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नवविवाहितों का लोकपर्व मधुश्रावणी शुरू, तपस्या के समान है यह पूजा; जानें

मधुश्रावणी में नवविवाहिता ने शिव-गौड़ी के साथ-साथ विषहर की पूजा करते हुए चिर सुहाग की कामना की। इस दौरान घरों में शिव नचारी व विद्यापति के गीतों से वातावरण गुंजायमान रहा।

By Murari KumarEdited By: Published: Fri, 10 Jul 2020 04:59 PM (IST)Updated: Fri, 10 Jul 2020 04:59 PM (IST)
नवविवाहितों का लोकपर्व मधुश्रावणी शुरू, तपस्या के समान है यह पूजा; जानें

मुजफ्फरपुर, जेएनएन। मिथिलांचल के नवविवाहितों का 14 दिनी लोक पर्व मधुश्रावणी शुक्रवार को शुरू हो गया। इसमें नवविवाहिता ने शिव-गौड़ी के साथ-साथ विषहर की पूजा करते हुए चिर सुहाग की कामना की। इस दौरान घरों में शिव नचारी व विद्यापति के गीतों से वातावरण गुंजायमान रहा। पर्व में महिला पुरोहित ने यजमान के घर जाकर विधिवत पूजा कराते हुए कथा कही। बताते चलें कि मिथिलांचल के इस लोकपर्व में जिनकी शादी इस वर्ष हुई है, वे 14 दिनों तक विधिवत उपवास रखकर पूजा करेंगी। दिन में फलाहार के बाद रात में ससुराल से आए अन्न से तैयार अरबा भोजन ग्रहण करेंगी।

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कथा का विशेष महत्व

पूजा के दौरान शिव-पार्वती से जुड़ी कथा सुनने का प्रावधान है। महिला पुरोहित द्वारा प्रतिदिन कथा सुनाई जाती है। एक दिन पूर्व डाली में सजाए गए फूल, ससुराल से आई पूजन सामग्री, दूध-लावा व अन्य सामग्री से विषहर की भी पूजा की जाती है। माना जाता है कि इस प्रकार पूजा-अर्चना से पति के दीर्घायु का वरदान मिलता है। 

तपस्या के समान है यह पूजा

रामदयालु स्थित मां मनोकामना देवी मंदिर के पुजारी पंडित रमेश मिश्र बताते हैं कि यह पूजा एक तपस्या के समान है। इसमें लगातार 14 दिनों तक नवविवाहिताएं बार अरवा भोजन करती हैं। साथ ही नाग-नागिन, हाथी, गौरी-शिव आदि की प्रतिमा बनाकर नित्य कई तरह के फूलों, मिठाइयों व फलों से पूजन किया जाता है। पूजा के दौरान दौरान मैना पंचमी, मंगला गौरी, पृथ्वी जन्म, पतिव्रता, महादेव कथा, गौरी तपस्या, शिव विवाह, गंगा कथा, बिहुला कथा तथा बाल वसंत की कथा सहित 14 खंडों में कथा का श्रवण किया जाता है। गांव-समाज की बुजुर्ग कथा वाचिकाओं के द्वारा नव विवाहिताओं को समूह में बिठाकर कथा कही जाती है। प्रतिदिन संध्याकाल महिलाएं आरती, सुहाग गीत और कोहबर गीत गाती हैं। 

टेमी दागने की भी परंपरा

पूजा के अंतिम दिन विवाहिता को टेमी दागने की परंपरा से गुजरना पड़ता है। इसमें पूजा के अंतिम दिन इसमें शरीक हुए पति अपनी विवाहिता के घुटने पर पान का पत्ता रख जलती बाती से छूते हैं। इसके पीछे मान्यता है कि इससे पति-पत्नी का संबंध मजबूत होता है।


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