फिल्म में दिखेगी कटरा के टी मैन छोटू की बहादुरी, मुंबई हमले में बचाई थी लोगों की जान
उनकी बहादुरी की कहानी से बालीवुड के निर्माताओं को काफी आकर्षित किया और उसपर फिल्म बनाने का निर्णय ले लिया, यह फिल्म जिरकॉन प्रोडक्शन के बैनर तले बनेगी।
By Ajit KumarEdited By: Published: Thu, 10 Jan 2019 04:26 PM (IST)Updated: Thu, 10 Jan 2019 04:26 PM (IST)
मुजफ्फरपुर, जेएनएन। नाम है इनका छोटू पर काम हिम्मत वाला। कटरा के तौफिक उर्फ छोटू ने वह कर दिखाया जो बड़े-बड़े करने की साहस ना जुटा पाएं। 26/11 मुंबई हमले के दौरान दर्जनों लोगों की जान बचाने वाले छोटू को लोग अब फिल्म के पर्दे पर देखेंगे। इस फिल्म का नाम टी मैन: रियल हीरो रखा गया है। उनकी बहादुरी की कहानी से बालीवुड के निर्माताओं को काफी आकर्षित किया और उसपर फिल्म बनाने का निर्णय ले लिया। यह फिल्म जिरकॉन प्रोडक्शन के बैनर तले बनेगी।
छोटू मुंबई में स्टेशन पर चाय बेचने का करते काम
26 नवंबर 2008 को छोटू ने हमले के दौरान कई लोगों की जान बचाई थी। इस दौरान उन्होंने अपनी जान की परवाह नहीं की थी। आज उस हमले को करीब दस वर्ष हो चुके है। छोटू आज भी उसी स्टेशन पर चाय बेचकर अपनी जीविका चलाते है। कटरा के डुमरी गांव का रहने वाले छोटू की बहादुरी पर महाराष्ट्र सरकार, रेलवे सहित कई विभाग ने उसे सम्मानित किया है। अपने उपर बन रही फिल्म को लेकर छोटू ने कहा- जिस वक्त हमला हुआ था उस वक्त उसे जो सही लगा वह किया। उसपर आधारित फिल्म का बनना मेरे लिए गौरव की बात है।
निकेतन सावंत ने लिखी है छोटू की कहानी
छोटू की बहादुरी की कहानी मुंबई के फिल्म राइटर निकेतन सावंत ने लिखी है। उनके अनुसार जब उन्हें छोटू की कहानी की जानकारी हुई तो कहा कि इससे बेहतर स्टोरी नहीं हो सकती। बताया कि वे रेलवे स्टेशन से लेकर उसकी चाय की दुकान पर कई बार गए है। अब कहानी के साथ पूरी पटकथा तैयार है। छोटू पर फिल्म बनाने के लिए कई प्रोड्यूसर इच्छुक थे लेकिन मुझे बड़े बैनर का इंतजार था जो जिरकॉन फिल्म प्रोडक्शन के रूप में मिला।
जब इस प्रोडक्शन ने फिल्म की कहानी सुनी तो तुरंत इसकी हामी भर दी। फिल्म का अनुबंध हो चुका है। इसके प्रोड्यूसर गिरिश पटेल है। कहा- यह फिल्म इस वर्ष के अंत तक लोग देख सकेंगे। बताया कि इस फिल्म पर दो साल से काम हो रहा था।
कटरा आएगी प्रोडक्शन की टीम
फिल्म राइटर के अनुसार फिल्म की शूटिंग की मुंबई में होगी। कहा कि छोटू तो जीविका के लिए मुंबई गया था उसका बचपन कटरा में बीता। गांव से मुंबई तक पहुंचने में उनका संघर्ष रहा है जिसे फिल्म में लोग देखेंगे। फिल्म प्रोडक्शन की टीम कटरा पहुंचेगी। उसके संघर्ष को जानेगी और इस फिल्म में उतारेगी।
कटरा के लोगों में छाई खुशियां
छोटू ने जिस बहादुरी के साथ लोगों की जान बचाई और उसके इसके किस्से को फिल्म में उतारने से कटरा के लोगों में खुशियां छाई हुई है। सभी उसकी बहादुरी की प्रशंसा कर रहे है। लोगों को उस फिल्म का बड़े ही बेसब्री से इंतजार है।
बेहद गरीबी में बीता बचपन
