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बच्चों के सुनहरे भविष्य पर इंटरनेट की परछाई

मुजफ्फरपुर । वर्ग में अव्वल, मगर इंटरनेट की ऐसी लत लगी कि पढ़ाई में परफॉरर्मेस घटता चला गया।

By JagranEdited By: Published: Thu, 15 Mar 2018 12:05 PM (IST)Updated: Thu, 15 Mar 2018 12:05 PM (IST)
बच्चों के सुनहरे भविष्य पर इंटरनेट की परछाई
बच्चों के सुनहरे भविष्य पर इंटरनेट की परछाई

मुजफ्फरपुर । वर्ग में अव्वल, मगर इंटरनेट की ऐसी लत लगी कि पढ़ाई में परफॉरर्मेस घटता चला गया। अभिभावक चिंतित..भूल का अहसास भी। दुलार में इंटरनेट की सुविधा देना नुकसानदायक साबित हो रहा है। नर्सरी से कक्षा चार तक के 25 बच्चों के अभिभावकों से रूबरू होने पर यही बात सामने आई। आधुनिक होते समाज और उसमें पल्लवित हो रही 'नवजात' पीढ़ी की स्याह वास्तविकता भी, जिसकी जड़ में जीवन के कई विकार पनप रहे हैं।

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मिठनपुरा की स्वीटी सिंह तीन साल की बेटी अनन्या को लेकर चिंतित हैं। वह कार्टून के अलावा स्मार्ट फोन पर यूट्यूब वीडियो देखती है। उसे इंगेज रख कामकाज निपटाने की कोशिश बड़ी चिंता बन गई है।

रमना इलाके की ¨रकी की भी पीड़ा कम नहीं। उनका चार वर्षीय बेटा मनु खाने के दौरान कार्टून देखता है। दैनिक एक्टिविटी में कार्टून कैरेक्टर की भाषा व हावभाव प्रकट करता है।

मनोचिकित्सक डॉ. गौरव कुमार का मानना है कि मोबाइल, इंटरनेट या टीवी कार्टून आदि बचपन की मानसिकता खत्म करने वाले हैं। अभिभावक बच्चों को व्यस्त रखने के लिए इनके आगे छोड़ देते हैं। इससे वे फिजिकल एक्टिविटी से दूर हो जाते हैं। उनका भावनात्मक विकास खत्म हो जाता है। व्यवहार में आक्रामकता पनपने लगती है। पढ़ने में रुचि भी कम होने लगती है।

-बच्चों को मोबाइल से दूर रखें, अकेले में टेलीविजन देखने के लिए न छोड़ें।

-फिजिकल एक्टिविटी अपनाएं।

-अच्छी और सचित्र पुस्तक आदि पढ़ने की आदत विकसित करें। बच्चों को खेलने के लिए खिलौने खरीदें।

-अभिभावक खुद मोबाइल और टीवी देखने के समय में कटौती करें।

समाजशास्त्री प्रो. रामजन्म ठाकुर कहते हैं कि पहले संयुक्त परिवार था। बच्चे दादी-नानी से सामाजिक ताने-बाने पर आधारित कथा-कहानी सुनते थे। उनके मानस पटल पर एक आवरण बनता था, वे उसमें एक किरदार की तरह खुद को देखते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं रहा। परिवार धीरे-धीरे एकल हो रहे। किस्सा-कहानी की जगह टीवी कार्टून, मोबाइल, इंटरनेट आदि आ गए। इससे बच्चों का मानसिक व सांस्कृतिक क्षरण होने लगा।

-बच्चों के साथ सकारात्मक संवाद प्रेषण बेहद जरूरी।

-परिपक्वता व परख की समझ होने पर ही सूचना तंत्र से अवगत कराएं।

-पारिवारिक मूल्यों पर चर्चा करें, उनकी जिम्मेदारियों से अवगत कराएं।

क्या कहता है वैज्ञानिक शोध : -भारत में 30 फीसद बच्चे प्रतिदिन औसतन छह घंटे टीवी, मोबाइल या अन्य आधुनिक उपकरणों में समय व्यतीत करते हैं।

-इन बच्चों मेंमानसिक, स्नायु तंत्र, दृष्टि दोष, मोटापा, एकाकीपन आदि विकार उत्पन्न हो रहे।

कक्षा तीन के कुछ बच्चों को लेकर किए गए एक सर्वे में यह बात आई है कि वे पहले बौद्धिक व शारीरिक रूप से काफी सुदृढ़ थे। क्लास से लेकर अन्य एक्टिविटी में भी सक्रिय थे। लेकिन, अभिभावकों द्वारा ही उपलब्ध कराए गए संचार माध्यमों के संपर्क में आने से उनका बौद्धिक विकास कुंठित होने लगा। शैक्षणिक के साथ स्वास्थ्य स्तर में गिरावट दर्ज की गई। मिस्कॉट की रहनेवाली मीरा सिंह कुछ इसी तरह के मामले से चिंतित हैं। उनके बेटे का संपूर्ण विकास अवरुद्ध हो गया है।


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