंझारपुर अनुमंडल क्षेत्र के महरैल, हरिना, भदुआर, गोपलखा, कर्णपुर, झंझारपुर, कन्हौली, रामखेतारी, बनौर, काको, रखवारी, मेंहथ, महिनाथपुर, नरुआर, परतापुर, नवटोलिया, मोहना, महेशपुरा, सिमरा, सुखेत आदि इलाके नील गायों व बंदरों के आतंक से प्रभावित हैं।
महरैल से शुरू हुआ था नीलगायों का उत्पात
नीलगाय का उपद्रव महरैल गांव से प्रारंभ हुआ था। महरैल पंचायत के मुखिया प्रो. गीतानाथ झा का कहना है कि एक समय यहां के लोग खेती की आमदनी से न केवल खुशहाल जीवन बिता रहे थे, बल्कि बचत भी कर लेते थे। लेकिन, आज जंगली जानवरों के उपद्रव से किसान बर्बाद हो रहे हैं। खेती नहीं होने से जमीन बंजर होती जा रही है। महरैल गांव निवासी अशोक ठाकुर द्वारा नील गाय के उपद्रव को लेकर पटना हाईकोर्ट में रिट याचिका दाखिल की गई थी। उस पर हाईकोर्ट के निर्णय का सरकार अबतक अनुपालन नहीं कर सकी।
वन क्षेत्र घोषित करने की उठने लगी मांग
स्थानीय लोगों का कहना है कि सरकार अगर यहां के भू-धारियों को जमीन का वास्तविक मुआवजा देकर इस क्षेत्र को बन क्षेत्र घोषित कर इसे पर्यटन स्थल बना दे तो यहां के लोगों का कायाकल्प हो सकता है। हाल के दिनों में जंगली सुअरों का उत्पात भी चरम पर पहुंच चुका है। आए दिन लोग इनके हमलों के शिकार हो रहे हैं। इधर नपं के मुख्य पार्षद बीरेंद्र नारायण भंडारी ने बताया कि उनकी सूचना पर वन विभाग की टीम बंदरों को पकडऩे के लिए आई थी। टीम ने दो दिनों में दो बंदरों को पकड़ा। स्थानीय अमरनाथ झा, सुरेश मिश्र, उमेश मिश्र, संजीव ठाकुर, विजेन्द्र झा, भगवान झा, नवीन ठाकुर, रामचरित्र साफी, बूजर चौपाल, राम साह, अरुण गुप्ता, संजीव महाजन आदि ने वताया कि एक समय नील गाय की संख्या दर्जन भर थी, जो बढ़ कर साढ़े चार हजार से अधिक हो गई है।