लोगों का सपना अब भी अधूरा, जिला नहीं बन सका रक्सौल
जिला बनने से 50 किमी दूर जाने की विवशता हो जाएगी समाप्त। जिले की सीमा को सुरक्षित करने में भी मिलेगी मदद। आयात-निर्यात को लेकर आर्थिक नगरी के रूप में ख्याति प्राप्त है।
पूर्वी चंपारण, [विजय कुमार गिरि]। अंतरराष्ट्रीय महत्व के कारण रक्सौल की पहचान देश-विदेश में गेटवे ऑफ नेपाल के रूप में है। आयात-निर्यात को लेकर आर्थिक नगरी के रूप में ख्याति प्राप्त है। इस शहर को जिला बनाने की मांग उठती रही है। सरकार ने इस दिशा में पहल जरूर की, पर इसका जिला बनने का सपना पूरा नहीं हो सका। भौगोलिक स्थिति भी एक जिला के लिए अनुकूल है। करीब सात किलोमीटर के क्षेत्रफल में यह शहर फैला है। इसके साथ ही फिलहाल चार प्रखंडों का अनुमंडल है।
इस अनुमंडल में पलनवा एक प्रस्तावित प्रखंड है। 70 वर्ष पहले पलनवा को प्रखंड बनाने की योजना तैयार की गई। रक्सौल नगर परिषद में 25 वार्ड हैं। रक्सौल के दक्षिण में धनगढ़वा-कौड़ीहार, उत्तर पनटोका, पूरब नोनयाडीह और पश्चिम में जोकियारी पंचायत है। जिसकी आबादी करीब दो लाख है। नगर की आबादी स्थायी रूप से एक लाख 80 हजार है। वहीं अस्थायी आबादी करीब पांच लाख है। लोगों को छोटे-छोटे काम के लिए 50 किलोमीटर दूर जिला मुख्यालय मोतिहारी जाने की विवशता है।
सुरक्षा को लेकर सीमा क्षेत्र है संवेदनशील
भारत-नेपाल सीमा क्षेत्र सुरक्षा के दृष्टिकोण से काफी संवेदनशील है। दोनों देशों की सीमा खुली होने से भारत-विरोधी संगठनों की इसपर नजर रहती है। ग्रामीण रास्ते से अपराधी, आतंकी, बड़ी चालाकी से सुरक्षा व्यवस्था को चकमा देकर आते-जाते हैं। सुरक्षा व्यवस्था को लेकर जिलास्तरीय प्रशासन की आवश्यकता है। इसके लिए सरकार ने पहल की, पर जिला का दर्जा नहीं मिला। इस शहर को स्मार्ट सिटी और नेपाल के सीमावर्ती पर्सा और बारा जिला के समकक्ष विकसित करने की योजना आवश्यक है। देशी-विदेशी पर्यटक इंडो-नेपाल बॉर्डर के इस शहर के तस्वीर को देख भारत के स्वरूप को देखते हैं।
इन प्रखंडों को मिलाकर बन सकता हैं जिला
अनुमंडल में रक्सौल, आदापुर, छौड़ादानो प्रखंड है। पलनवा और नरकटिया प्रखंड के प्रस्तावित है। इसके अलावा घोड़ासहन, पश्चिमी चंपारण का सिकटा प्रखंड इस जिले का अंग हो सकता है। इसमें दो प्रखंड नक्सल प्रभावित है। जिला नहीं बनने से उक्त दो प्रखंडों का समुचित विकास नहीं हो पाया है। ऐसी स्थिति में रक्सौल को जिला का दर्जा मिलते ही इस क्षेत्र के लोगों का विकास संभव हो जाएगा। सुरक्षा और बुनियादी सुविधा की दृष्टि से सबल हो जाएगा।
जिला बना तो आर्थिक नगरी के रूप में विकसित होगा शहर
जिला बनने से शहर का आर्थिक विकास भी होगा। फिलहाल लोगों को कल कारखानों का निबंधन कराने और योजनाओं के जानकारी के लिए साठ किलोमीटर दूर जाना पड़ता हैै। इसके कारण संपन्न लोग ही उद्योग धंधों से जुड़ते हैं। छोटे-व्यवसायी या तो बगैर निबंधन के कार्य करते हैं या जानकारी के अभाव में मजदूरी कर इस योजनाओं का लाभ नहीं ले पाते हैं।
फिलहाल रक्सौल की सरकारी आंकड़ों के अनुसार सीमा शुल्क कार्यालय का प्रतिवर्ष राजस्व संकलन दो अरब पैंतालिस करोड़, आईओसी एक अरब पच्चीस करोड़, रेलवे करीब दो अरब यात्री और माल ढ़ुलाई से, विभिन्न बैंकों से दो अरब और भारतीय जीवन बीमा निगम की आय के मामले में बिहार और झारखंड में रक्सौल शाखा एक नंबर स्थान प्राप्त है।
सरकारी तंत्र की रफ्तार धीमी
रक्सौल को जिला बनाने के लिए सीएम नीतीश कुमार ने घोषणा की थी। तिरहुत आयुक्त को संसाधन संसाधन जुटाने का आदेश दिया था, पर इसकी रफ्तार को गति नहीं मिल सकी। रक्सौल निवासी ईश्वरदत्त आर्य ने कहा कि रक्सौल में अवैध व्यापार, आतंकियो की नजर रहती है। जिलास्तरीय प्रशासनिक व्यवस्था से सुरक्षा तंत्र औऱ मजबूत होगी। अवकाश प्राप्त प्रधानाध्यापक ध्रुवनारायण प्रसाद ने कहा कि भारत-नेपाल सीमा के रक्सौल में बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है।
शहर में शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क का हाल बेहाल है। रक्सौल को जिला बनाने के साथ ही सरकार को उच्च शिक्षण संस्थान, तकनीकी शिक्षा केंद्र, सड़कों का चौड़ीकरण नाला, खेल का मैदान आदि का समुचित व्यवस्था के लिए सरकार को स्पेशल पैकेज देना होगा। जिला बनने से रक्सौल का संम्पूर्ण विकास होगा। सेवानिवृत्त प्रधानाध्यापक शंभूनाथ तिवारी ने कहा कि रक्सौल के विकास के लिए इसका जिला का दर्जा देना होगा। इसके लिए करीब चालीस वर्षों से बात चल रही है। परंतु अबतक यह सपना पूरा नहीं हो सका है। रक्सौल जिला बना तो उत्तरी चंपारण इसका नाम होना चाहिए।
व्यवसायी कपिलदेव सर्राफ ने कहा कि जो रक्सौल को जिला बनाने का बात करेगा वही रक्सौल पर राज करेगा। रक्सौल अनुमंडल का दो प्रखंड और रामगढ़वा के कुछ पंचायत नक्सल प्रभावित है। इस परिस्थिति में सुरक्षा व्यवस्था को लेकर रक्सौल जिला बनाना आवश्यक है।