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बच्चों के इलाज में केजरीवाल अस्पताल में नहीं हो रहा प्रोटोकॉल का पालन

एईएस से निबटने को जिलाधिकारी ने बुलाई उच्च स्तरीय बैठक। इलाज में प्रोटोकॉल का पालन नहीं करने की शिकायत को लेकर सीएस के नेतृत्व में केजरीवाल अस्पताल का किया निरीक्षण।

By Ajit KumarEdited By: Published: Fri, 07 Jun 2019 07:03 PM (IST)Updated: Fri, 07 Jun 2019 07:03 PM (IST)
बच्चों के इलाज में केजरीवाल अस्पताल में नहीं हो रहा प्रोटोकॉल का पालन

मुजफ्फरपुर, जेएनएन। एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) से आक्रांत बच्चों के इलाज के दौरान जूरन छपरा स्थित केजरीवाल अस्पताल में सरकार की ओर से निर्धारित प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया जा रहा था। आक्रांत बच्चों के इलाज का जायजा लेने के क्रम में सिविल सर्जन के सामने यह मामला आया था। एईएस को लेकर जिलाधिकारी आलोक रंजन घोष की अध्यक्षता में गुरुवार को आयोजित उच्चस्तरीय बैठक में यह बात रखी गई। जिलाधिकारी ने इसे गंभीरता से लेते हुए प्रोटोकॉल के तहत इलाज करने की सख्त हिदायत दी। ऐसा नहीं करने वाले चिकित्सकों को ही इसके लिए जिम्मेदार करार दिया जाएगा। उनके विरुद्ध सख्त कार्रवाई की जाएगी। 

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सीएस के नेतृत्व में चिकित्सकों की टीम ने केजरीवाल अस्पताल का किया निरीक्षण

प्रोटोकॉल के तहत इलाज नहीं करने की बात सामने आने पर जिलाधिकारी ने सिविल सर्जन डॉ.शैलेश कुमार सिंह के नेतृत्व में चिकित्सकों की एक टीम को इसकी जांच करने के लिए केजरीवाल अस्पताल भेजा। इस टीम की जांच में भी प्रोटोकॉल का पूर्णतया पालन नहीं करने की बात सामने आई है। सिविल सर्जन ने केजरीवाल अस्पताल के प्रशासक को प्रोटोकॉल का हर हाल में पालन करने का निर्देश दिया। उन्होंने केजरीवाल अस्पताल के चिकित्सकों को प्रोटोकॉल की जानकारी भी दी। इससे संबंधित पर्चा भी अस्पताल में चस्पा किया।

  इसके तहत अस्पताल पहुंचे बच्चों की जल्द से जल्द इलाज शुरू करना मुख्य है। प्रोटोकॉल के तहत इन बच्चों का इलाज शुरू करें। उसके लक्षणों के आधार पर जांच कराएं। जांच रिपोर्ट मिलने पर उसके अनुसार आगे का इलाज हो। इस टीम में एसकेएमसीएच प्राचार्य डॉ. विकास कुमार सिंह, शिशु रोग विभागाध्यक्ष डॉ.गोपालशंकर सहनी, एईएस के नोडल पदाधिकारी व जिला मलेरिया पदाधिकारी डॉ.सतीश कुमार, एसीएमओ डॉ. हरेंद्र कुमार आलोक, केजरीवाल अस्पताल की ओर से उसके प्रशासक वीवी गिरि एवं डॉ.राजीव कुमार शामिल थे।

आशा, आंगनबाड़ी सेविका एवं सहायिका को किया गया अलर्ट

एईएस को लेकर आशा, आंगनबाड़ी सेविका एवं सहायिका को अलर्ट किया गया है। इनको निर्देश दिया गया है कि अपने आसपास के बच्चों की जानकारी रखें। किसी में भी एईएस के लक्षण दिखते ही जल्द से जल्द निकट के स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंचाए। किसी भी हालत में क्वैक या झाडफ़ूंक के चक्कर में उन्हें नहीं पडऩे दें।

