पश्चिम चंपारण के बगहा में बेटी होने पर अस्पताल में ही महिला को छोड़कर चले गए स्वजन
नगर थाना क्षेत्र के शास्त्रीगर मोहल्ले की पोखरा टोला निवासी प्रदीप सहनी की पत्नी रीता ने अनुमंडलीय अस्पताल में मंगलवार की देर शाम एक पुत्री को जन्म दिया। पुत्री की जानकारी होने पर घर वाले ले जाने से इन्कार कर दिए और वहां से भाग निकले।
बगहा, संस। एक परिवार अपनी बहू को अनुमंडलीय अस्पताल में इस आस से भर्ती कराया कि उसे इस बार बेटा होगा। लेकिन जब उसने बेटी को जन्म दिया तो घर वाले उसे बिना बताए छोड़कर चले गए। आज 21 वीं सदी में भी पुत्री पैदा होने पर लोगों में तरह-तरह की धारणाएं हैं। आधी आबादी , महिला सशक्तीकरण, बेटी बचाओ , बेटी पढाओ आदि तमाम स्लोग केवल सुनने और पढऩे में ही अच्छे लगते हैं।
नगर थाना क्षेत्र के शास्त्रीगर मोहल्ले की पोखरा टोला निवासी प्रदीप सहनी की पत्नी रीता ने अनुमंडलीय अस्पताल में मंगलवार की देर शाम एक पुत्री को जन्म दिया। पुत्री की जानकारी जैसे ही प्रदीप व उसके घर वालों को हुई तो वे ले जाने से इन्कार कर दिए और वहां से भाग निकले। इधर रीता अनुमंडलीय अस्पताल में घंटों इंतजार में बैठी रही उसने बताया कि उसकी दो पुत्री पलक व रिमझिम हैं। घर वाले नहीं चाहते की बेटी हो। उसकी सास रमपति देवी, ससुर विनोद सहनी और दादा गनेशी सहनी के द्वारा पुत्री होने पर प्रताडि़त किया जाता है। जैसे ही नगर के लोगों को यह पता चला कि बेटी होने पर ससुराल वाले महिला को घर नहीं ले जा रहे हैं। लोगों की भीड़ अस्पताल में जुट गई। कुछ लोगों के समझाने के बाद चार घंटे बाद उसकी सास पहुंची और उसे ले गई। रीता का मायका प्रखंड बगहा दो के जमुनापुर धिरौली में है। उसके माता पिता नहीं है।
इस घटना की जानकारी होने के बाद लोगों की तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। कोई इसे शिक्षा की कमी बता रहा है तो कोई महिला प्रताड़ना कानून के दायरे को और बढ़ाने की बात कर रहा है। बहरहाल इस तरह की घटनाएं आईने की तरह हैं। यह हमें संदेश देती हैं कि केवल कानून बना देने भर से न तो नारी सशक्तीकरण होगा और न ही बेटा और बेटियों का अंतर खत्म हो जाएगा। इसके लिए मानसिक विकास का होना जरूरी है। यह शिक्षा के प्रसार से ही संभव है।