Shanshkarshala: स्क्रीन टाइम का अनुशासन : इसको लेकर गंभीरता से विचार करने का समय आ गया
Shanshkarshala अभिभावकों को भी चाहिए कि जब आप बच्चों के साथ हों तो उनके साथ अधिक से अधिक समय बिताएं न कि स्क्रीन टाइम पर जोर दें। बच्चों को अपडेट रहने के क्रम में अधिक समय स्क्रीन पर देने से उससे होने वाले नकारात्मक प्रभाव की भी जानकारी दें।
स्क्रीन टाइम का रखना चाहिए विशेष ध्यान: समाज के लोग समय के साथ स्वयं को अपडेट रखने के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहते हैं। कोरोना काल में जब हम घरों में कैद हो गए थे तो डिजिटल दुनिया में लोगों की भागीदारी बढ़ी। कहीं बाहर नहीं निकल पाने के कारण उसमें समय देने लगे, लेकिन हमें कितना इसका उपयोग करना चाहिए यह भूल गए। इसके दुष्परिणाम भी दिख रहे हैं। हमें डिजिटल दुनिया में स्क्रीन टाइम का विशेष ध्यान रखना चाहिए। वहीं हमें अपने संस्कारों को भी नहीं भूलना चाहिए। हाल ही में हांगकांग में छह से आठ वर्ष के बच्चों पर हुए शोध से डराने वाला सच सामने आया है। इस शोध का दावा है कि स्क्रीन टाइम पर अधिक समय बिताने से बच्चों की देखने की शक्ति प्रभावित हुई है। यह शोध ब्रिटिश जर्नल आफ आप्थेलमोलाजी में प्रकाशित हुई है।
रामेश्वर सिंह कालेज के प्राचार्य डा.अभय कुमार सिंह ने कहा कि आस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स के वैज्ञानिक ने अनुमान लगाया है कि अगले तीन दशक में दूर दृष्टि नजर संबंधी तकलीफ के रोगी सात गुणा बढ़ जाएंगे। बच्चों को जीवन में संतुलन व अनुशासन की जरूरत होती है। स्क्रीन टाइम बढ़ने के कारण बच्चों में चिड़चिड़ा व्यवहार, दोस्तों से दूरी, शारीरिक गतिविधि कम होने के साथ ही कल्पनाशील खेल के प्रति रुचि बढ़ी है। बच्चों को डिजिटल अनुशासन का ज्ञान देना भी जरूरी है। अभिभावकों को भी चाहिए कि जब आप बच्चों के साथ हों तो उनके साथ अधिक से अधिक समय बिताएं न कि स्क्रीन टाइम पर जोर दें। अभिभावकों को चाहिए कि वे बच्चों से खुलकर बात करें। बच्चों को अपडेट रहने के क्रम में अधिक समय स्क्रीन पर देने से उससे होने वाले नकारात्मक प्रभाव की भी जानकारी दें। बच्चों के साथ संवाद करने से वे स्क्रीन टाइम का सही और संतुलित उपयोग अनुशासन में रहकर कर पाएंगे। इसमें माता-पिता और शिक्षकों की भूमिका अहम हो सकती है।
नौनिहालों में अनुशासन की भावना पर कुठारघात
विद्यार्थी जीवन काल जिंदगी का प्रारंभिक समय होता है। यह समय ज्ञान प्राप्त कर पूरे जीवन को खुशियों के प्रकाश से भरने का समय होता है। यदि आप इसी समय अनुशासन के महत्व को समझ लेते हैं तो आप अपने पूरे जीवन को आसानी से सफल बना सकते हैं। आधुनिक युग में छोटे-छोटे नौनिहालों में पनपे स्क्रीन टाइम ने अनुशासन की भावना पर सबसे ज्यादा कुठाराघात किया है। अंतरराष्ट्रीय शोधों ने पुष्टि की है कि ये तथाकथित च्स्क्रीन टाइमज् गतिविधियां ज्यादातर सुस्त करने वाली होती हैं। हांगकांग के स्वास्थ्य विभाग ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशानिर्देश पर कहा है कि दो से पांच वर्ष की आयु के बच्चों के लिए स्क्रीन समय प्रति दिन एक घंटे से अधिक नहीं होना चाहिए। दो वर्ष या उससे कम उम्र के लिए जब तक माता-पिता के मार्गदर्शन में इंटरैक्टिव वीडियो-चैट न हो तब तक उन्हें किसी भी इलेक्ट्रानिक स्क्रीन उत्पादों के संपर्क में आने से रोकें। गैजेट्स पर समय को सीमित करने के लिए सभी कदम उठाते हुए माता-पिता शिक्षण को प्रभावी बनाने के लिए सही स्क्रीन उत्पादों व गतिविधियों के चयन के लिए मापदंड तय करें।
उदाहरण के लिए "उपयोग करने से पहले पिताजी-मां से पूछें", साथ ही "नो स्क्रीन"-टाइम और लोकेशन भी सेटअप करें। आज के बच्चे तकनीक-समझदार हैं। उनमें से ज्यादातर वयस्कों की तुलना में इलेक्ट्रानिक्स के बारे में अधिक जानते हैं। कोरोना काल में बच्चों का स्क्रीन टाइम एक से आठ घंटे तक बढ़ गया है। शारीरिक गतिविधियां कम हो गई हैं। इनमें एकाग्रता की कमी और चिड़चिड़ेपन को दूर करने के लिए शिक्षक, अभिभावक दोनों को मिलकर काम करने की जरूरत है। एक जैसी शिक्षा की सर्व-सुलभता, बच्चों के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य की चिंता, निजता व शांति के साथ पढ़ाई जैसी चुनौतियों की समझ व इनका समाधान कर के ही आनलाइन शिक्षा का सर्वोत्तम लाभ उठाया जा सकता है। -मनोज कुमार झा, प्राचार्य, डीएवी पब्लिक स्कूल, खबड़ा