डॉ. रश्मि रेखा की विदाई से ठहर गया रचना का सफर, काव्य-कविता और यादें रह गईं शेष
याद आएगा सीढिय़ों का दुख महादेवी वर्मा सम्मान से पुरस्कृत डॉ. रश्मि रेखा के देहावसान से साहित्य जगत शोक में डूबा।
मुजफ्फरपुर, जेएनएन। समकालीन कविता की महत्वपूर्ण हस्ताक्षर डॉ. रश्मि रेखा आलोचना के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय स्तर पर अलग छाप छोड़ती थीं। उनके लेखन के लिए बिहार सरकार के राजभाषा विभाग ने महादेवी वर्मा सम्मान से पुरस्कृत किया था। कविता संग्रह 'सीढिय़ों का दुख' काफी चर्चित रहा।
शुक्रवार रात डॉ. रश्मि रेखा के रूप में रचना का सफर ठहर गया। उक्त रक्तचाप के कारण ब्रेन हेमरेज हुआ। रामबाग स्थित अपने आवास पर उन्होंने अंतिम सांस ली। आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री के नजदीकी डॉ. दुर्गा प्रसाद की पुत्री थीं और शास्त्री जी के कहने पर निराला निकेतन में ही एक भूखंड लेकर अपना आवास बना लिया था। डॉ.नंदकिशोर नंदन ने उनके निधन को प्रेम, आनंद और सृजनशीलता से परिपूर्ण जीवन का अत्यंत दुखद अंत बताया।
डॉ. रश्मि उनकी प्रिय शिष्या रहीं हैं। इन्होंने जानेमाने कवि ध्रुव गुप्त की पत्रिका 'संभवा' के कई अंकों के अलावा तार सप्तक के प्रमुख कवि मदन वात्स्यायन की पुस्तक का संपादन किया। वरिष्ठ कवि व साहित्यकार डॉ. संकज पंकज ने कहा कि कविता संग्रह 'सीढिय़ों का दुख' काफी चर्चित रहा। उन्होंने डॉ. रश्मि रेखा को नए रंग-रूप व तेवर-मिजाज का लेखक-कवि बताया। अपने साहसी तेवर से कविता के प्रचलित धारणाओं को ध्वस्त करती थीं।
शादी वाले घर में पसरा मातम
28 नवंबर को उनके पुत्र की शादी थी। घर में उत्सवी माहौल था। इस बीच उनके देहावसान से घर में मातम पसर गया। 64 वर्षीया डॉ. रेखा के निधन की खबर सुनकर साहित्यकारों व कवियों में शोक की लहर दौड़ गई। वह अपने पीछे पति डॉ. अवधेश कुमार, पुत्र डॉ. संकेत व पुत्री डॉ. प्राची समेत भरा पूरा परिवार छोड़ गई हैं। काव्य संग्रह 'झोला' पर अपनी रचना में उन्होंने लिखा- 'समय की फिसलन से कुछ चीजें बचा लेने की, इच्छाओं ने मिल-जुल कर रची होगी शक्ल झोले की। उनकी प्रमुख रचनाओं में चाभी, कटोरी, चश्मा, रोशनदान, काली लड़की, लालटेन, स्वर्णाक्षर, चांद की तरह, हिरनी झरना, रचना का सफर, जो अब मां नहीं रही आदि शामिल हैं।
कविता संग्रह 'सीढिय़ों का दुख' के कुछ अंश
अपने गहरे एकांत में बहुत आत्मीय बातें करती हैं किताबें, दस्तक देकर आमंत्रित करती हैं, अपने शब्दों के साथ
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