धरातल पर नहीं उतर सका मच्छर उन्मूलन अभियान, शहरवासी की नींद हराम कर रहे मच्छर
पांच लाख शहरवासियों का खून चूस रहे मच्छर, नहीं हो रही फॉगिंग, मच्छरों से मुक्ति दिलाने का वादा भूल गए पार्षद, लोगों में नाराजगी।
मुजफ्फरपुर, जेएनएन। बड़े हाकिमों को मच्छर नहीं काटते। काटते तो हाथ-पांव जरूर चलाते। यहां तो सब खामोश हैं। लेकिन, पांच लाख शहरवासियों की पीड़ा समझ में आती है। इसलिए कि ये मच्छर उनका खून चूस रहे और नगर निगम बजाय मच्छरों को मारने के मक्खी मार रहा। उसके सारे हथियार धार खो चुके। फॉगिंग मशीन शोभा बनी हैं तो स्प्रे मशीन का पता नहीं। पार्षदों का मच्छर उन्मूलन अभियान वादों व दावों में कहीं गुम हो गया। शहरवासी अब इसका दंश झेल रहे। ये मच्छर उनकी नींद हराम कर रहे। मच्छर उन्मूलन अभियान ध्रातल पर नहीं उतर सका है। लोगों को इस समस्या से निजात मिलने का इंतजार है।
मच्छर देख बीमार हो जाती फॉगिंग मशीन
मच्छरों पर नियंत्रण के लिए नगर निगम ने दो साल पहले 30 लाख खर्च कर पांच आधुनिक मशीनों की खरीद की। स्टॉक में इंट्री के बाद उनमें से दो लौटा दी गईं। शेष तीन मशीनों को ढोने के लिए तीन ई-रिक्शे भी खरीदे गए। लेकिन, मशीनों की हालत यह है कि जैसे ही उन्हें अभियान में लगाया जाता, कुछ न कुछ गड़बड़ी हो जाती। या यूं कहें कि मच्छरों को देख वे बीमार हो जाते। अब तो रिक्शों में भी इतना दम नहीं कि इन मशीनों का बोझ उठा सकें।
इलाज व वैकल्पिक उपायों पर कट रही जनता की जेब
मच्छरों के डंक से शहरवासियों को दोहरी पीड़ा झेलनी पड़ रही। एक तो मच्छर जनित बीमारियों जैसे- मलेरिया, डेंगू, जेई आदि का प्रकोप हो रहा तो दूसरी ओर मच्छरों से बचने को कई उपाय करने पड़ते। क्वॉयल्स, लिक्विड, स्टिक्स आदि पर ठीक-ठाक राशि खर्च करनी पड़ती। ऐसा भी नहीं है कि ये इको-फ्रेंडली हैं। इनका दुष्प्रभाव अलग से झेलना पड़ता है।