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चमकी बुखार का कहर : कहां तो वादा एयर एंबुलेंस का, जरूरत पड़ी तो मरीजों को सामान्य एंबुलेंस भी नहीं

एईएस पीडि़त बच्चों के लिए एयर एंबुलेंस से बाहर इलाज कराने के बात हवा हवाई निकली। जिले में मासूमों के लिए अलग से कोई भी एंबुलेंस की नहीं की गई है व्यवस्था।

By Ajit KumarEdited By: Published: Mon, 10 Jun 2019 12:51 PM (IST)Updated: Mon, 10 Jun 2019 04:05 PM (IST)
चमकी बुखार का कहर : कहां तो वादा एयर एंबुलेंस का, जरूरत पड़ी तो मरीजों को सामान्य एंबुलेंस भी नहीं
चमकी बुखार का कहर : कहां तो वादा एयर एंबुलेंस का, जरूरत पड़ी तो मरीजों को सामान्य एंबुलेंस भी नहीं

मुजफ्फरपुर, जेएनएन। पिछले दस वर्षों में उत्तर बिहार के साढ़े तीन सौ से अधिक बच्चों की मौत एईएस (एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रॉम) या इंसेफेलौपैथी से हो गई। वर्ष 2012 व 2014 में इस बीमारी के कहर से मासूमों की ऐसी चीख निकली कि इसकी गूंज पटना से लेकर दिल्ली तक पहुंच गई। नेताओं व मंत्रियों के आने का सिलसिला शुरू हो गया। कलेजे के टुकड़ों को खोने वाले मां-बाप की दहाड़ ने तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री व मुख्यमंत्री के कलेजे को भी छलनी कर दिया।

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 बच्चों को बचाने की हर कोशिश की आवाज निकली। बेहतर इलाज के साथ बच्चों को यहां से दिल्ली ले जाने के लिए एयर एंबुलेंस की व्यवस्था किए जाने का वादा किया गया। मगर, पिछले दो-तीन वर्षों में बीमारी का असर कम होने से यह वादा हवा-हवाई साबित हुआ। इस वर्ष बीमारी रौद्र रूप लेती जा रही, इन बच्चों के लिए अलग से एंबुलेंस तक की व्यवस्था विभाग नहीं कर पा रहा है।

29 एंबुलेंस में ही सारी व्यवस्था 

डीपीएम बीपी वर्मा के अनुसार जिले में कुल 29 एंबुलेंस हैं। इसमें पांच सदर अस्पताल व 25 पीएचसी व रेफरल अस्पतालों में हंै। इसके अलावा छह एंबुलेंस एसकेएमसीएच के लिए है। इन एंबुलेंस से जननी-बाल सुरक्षा योजना, वरीयजन व अन्य स्वास्थ्य योजना के मरीजों को स्वास्थ्य केंद्रों में पहुंचाया जाता है। डीपीएम कहते हैं, एईएस पीडि़त बच्चों के लिए अलग से एंबुलेंस की व्यवस्था नहीं हो पा रही।

निजी वाहनों में एंबुलेंस जैसी सुविधा नहीं

जिला स्वास्थ्य समिति एईएस पीडि़त बच्चों को स्वास्थ्य केंद्रों में लाने के लिए किराया उपलब्ध कराती है। मगर, यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि इन वाहनों में एंबुलेंस जैसी सुविधा नहीं होती। जबकि इस बीमारी से पीडि़त बच्चों के बचने की संभावना इलाज शुरू होने के समय पर निर्भर करती है। जितनी जल्दी इलाज शुरू होगी, उनके बचने की संभावना अधिक होगी। बावजूद दर्जनों बच्चों को बचाने के लिए एंबुलेंस तक की व्यवस्था नहीं हो पा रही। डीपीएम इस मसले पर हाथ खड़ा कर रहे। वे कहते हैं, राज्य स्वास्थ्य समिति ही यह व्यवस्था कर सकती है।

मासूमों की चीख और आंकड़ों का खेल

वर्ष 2012 में 336 बच्चे एईएस से पीडि़त हुए जिसमें से 120 की मौत। अगले वर्ष 124 पीडि़त बच्चों में से 39 की मौत। वर्ष 2014। पीडि़त बच्चे 342 और इसमें से 86 की मौत। जिले में प्रतिवर्ष मासूमों की मौत के दिल दहलाने वाले ये आंकड़े एईएस बीमारी की भयावहता की कहानी कह रहे थे। मगर, अगले चार वर्षों में यह आंकड़ा काफी कम हो गया। इसके कई कारण हैं। एक तो बच्चों को बचाने के लिए जागरूकता अभियान चलाए गए।

 इलाज के लिए ट्रीटमेंट ऑफ प्रोटोकॉल में बदलाव किया गया। पीडि़त बच्चों का जल्दी से इलाज शुरू किया गया। वहीं इन वर्षों में मौसम की भी छतरी रही। लंबे समय तक तापमान काफी अधिक नहीं रहा। साथ ही नमी भी कम रही। इन सबके बावजूद एक और कारण रहा, बीमारी को तीन भाग में बांटने का।

 पहले जहां सभी बच्चों को इस बीमारी से पीडि़त मान लिया जाता था। उसकी जगह ज्ञात, अज्ञात व जेई (जापानी इंसेफेलाइटिस) में पीडि़त बच्चों को बांटा गया। इससे एईएस से मौत का आंकड़ा कम हो गया। आंकड़े कम होने से यह समझ लिया गया कि सब ठीक है। इसके साथ ही यह मान लिया कि बीमारी पर काफी हद तक नियंत्रण हो गया है। इससे कुछ वर्षों तक जागरूकता अभियान में तेजी नहीं दिखी। मगर, जैसे ही इस वर्ष लंबे समय तक तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर व नमी अधिक हो गई कि पीडि़त बच्चों की संख्या बढ़ती चली गई। विभाग की ओर से अब जागरूकता तेज करने की बात कही जा रही। जबकि काफी देर हो चुकी है।

