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प्रतिभा के आगे बौना हुआ छोटा कद, सात साल से पढ़ाने का कर रहे काम

महज 42 इंच के डॉ. गौतम अपनी प्रतिभा के बल पर असिस्टेंट प्रोफेसर, पूर्व राष्ट्रपति डॉ. कलाम से मिलने के बाद बदल गई जिंदगी की दिशा।

By Ajit KumarEdited By: Published: Wed, 20 Feb 2019 08:47 PM (IST)Updated: Thu, 21 Feb 2019 09:20 AM (IST)
प्रतिभा के आगे बौना हुआ छोटा कद, सात साल से पढ़ाने का कर रहे काम
प्रतिभा के आगे बौना हुआ छोटा कद, सात साल से पढ़ाने का कर रहे काम

दरभंगा, [राजीव रंजन झा]। इरादा अगर पक्का हो तो कोई भी बाधा सफलता की राह में रोड़ा नहीं बन सकती। महज 42 इंच लंबे 36 वर्षीय डॉ. गौतम कुछ ऐसे ही हैं। भले ही उनका कद छोटा है, लेकिन प्रतिभा के चलते वह बौना साबित हो रहा। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. कलाम की प्रेरणा से वे असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। भाइयों व बहन को पढ़ाकर राह दिखाने के साथ दिव्यांगों के लिए भी काम कर रहे।

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बेगूसराय के विक्रमपुर निवासी डॉ. गौतम वर्ष 2012 से ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के दीवान बहादुर कामेश्वर नारायण कॉलेज, नरहन, समस्तीपुर में बीएड के असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। इससे पहले दो साल तक प्लस टू स्कूल में अध्यापन किया। छात्रों में ये बहुत लोकप्रिय हैं। इनकी देखरेख में कई एजुकेशन में पीएचडी कर रहे।

सर्कस में जाने की देते थे सलाह

किसान रामनरेश सिंह के पुत्र गौतम को बचपन में लोग सर्कस में जाने की सलाह देते थे। लेकिन, वे कुछ अलग करना चाहते थे। इसके लिए खुद को पढ़ाई के लिए समर्पित कर दिया। स्नातक किया। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम 26 मई 2005 में पटना आए तो वे मिलने पहुंच गए। केवल चार मिनट का समय तय था। लेकिन, इनकी प्रतिभा देख डॉ. कलाम ने 16 मिनट तक बात की।

    इन्होंने पूर्व राष्ट्रपति से नौकरी की मांग की तो उन्होंने बीएड-एमएड के बारे में पूछा। इन्होंने बिहार में शिक्षण संस्थानों की कमी, अपनी गरीबी व विकलांगता के विषय में बताया। तब डॉ. कलाम ने इन्हें उत्तर प्रदेश के चित्रकूट स्थित विश्वविद्यालय के बारे में बताया, जो दिव्यांगों के लिए है। डॉ. कलाम ने इन्हें विजन, मिशन एवं गोल के निर्धारण का मंत्र दिया। उन्होंने चित्रकूट विश्वविद्यालय से बीएड व एमएड किया। 2010 में एजुकेशन विषय से नेट की परीक्षा पास की।

    गौतम को कल तक जो समाज परिवार के लिए समस्या मानता था, आज वही मिसाल देता है। तीन भाइयों में सबसे बड़े गौतम ने दूसरे भाई को बीएड तक की शिक्षा दिलाकर व्यवसाय शुरू कराया। छोटे भाई माधव को एमटेक कराया। वे आज इंजीनियर हैं। बहन को शिक्षित कर टीचर बनाया।

मंच संचालन में भी अलग पहचान

गौतम प्रत्येक रविवार को किसी एक दिव्यांग से मिलकर उसकी समस्या सुनते और समाधान का प्रयास करते। इसे उन्होंने 'दर्द-ए-दिल की दास्तान नाम दिया है। इसके जरिए कई दिव्यांगों को राह दिखाई है। मंच संचालन व अभिभाषण में भी इनकी अलग पहचान है। बीएड द्वितीय वर्ष के छात्र अजीत कुमार, अर्चना भारती, अजय भूषण का कहना है कि जब पहली बार डॉ. गौतम से मिले तो थोड़ा अटपटा लगा। लेकिन, उनके ज्ञान के स्तर ने सभी छात्रों को उनका मुरीद बना दिया।

अविवाहित रह समाजसेवा को जीवन का उद्देश्य बनाने वाले डॉ. गौतम कहते हैं, कद के कारण अब लोग मजाक नहीं उड़ाते, बल्कि सम्मान देते हैं। उनके कॉलेज के प्राचार्य प्रो. श्यामाकांत झा उन्हें विलक्षण प्रतिभा काधनी मानते हैं। वे कहते हैं, वर्ग कक्ष में उनका प्रदर्शन अद्भुत है।


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