डुमरी निवासी अब्दुल कलाम का 35 वर्षीय पुत्र मो. तौफिक अपने छह भाई-बहनों में सबसे बड़ा है। बचपन उसका पिता के साये में कटिहार में गुजरा। पिता वहां कबाड़ का धंधा करते थे जिसमें वह हाथ बंटाता था। लगभग 15 वर्ष पूर्व आजीविका की तलाश में तौफिक मुंबई पहुंचा। कोई बड़ा काम नहीं मिलने पर वी टी स्टेशन के पास चाय बेचने लगा। इसी कारोबार के सहारे घर की माली हालत को सुधारने का प्रयास करता रहा। पिता अस्वस्थ होने के बाद घर आ गए। मां नाजनी बेगम गृहणी हैं और तीन बच्चों के साथ घर पर ही रहती हैं। वे जीर्ण शीर्ण फूस व ईंट से बने घर में रहती हैं। उनके पास कोई जमीन-जायदाद नहीं है और कबाड़ का धंधा ही कमाई का जरिया है। निहायत गरीबी की जिंदगी से जूझ रहे पिता अक्सर अस्वस्थ रहते हैं।
भतीजे की बहादुरी पर गर्व
तौफिक की दो बीबी है और दोनों उसके साथ मुंबई में ही रहती हैं। दोनों बीबी से 5 बेटियां हैं जिन्हें पढ़ा लिखा रहा है। संयोगवश जब यह प्रतिनिधि उनके घर डुमरी पहुंचा तो माता-पिता नहीं मिले। मालूम हुआ कि वे कटिहार किसी काम से गए हैं। अलबत्ता घर पर उसके चाचा अब्दुल सलाम मिल गए जो मवेशी का चारा लेकर लौटे ही थे। उनसे तौफिक के बाबत विचार शेयर किया तो गर्व से फुल उठे।
उन्होंने कहा कि हमें अपने भतीजे की बहादुरी पर फख्र्र है। दूसरों की जान बचाने में जिसने दिलेरी दिखाई, ऐसी औलाद से हमारे खानदान का नाम रोशन हुआ। उन्होंने बताया कि वह बचपन से ही बहादुर और हिम्मती है। 26 नवंबर 2008 को मुंबई में हुए आतंकी हमले से परिवार के लोग सिहर उठे थे। लेकिन फोन से जब पुत्र से बात हुई और उनके कारनामों को सुना तो खुशी से उछल पड़े। बताया कि इस आतंकी हमले में चाय बेचने वाले लड़के ने कई जानें बचाई तथा आश्रय दिया।
नहीं मिला कोई इनाम, बमुश्किल हो पाता निर्वाह
डुमरी जैसे अतिपिछड़े गांव में जन्म लेने वाले युवक बहादुरी और देशभक्ति का परिचय दिया। भावुक होकर कह पड़े कि हमारे बेटे ने इस धरती का कर्ज चुका दिया। ग्रामीणों ने उसके बारे में कई कहानियां सुनाई। साथ ही उन्हें मलाल है कि सरकार ने उसे कोई इनाम नहीं दिया और रहने को घर भी नहीं है। ग्रामीण मो. अरमान ने बताया कि अबतक पीएम आवास योजना से एक घर मिला है जिसमें आठ बच्चे सहित दंपती का निर्वाह बमुश्किल हो पाता है।
छोटू मुंबई में स्टेशन पर चाय बेचने का करते काम
26 नवंबर 2008 को छोटू ने हमले के दौरान कई लोगों की जान बचाई थी। इस दौरान उन्होंने अपनी जान की परवाह नहीं की थी। आज उस हमले को करीब दस वर्ष हो चुके है। छोटू आज भी उसी स्टेशन पर चाय बेचकर अपनी जीविका चलाते है। कटरा के डुमरी गांव का रहने वाले छोटू की बहादुरी पर महाराष्ट्र सरकार, रेलवे सहित कई विभाग ने उसे सम्मानित किया है। अपने उपर बन रही फिल्म को लेकर छोटू ने कहा- जिस वक्त हमला हुआ था उस वक्त उसे जो सही लगा वह किया। उसपर आधारित फिल्म का बनना मेरे लिए गौरव की बात है।
निकेतन सावंत ने लिखी है छोटू की कहानी
छोटू की बहादुरी की कहानी मुंबई के फिल्म राइटर निकेतन सावंत ने लिखी है। उनके अनुसार जब उन्हें छोटू की कहानी की जानकारी हुई तो कहा कि इससे बेहतर स्टोरी नहीं हो सकती। बताया कि वे रेलवे स्टेशन से लेकर उसकी चाय की दुकान पर कई बार गए है। अब कहानी के साथ पूरी पटकथा तैयार है। छोटू पर फिल्म बनाने के लिए कई प्रोड्यूसर इच्छुक थे लेकिन मुझे बड़े बैनर का इंतजार था जो जिरकॉन फिल्म प्रोडक्शन के रूप में मिला।