हर दिन रिपोर्ट तलब

पीएचसी, एसकेएमसीएच, केजरीवाल व निजी अस्पतालों में आने वाले एईएस से आक्रांत बच्चों की रिपोर्ट हर दिन दस बजे नोडल पदाधिकारी को देने का निर्देश दिया गया। अगर किसी अस्पताल में कोई आक्रांत बच्चा नहीं पहुंचता है तब भी उसकी रिपोर्ट करें। रिपोर्ट नहीं भेजने वाले के विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी।

एईएस पर जानकारी को लेकर जिला प्रशासन आयोजित करेगा सेमिनार

जिला प्रशासन की ओर से एईएस पर एक सेमिनार का आयोजन कराया जाएगा। इसमें एईएस को लेकर अब तक हुए शोध, इलाज व इसके स्वरूप पर विशेषज्ञों की राय जानी जाएगी। जिलाधिकारी ने एसकेएमसीएच के प्राचार्य को विशेषज्ञ चिकित्सकों की सूची देने का निर्देश दिया है।

बच्चों की मौत से बढ़ी स्वास्थ्य विभाग की बेचैनी

तापमान बढऩे के साथ दो दिनों से लगातार एईएस पीडि़तों की संख्या में इजाफा हो रहा। इसने अब जानलेवा स्वरूप अख्तियार कर लिया है। इससे स्वास्थ्य महकमे की बेचैनी बढ़ गई है। एसकेएमसीएच में पहुंच रहे मरीजों के इलाज के लिए जरूरी सुविधाओं को बढ़ाया जा रहा है। पीआइसीयू कक्ष-2 को खोला गया है। इन दोनों कक्ष में अनुभवी कर्मी की तैनाती के साथ रोस्टर के तहत चिकित्सकों की नियुक्ति की गई है। दोनों कक्ष अत्याधुनिक मशीनों व उपकरणों से लैस हैं।

 शिशु रोग विभागाध्यक्ष डॉ. गोपाल शंकर साहनी ने बताया कि बच्चों को बीमारी से शत-प्रतिशत बचाने का हरसंभव प्रयास किया जा रहा है। इसके लिए जिले के सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के प्रभारी चिकित्सकों एवं एसकेएमसीएच के इंटर्न छात्रों को एईएस की जांच व इलाज का प्रशिक्षण भी दिया जा चुका है। जिले के सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के प्रभारी चिकित्सकों को एईएस से पीडि़त बच्चों के इलाज में किसी तरह की कोताही नहीं बरतने को सीएस ने कहा है।

सात साल में भर्ती व मृत मरीज

एसकेएमसीएच में वर्ष 2012 से वर्ष 2018 तक क्रमश: इससे पीडि़त 235, 90, 334, 37, 31, 44 एवं 43 बच्चे पहुंचे थे। इनमें क्रमश: 89, 35, 117,15, 06, 18 एवं 12 की इलाज के दौरान मौत हो गई थी।

लक्षण दिखते ही सतर्क हों

वायरल इंसेफेलाइटिस में मरीज में फ्लू के लक्षण मिलते हैं। इसमें सिर दर्द, बुखार, मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द के साथ कमजोरी एवं थकान महसूस होती है। गंभीर होने पर मरीज को बोलने व सुनने में परेशानी होती है। वह बेहोश हो जाता है। साथ ही बच्चों में उल्टी, जी मिचलाना, भूख नहीं लगना, शरीर का अकडऩा व चिड़चिड़ापन प्रारंभिक लक्षण हैं। मरीज में उपरोक्त लक्षण होने पर तत्काल चिकित्सक से परामर्श लेना जरूरी है।

प्राथमिक उपचार के बाद ही आक्रांत बच्चे पीएचसी से होंगे रेफर


जिलाधिकारी आलोक रंजन घोष ने एईएस से निबटने के लिए कई निर्देश जारी किए। जिसके तहत अब प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बिना प्राथमिक उपचार दिए ही आक्रांत बच्चों को एसकेएमसीएच के लिए रेफर नहीं कर सकते हैं।

ये दिए गए निर्देश

- प्रखंड के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पीएचसी में एईएस किट उपलब्ध है। यह सुनिश्चित किया जाएगा कि अगर किसी पीएचसी में ऐसा मामला सामने आता है तो प्राथमिक उपचार के बाद ही आगे के लिए भेजेंगे।

