परिचर्चा: पढ़ेगी बिटिया तभी समाज और देश का नाम कर सकेगी रोशन Muzaffarpur News
दैनिक जागरण कार्यालय में हुई परिचर्चा में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ विषय पर हुई चर्चा। बोले- बदलते समय के साथ आधुनिकता अच्छी बात है मगर यह एक दायरे में रहे इसका ख्याल रखना जरूरी है।
मुजफ्फरपुर, जेएनएन। बदलते समय के साथ आधुनिकता अच्छी बात है, मगर यह एक दायरे में रहे, इसका ख्याल रखना जरूरी है। हम अपने संस्कार और परंपरा को नहीं भूलें। यदि बच्चियां पढ़ेंगी, तभी वह अच्छे-बुरे का फर्क समझ पाएंगी और आत्मनिर्भर होकर देश और समाज का नाम रोशन कर सकेंगी। फिर लोग बेटियों को बोझ नहीं समझेंगे। ये बातें शुक्रवार को दैनिक जागरण सभागार में हुई परिचर्चा में सामने आईं। सशक्त बेटियों से सशक्त महिला तक अभियान के तहत 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओÓ विषय पर परिचर्चा रखा गया था।
इसमें वक्ताओं ने कहा कि वास्तव में जब तक लोग शिक्षित नहीं होंगे, उनकी मानसिकता में बदलाव संभव नहीं। यदि बेटी को बचाना है तो उन्हें शिक्षित करना ही होगा। यदि बेटियां शिक्षित होंगी, तभी उनकी प्रतिभा निखरकर सामने आएगी। एक मां ही है, जो अपने बच्चों को संस्कारित करती है। बच्चियों को शिक्षित करने के लिए प्रयास लोगों को ही करना होगा।
लड़कियों को भी अपनी सोच बदलनी होगी कि हम कमजोर हैं। यदि वह ठान ले तो अपने परिवार के साथ देश का भी नाम रोशन कर सकती हैं। हमें हार नहीं माननी चाहिए। मौके पर शहर की जानी-मानी स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ.अर्चना कुमारी, वरिष्ठ शिक्षिका डॉ.वंदना पांडेय व प्रज्ञा भारती, बीएड कॉलेज की व्याख्याता डॉ.मोनिता सहाय, समाजसेविका आरती सिंह, रानी श्रीवास्तव, रानी वर्मा, रागिनी सहनी, श्रेया सुमन, गोल्डी मिश्रा, अंजली कुमारी, रागिनी कुमारी, शगुफ्ता यास्मिन आदि ने विचार रखे। विषय प्रवेश इनपुट हेड रविकांत प्रसाद ने कराया।
वक्ताओं ने रखी अपनी राय
वरीय शिक्षिका डॉ. वंदना पांडेय ने कहा कि बेटे और बेटियों में कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। यदि बेटियां शिक्षित होंगी तो वे दो परिवारों को सही से संभाल सकती हैं। खुद के साथ दूसरों को भी इसके लिए जागरूक करना होगा। बेटा और बेटी में कोई फर्क नहीं होता।
स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ.अर्चना कुमारी ने बताया कि लोगों को अपनी मानसिकता बदलनी होगी। रूढिवादिता भी खत्म हो रही है। यदि बेटी पढ़ी-लिख लेगी तो दूसरों पर निर्भर नहीं रहेगी, आत्मनिर्भर हो जाएगी।
शिक्षक प्रज्ञा भारती का कहना है कि पुरुष प्रधान समाज होने के कारण लोगों की मानसिकता बन चुकी है कि बेटा चाहिए। लड़की क्या नहीं कर सकती, लोग इसे भूल जाते हैं। आज कोई क्षेत्र ऐसा नहीं, जहां महिलाएं नहीं पहुंची हों। लड़कियां पढऩा चाहती हैं, मगर पारिवारिक दबिश के कारण वे ज्यादा पढ़-लिख नहीं पातीं।
बीएड कॉलेज की लेक्चरर मोनिता सहाय ने कहा यदि लड़की कमजोर है तो इसके लिए समाज नहीं, बल्कि वह ही दोषी है। लड़कियों को खुद अंदर से मजबूत बनना होगा। परिस्थितियां स्वत: नहीं आतीं, हमें उसे अपने अनुकूल बनाना पड़ता है। केवल इच्छाशक्ति होनी चाहिए।
गृहिणी रागिनी सहनी ने कहा बेटा और बेटी दोनों में संतुलन जरूरी है। बच्चियां शारीरिक रूप से भले ही कमजोर हों, मगर मेंटल रूप से वे काफी मजबूत होती हैं। गुड टच और बैड टच का ज्ञान बच्चियों को देना मां का दायित्व है।
समाजसेविका आरती सिंह कहतीं है कि बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान सरकार की अच्छी सोच है। इसे वृहत स्तर पर अपनाने की जरूरत है। हमें इस चीज को समझना होगा कि बेटा और बेटी में फर्क नहीं। दोनों को संस्कारित करना हमारा दायित्व है। बेटी ही तो डॉक्टर, वकील और जज बन रही है।