जब इस प्रोडक्शन ने फिल्म की कहानी सुनी तो तुरंत इसकी हामी भर दी। फिल्म का अनुबंध हो चुका है। इसके प्रोड्यूसर गिरिश पटेल है। कहा- यह फिल्म इस वर्ष के अंत तक लोग देख सकेंगे। बताया कि इस फिल्म पर दो साल से काम हो रहा था।
कटरा आएगी प्रोडक्शन की टीम
फिल्म राइटर के अनुसार फिल्म की शूटिंग की मुंबई में होगी। कहा कि छोटू तो जीविका के लिए मुंबई गया था उसका बचपन कटरा में बीता। गांव से मुंबई तक पहुंचने में उनका संघर्ष रहा है जिसे फिल्म में लोग देखेंगे। फिल्म प्रोडक्शन की टीम कटरा पहुंचेगी। उसके संघर्ष को जानेगी और इस फिल्म में उतारेगी।
कटरा के लोगों में छाई खुशियां
छोटू ने जिस बहादुरी के साथ लोगों की जान बचाई और उसके इसके किस्से को फिल्म में उतारने से कटरा के लोगों में खुशियां छाई हुई है। सभी उसकी बहादुरी की प्रशंसा कर रहे है। लोगों को उस फिल्म का बड़े ही बेसब्री से इंतजार है।
बेहद गरीबी में बीता बचपन
डुमरी निवासी अब्दुल कलाम का 35 वर्षीय पुत्र मो. तौफिक अपने छह भाई-बहनों में सबसे बड़ा है। बचपन उसका पिता के साये में कटिहार में गुजरा। पिता वहां कबाड़ का धंधा करते थे जिसमें वह हाथ बंटाता था। लगभग 15 वर्ष पूर्व आजीविका की तलाश में तौफिक मुंबई पहुंचा। कोई बड़ा काम नहीं मिलने पर वी टी स्टेशन के पास चाय बेचने लगा। इसी कारोबार के सहारे घर की माली हालत को सुधारने का प्रयास करता रहा। पिता अस्वस्थ होने के बाद घर आ गए। मां नाजनी बेगम गृहणी हैं और तीन बच्चों के साथ घर पर ही रहती हैं। वे जीर्ण शीर्ण फूस व ईंट से बने घर में रहती हैं। उनके पास कोई जमीन-जायदाद नहीं है और कबाड़ का धंधा ही कमाई का जरिया है। निहायत गरीबी की जिंदगी से जूझ रहे पिता अक्सर अस्वस्थ रहते हैं।
भतीजे की बहादुरी पर गर्व
तौफिक की दो बीबी है और दोनों उसके साथ मुंबई में ही रहती हैं। दोनों बीबी से 5 बेटियां हैं जिन्हें पढ़ा लिखा रहा है। संयोगवश जब यह प्रतिनिधि उनके घर डुमरी पहुंचा तो माता-पिता नहीं मिले। मालूम हुआ कि वे कटिहार किसी काम से गए हैं। अलबत्ता घर पर उसके चाचा अब्दुल सलाम मिल गए जो मवेशी का चारा लेकर लौटे ही थे। उनसे तौफिक के बाबत विचार शेयर किया तो गर्व से फुल उठे।
उन्होंने कहा कि हमें अपने भतीजे की बहादुरी पर फख्र्र है। दूसरों की जान बचाने में जिसने दिलेरी दिखाई, ऐसी औलाद से हमारे खानदान का नाम रोशन हुआ। उन्होंने बताया कि वह बचपन से ही बहादुर और हिम्मती है। 26 नवंबर 2008 को मुंबई में हुए आतंकी हमले से परिवार के लोग सिहर उठे थे। लेकिन फोन से जब पुत्र से बात हुई और उनके कारनामों को सुना तो खुशी से उछल पड़े। बताया कि इस आतंकी हमले में चाय बेचने वाले लड़के ने कई जानें बचाई तथा आश्रय दिया।
नहीं मिला कोई इनाम, बमुश्किल हो पाता निर्वाह
डुमरी जैसे अतिपिछड़े गांव में जन्म लेने वाले युवक बहादुरी और देशभक्ति का परिचय दिया। भावुक होकर कह पड़े कि हमारे बेटे ने इस धरती का कर्ज चुका दिया। ग्रामीणों ने उसके बारे में कई कहानियां सुनाई। साथ ही उन्हें मलाल है कि सरकार ने उसे कोई इनाम नहीं दिया और रहने को घर भी नहीं है। ग्रामीण मो. अरमान ने बताया कि अबतक पीएम आवास योजना से एक घर मिला है जिसमें आठ बच्चे सहित दंपती का निर्वाह बमुश्किल हो पाता है।
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