- सिविल सर्जन केजरीवाल अस्पताल में एक कालाजार पर्यवेक्षक की प्रतिनियुक्ति करेंगे। ये पर्यवेक्षक वहां आने वाले एईएस आक्रांत बच्चों के इलाज के प्रोटोकॉल की निगरानी करेंगे।

- बीमारी से बचाव के लिए पंफलेट व होर्डिंग के माध्यम से प्रचार-प्रसार किया जाएगा। ताकि लोगों में जागरूकता आए।

- मीडिया के साथ एक कार्यशाला का आयोजन किया जाएगा। जिससे खबरों में सनसनी से बचा जाए। हर दिन की आधिकारिक रिपोर्ट मीडिया से साझा किया जाएगा।

आदेश का नहीं होता अनुपाल, बढ़ रही परेशानी

एसकेएमसीएच के शिशु विभागाध्यक्ष एवं अस्पताल प्रबंधक के आदेश का अनुपालन भी नही किया जा रहा है। इसके कारण अक्सर कक्ष में परेशानी बढ़ी रहती है। बच्चों की बढ़ती संख्या को लेकर कई दिनों से विभागाध्यक्ष डॉ. गोपाल शंकर साहनी एवं अस्पताल प्रबंधक संजय कुमार साह कई दिनों से पीआइसीयू-2 खोलने का आदेश दे रखा था। इसके बावजूद कक्ष नहीं खोले जाने से कक्ष-1 में एक विस्तर पर दो-दो मरीज को रख इलाज किया जा रहा था। इससे इलाज में जहां परेशानी हो रही थी, वही बच्चे के बीच संक्रमण का खतरा बढ़ रहा था। गुरुवार को काफी जद्दोजहद के बाद पीआइसीयू-2 खोला गया। इसके बावजूद दोनों कक्ष हाउसफुल हो गया है।

नए रोस्टर नही चिपकाए गए

पीआइसीयू में चिकित्सकों का लगा डयूटी का रोस्टर अब तक नहीं बदला गया है। जबकि इस नए डयूटी का लिस्ट तीन माह पूर्व तैयार कर चस्पाने का आदेश दिया गया था। इसमें चिकित्सकों का मोबाइल नम्बर भी अनिवार्य रूप से होना था। हालांकि गुरुवार की शाम तक यह नया रोस्टर कक्ष में उपलब्ध नहीं कराया गया है। वहीं कक्ष में नियमित रूप से चिकित्सकों के नहीं होने के कारण अक्सर परेशानी बनी रहती है।

चिकित्सक नहीं होते एप्रन में

कक्ष में ड्यूटी पर आने वाले चिकित्सक एप्रन पहनना अपने शान के खिलाफ समझते हैं। इसके कारण कक्ष में भर्ती मरीज के परिजन सभी आने जाने वालों को चिकित्सक समझ अपना पीड़ा सुनाने लगते हैं। जबकि प्राचार्य डॉ. विकास कुमार का स्पष्ट आदेश है कि ड्यूटी पर सभी चिकित्सकों को ऐप्रन एवं कर्मियों को निर्धारित वर्दी में होना अनिवार्य है। इसे नहीं पहनने के कारण मरीज के परिजन अक्सर ठगी के शिकार होते रहते हैं। यही नहीं, मरीज का कोई परिजन किसी अन्य को चिकित्सक समझ अपनी पीड़ा सुनाते है तो उन्हें नागवार गुजरता है।

हाकीम, आंख कान के बीच ईहे ऐगो नतनी बा...

हाकीम, आंख कान के बीच ईहे ऐगो नतनी बा...। दस दिन से भर्ती हती, ठीक होयत की न, अब तक आंख न खोललक, जैसे अनेक शब्द गुरुवार को पीआइसीयू में भर्ती बच्ची की नानी कांति देवी कहते-कहते विलख पड़ती हैं। उनकी आंखों से आंसू की धारा बहने लगती है। अगल-बगल में भर्ती बच्चे के परिजन उन्हें ढांढस दिलाते हैं, कहते है सब ठीक हो रहा है तो एकरो डॉक्टर बाबू ठीक कर दे थीन।

