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Bihar Election 2020: मतलब ई है...: वोटर सुनना चाहते हैं कि रोजगार मिलेगा तो कैसे, क्या अब अपने प्रदेश में नौकरी की चाहत होगी पूरी

Bihar Election 2020 ऐसा नहीं कि रोजगार जैसे अहम मुद्दे पिछले चुनावों में गुम रहे हों लेकिन इस बार यह पक्ष मुखर है। कोरोना काल में परदेस से घर का रुख किए कामगारों को पैदल सड़क नापने का दर्द अब भी सालता है।

By Ajit KumarEdited By: Published: Sat, 17 Oct 2020 01:03 PM (IST)Updated: Sat, 17 Oct 2020 01:03 PM (IST)
Bihar Election 2020: मतलब ई है...: वोटर सुनना चाहते हैं कि रोजगार मिलेगा तो कैसे, क्या अब अपने प्रदेश में नौकरी की चाहत होगी पूरी
बड़ी संख्या में अभी भी लोग बाहर जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे।

मुजफ्फरपुर, [ संयम कुमार ]। Bihar Election 2020 : इस चुनाव में कोरोना ने राजनीतिक दलों के लिए रोजी-रोजगार का बड़ा टास्क दे दिया है। भले ही ये दल चुनाव को दूसरे मुद्दे पर ले जाने की कोशिश करें, आम मतदाता इस विषय पर गंभीर है। ऐसा नहीं कि रोजगार जैसे अहम मुद्दे पिछले चुनावों में गुम रहे हों, लेकिन इस बार यह पक्ष मुखर है। कोरोना काल में परदेस से घर का रुख किए कामगारों को पैदल सड़क नापने का दर्द अब भी सालता है। कुछ तो वापस लौट गए, लेकिन बड़ी संख्या में अभी भी लोग बाहर जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे। स्थानीय स्तर पर किसी तरह रोजी-रोटी के जुगाड़ में लगे हैं। 

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जमीन से जुड़कर कार्ययोजना बनानी होगी

बड़ी संख्या में सरकारी नौकरी देने की घोषणा इसी नब्ज पर अंगुली रखने प्रयास कहा जा सकता है। दूसरा पक्ष यह भी है कि राज्य में बड़े उद्योगों की गुंजाइश नहीं है। यह निष्कर्ष भी बेबुनियाद नहीं। बड़े जतन के बाद बुनियादी सुविधाओं के साथ राज्य ने कमर सीधी की है। अब भी कई काम होने बाकी हैं। बड़े निवेश के लिए निवेशक चाहिए। इसका प्रयास अब तक मुकाम नहीं पा सका। कुल मिलाकर रोजगार के मामले में बिहार को आंतरिक संसाधनों पर भरोसा करना होगा। जमीन से जुड़कर कार्ययोजना बनानी होगी।

सरकारी नौकरी की कार्ययोजना अस्पष्ट

चौक-चौराहों पर ऐसी चर्चा खूब है। सरकारी नौकरी की कार्ययोजना अस्पष्ट है। हल्की-फुल्की बातों से मतदाताओं को बहलाने की कोशिश महंगी पड़ सकती है। हालांकि इन चर्चाओं में इस विचार की भी घुसपैठ है कि चुनाव लड़ना-लड़ाना एक अलग विधा है। उम्मीदवारों के चयन में पहली योग्यता यह देखी जाती है कि वह जीतने का दमखम रखता हो। जातीय समीकरण का अपना महत्व है। जो वोट बटोर सकें चुनाव के लिए वही मुद्दे वाजिब हैं। सरकार बनेगी तभी तो काम करने का मौका मिलेगा। दूसरी ओर संचार माध्यम आम मतदाता को लगातार जागरूक बना रहे। लोगों का मानना है कि राज्य में रोजी-रोजगार की असीम संभावनाएं हैं।

कृषि को उन्नत बनाया जा सकता

कुटीर और लघु उद्योगों से रोजगार पैदा किए जा सकते हैं। प्रशिक्षण देकर कृषि को उन्नत बनाया जा सकता है। जिसकी भी सरकार हो, इसपर काम होना चाहिए। सरकार इच्छाशक्ति से काम करेगी तो विकास की राह पकड़ना कठिन नहीं। राज्य में हुनरमंदों की कमी नहीं। हालांकि चुनावी रंग तेरा शासन बनाम मेरा शासन की तुलना में रंगता दिख रहा है। आमजन इस विषय में दिलचस्पी भी ले रहे। संभव है, चुनाव के आखिरी दिन तक यही तुलना मुख्य मुद्दा बनकर रह जाए। फिर भी, मतदाता नेताओं के भाषण में अपने लिए रोजगार के विषय पर सुनना-जानना चाहेंगे।


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