एईएस से मौत का आंकड़ा

वर्ष मरीज मौत

2010 59 24

2011 121 45

2012 336 120

2013 124 39

2014 342 86

2015 75 11

2016 30 चार

2017 09 चार

2018 35 11

2019* 69 27

(* अब तक)

वारिस के लिए बारिश ही फिर बनेगी 'छतरी'

बीमारी के कारण की जांच के लिए देश व विदेश की कई एजेंसियां वर्षों से लगी हैं। मगर, सटीक कारण का अब तक पता नहीं चल सका है। एनआइवी पुणे, एनसीडीसी, दिल्ली व अटलांटा की एजेंसी की जांच में भी इस बीमारी के कारण का पता नहीं चला। साथ ही पीडि़त बच्चों में इंसेफेलाइटिस के ज्ञात वायरस भी नहीं मिले। इस वर्ष पीडि़तों की संख्या बढऩे से फिर ऊपर की ओर हाथ उठने लगे हैं। चिकित्सक भी कहते हैं कि बारिश शुरू हो जाए तो इन मासूमों की जान बच जाएगी।

ये इलाज कराने पहुंचे

एसकेएमसीएच में रविवार की सुबह से ही एईएस के मिलते-जुलते लक्षण वाले बच्चों के आने का क्रम शुरू हो गया था। यहां पहुंचने वालों में अहियापुर सहबाजपुर के संजय साह का पुत्र शिवम कुमार (2.5), हथौड़ी सिमरी के अकलू सहनी की पुत्री अनामिका कुमारी (3), कांटी के मनोज साह की पुत्री संध्या कुमारी (5), वैशाली भगवानपुर के राजेश सहनी की पुत्री रूपा कुमारी (7), सीतामढ़ी बेलसंड के बृजमोहन महतो की पुत्री तुलसी कुमारी (5), करजा रक्सा के रामभरोस ठाकुर की पुत्री ज्योति कुमारी (4), कांटी नवीनपुरी की पुत्री सोनम कुमारी (3.6), मोतीपुर डीहबर्जी के दीपलाल भगत का पुत्र सूरज कुमार (6), मीनापुर पानापुर के सुनील मांझी की पुत्री आशिक कुमारी (8), मुसहरी कोठीया के किशोर सहनी के पुत्र विशुन कुमार (6), गायघाट मैठी के चंदन सिंह का पुत्र लक्षबीर (6), सकरा विशुनपुर के रणजीत कुमार के पुत्र मोहित कुमार (6), अहियापुर पटियासा के संतोष कुमार की पुत्री रंजना कुमारी (6), कांटी सोनबरसा के लालू महतो का पुत्र अमन कुमार (6), साहेबगंज मोरहर के उमेश पटेल का पुत्र अमित कुमार (5), कुढऩी छाजन दुबियाही के रूपेश कुमार के पुत्र अनमोल (2), सीतामढ़ी डूमरा के शंकर मुखिया का पुत्र विराज मुखिया (1.5) एवं वैशाली बेलसर साईन के महेश राय का पुत्र विशाल कुमार (10) प्रमुख हैं। वहीं केजरीवाल में रविवार को मोतीपुर बखरी गांव निवासी पांच साल की सगुफ्ता परवीन, अहियापुर माधोपुर निवासी मो. यासीन और वैशाली जिले के बेलसर सेहान गांव निवासी सुबोध पासवान की चार साल की बच्ची सुष्मिता कुमारी को इलाज के लिए भर्ती कराया गया।

जिला प्रशासन की ओर से चलाया जाएगा व्यापक जागरूकता अभियान

एईस के फैलाव को रोकने के लिए जिला प्रशासन की ओर से व्यापक जागरूकता अभियान चलाया जाएगा। बीमारी के लक्षण व उससे बचाव के लिए पंफलेट, होर्डिंग व अन्य माध्यमों से आमलोगों तक जानकारी पहुंचाई जाएगी। इन माध्यमों से उन्हें बताया जाएगा कि बीमारी के लक्षण सामने आते ही जल्द से जल्द पीएचसी, एसकेएमसीएच व केजरीवाल अस्पताल तक पीडि़त को पहुंचाया जाए। इससे उसे बचाया जा सकता है। पिछले दिनों जिलाधिकारी की अध्यक्षता में संपन्न उच्चस्तरीय बैठक में यह बात सामने आई थी कि जागरूकता के अभाव बच्चों का सही समय पर इलाज नहीं हो रहा है।

आशा, आंगनबाड़ी सेविका व एएनएम की तय की गई जिम्मेदारी

एईएस से बचाव के लिए जमीनी स्तर पर काम कर रही आशा, आंगनबाड़ी सेविका-सहायिका एवं एएनएम की जिम्मेदारी तय की गई है। उन्हें अपने पोषण क्षेत्र के बच्चों के स्वास्थ्य पर निगरानी रखनी है। आक्रांत बच्चों को जल्द से जल्द पीएचसी में भेजने में मदद करेंगी। बच्चों के माता-पिता एवं अन्य परिजनों को इस बीमारी के लक्षण व बचाव की जानकारी देंगे। आशा, सेविका-सहायिका एवं एएनएम के लिए कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है। 

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