लीची बाग में फल गिरने से बचाव का करें उचित प्रबंधन
लीची के फल बड़े होने व गिरने से बचाव के लिए सजग हो जाएं किसान।
मुजफ्फरपुर : लीची के फल बड़े होने व गिरने से बचाव के लिए सजग हो जाएं किसान। अप्रैल माह में बाग का करें बेहतर प्रबंधन राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के कार्यकारी निदेशक शेषधर पांडेय ने कहा कि अप्रैल के प्रथम सप्ताह मे लीची के प्रति पौधा के हिसाब से 300 ग्राम यूरिया एवं 200 ग्राम पोटाश को सिचाई जल के साथ प्रयोग करने से फल बड़े एवं कम गिरते हैं।
केंद्र के वरीय वैज्ञानिक डॉ संजय कुमार सिंह ने कहा कि इस बार जनवरी-फरवरी माह में आसमान साफ़ तो रहा, लेकिन वायुमंडल का अधिकतम एवं न्यूनतम तापमान मे अधिक अंतर रहा जिसके चलते लीची मे मंजर कम आए। डॉ सिंह ने कहा कि शुष्क जलवायु न होने से भी मंजर कम निकले या देर से निकले। इस बार वायुमंडलीय औसत तापमान 10-14 डिग्री सेल्सियस केवल 10 दिन ही रही। जबकि लीची के अच्छे फल के लिए कम से कम यह तापमान एक माह रहता तो लीची में अच्छे मंजर आते। इस साल बाग में अधिक समय तक पानी लगे रहने से जमीन में नमी नवंबर- दिसंबर तक बनी रही। इसके बाद लीची के बाग में नए कल्ले ज्यादा आ गए तथा मंजर भी कम निकले। डॉ सिंह ने कहा कि मुजफ्फरपुर के आस पास के जिलों में किसान छत्रक प्रबंधन नहीं कर रहे हैं जिसके चलते बाग अंधेरे में डूबा हुआ है। बाग में आवश्यकता से अधिक सापेक्षिक आद्रता बनी रहती है। इससे भी कम मंजर आते हैं। लीची की अच्छी फलत के लिए मिट्टी में नमी की कमी 45 दिनों तक रहनी चाहिए जो इस बार बहुत बाद में मिली, तबतक जाड़ा समाप्त हो चुका था।
डॉ शेषधर पांडेय ने सुझाव दिया कि फल बेधक कीट का प्रकोप का अंदेशा हो तो लैंबडा-साइलोंथ्रिन (0.5 मिलि लीटर प्रति लीटर पानी) या नोवाल्यूरान (1.5 मिलिलीटर प्रति लीटर पानी) का छिड़काव 15 दिन के अंतराल पर (बदल- बदल कर) फल लगने के एक सप्ताह बाद करें। डॉ संजय कुमार सिंह ने कहा कि आज कल मंजर के काले पड़ने, झुलस जाने कि ज्यादा समस्या पाई जा रही है। इसके लिए बागवान भाई डाइफेनकोनाजोल या अजोक्सीस्ट्रोबिन का 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी या थायोफनेट मिथायील का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी छिड़काव करें।