जी हां, यह कोई पत्र-पत्रिका की पंक्ति नही हैं। यह एसकेएमसीएच के पीआइसीयू कक्ष में भर्ती सीतामढ़ी रुन्नीसैदपुर स्थित गोरिगमा के कांति देवी की पीड़ा है। वे बताती हैं कि पुत्री रानी देवी की शादी मीनापुर धारपुर चैनपुर में सुनील सहनी से तीन वर्ष पूर्व हुई थी। छह माह पूर्व उसके पति की मौत हो गई। इससे अब अपने पास रखती हूं। इसी बच्ची की अब सभी को भरोसा एवं सहारा है।

इलाज में प्रोटोकॉल का किया जा रहा पालन : प्रशासक

केजरीवाल अस्पताल के प्रशासक वीवी गिरि ने कहा कि एईएस से आक्रांत बच्चों के इलाज में प्रोटोकॉल का पालन किया जा रहा है। ऐसे आक्रांत बच्चों के पहुंचते ही लक्षण के आधार पर इलाज शुरू किया जाता है। इसके बाद संबंधित टेस्ट कराई जाती है। जांच रिपोर्ट आने पर उसके अनुसार आगे का इलाज किया जाता है। एईएस से आक्रांत बच्चों के इलाज के लिए उनके अस्पताल में दो विशेष वार्ड बनाए गए हैं। वहां भर्ती बच्चों के स्वास्थ्य पर हर समय चिकित्सक व चिकित्साकर्मी नजर रखते हैं।

चमकी बुखार से पीडि़त चार और बच्चों की मौत, ग्यारह भर्ती

उमस बढऩे के साथ ही एईएस ने कहर बरपना शुरू कर दिया है। पिछले 24 घंटे में इसकी वजह से चार और बच्चों की मौत हो गई है वहीं एक दर्जन नए मरीज भर्ती हुए हैं।  गुरुवार को एसकेएमसीएच में एईएस से पीडि़त आठ बच्चों को पीआइसीयू में भर्ती किया गया। इलाज के दौरान ही उनमें से तीन की मौत हो गई। इसमें सरैया चकना का दो वर्षीय रंजन कुमार, सरैया की दो वर्षीय ज्योति एवं सुबोध कुमार शामिल हैं।

  वहीं केजरीवाल अस्पातल में एक बच्ची रागिनी की मौत हो गई। इलाज के लिए भर्ती हुए बच्चों में वैशाली भगवानपुर कितूपुर की पांच वर्षीय रीमा, बोचहां के प्रमोद ठाकुर का साढ़े तीन वर्षीय पुत्र सुमन कुमार, गायघाट जाता पछियारी निवासी रामबृक्ष महतो की पांच वर्षीय पुत्री सोनम कुमारी, मीनापुर हरपुर की साढ़े पांच वर्षीय बच्ची प्रियांशु कुमारी, अहियापुर मुस्तफापुर के मो. हलीम की पांच वर्षीय पुत्री फरजाना खातून, मो. जहूर की चार वर्षीय पुत्री शहनाज एवं मोतिहारी मेहसी निवासी मो. रहमान की तीन वर्षीय पुत्री सनिया शामिल हैं। केजरीवाल अस्पताल में गुरुवार को आधा दर्जन बच्चे भर्ती हुए।

  भर्ती बच्चों की जांच के दौरान अधिकांश में ग्लूकोज की मात्रा काफी कम पाई गई। इसके बाद इनके ब्लड सैंपल को उच्चस्तरीय जांच के लिए भेजा गया। इसमें सनिया, फरजाना खातून, शहनाज और प्रियांशु के एईएस से पीडि़त होने की चिकित्सकों ने पुष्टि की है। एसकेएमसीएच में इस वर्ष अस्पताल के दस्तावेज के अनुसार एईएस पीडि़त बच्चों की संख्या 27 पर पहुंच चुकी है। इसकी पुष्टि जांच के पश्चात होने पर सरकार को रिपोर्ट भेजी जा चुकी है। इसमें दो मरीज के जापानी इंसेफेलाइटिस से पीडि़त होने की पुष्टि हुई है। इनमें से अब तक आठ बच्चों की मौत हो चुकी है। 

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