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सरिसवा में कभी औषधीय गुणों की भरमार, आज बना रही बीमार

रक्सौल (पूर्वी चंपारण)नेपाल और पूर्वी चंपारण के रक्सौल के लोगों की गंगा सरिसवा नदी। यह कभी कल-कल बहती थी। पानी इतना निर्मल था कि इससे भोजन पकाया जाता था। मरने से पहले इसका जल गंगा की तरह मुंह में डाला जाता था।

By JagranEdited By: Published: Fri, 08 Jun 2018 10:49 AM (IST)Updated: Fri, 08 Jun 2018 10:49 AM (IST)
सरिसवा में कभी औषधीय गुणों की भरमार, आज बना रही बीमार

मुजफ्फरपुर। रक्सौल (पूर्वी चंपारण)नेपाल और पूर्वी चंपारण के रक्सौल के लोगों की गंगा सरिसवा नदी। यह कभी कल-कल बहती थी। पानी इतना निर्मल था कि इससे भोजन पकाया जाता था। मरने से पहले इसका जल गंगा की तरह मुंह में डाला जाता था। इसमें स्नान से कुष्ठ रोग ठीक हो जाता था, लेकिन आज इसकी मौत नेपाल से लेकर भारत के लोग देख रहे हैं। उद्योगों और नालों के गंदे पानी के चलते यह नदी नाला बन बीमारी दे रही है। करीब तीन दशक से काल बनकर बह रही है।

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सरिसवा नेपाल के बारा जिले के रामपुर जंगल से निकल भारतीय सीमा रक्सौल में प्रवेश करती है। घने जंगलों एवं जड़ी-बूटियों से आच्छादित इलाके से गुजरने से इसमें औषधीय गुण आ जाते हैं। इस कारण इसके जल से चर्म रोगों का इलाज होता था। इसके तट पर रक्सौल में कुष्ठ रोगियों की चार कॉलोनियां बन गई थीं। 1981 में मदर टेरेसा के शिष्य केरल निवासी फादर क्रेस्टो दास ने यहां झोपड़ी बना कुष्ठ का इलाज शुरू किया। उन्होंने इसके पानी से कुष्ठ के निदान पर शोध भी किया।

काला और बदबूदार हो गया पानी

आज नेपाल के बारा एवं पर्सा जिले के छोटे-बड़े लगभग चार हजार कल- कारखानों का अपशिष्ट इसमें बहता है। साथ ही बीरगंज उपमहानगरपालिका के नालों का गंदा पानी भी जा रहा है। इससे नदी का पानी काला एवं बदबूदार हो गया है। इसके जल में कैडमियम, जिंक, आर्सेनिक, कॉपर व लेड के अलावा कई घातक रसायनों की मात्रा बढ़ गई है। जीव-जंतु समाप्त हो गए हैं। इसके पानी से कैंसर, पीलिया, लीवर सिरोसिस सहित अन्य बीमारियां होती हैं। नदी के आसपास रहने वाली नेपाल-भारत की करीब 10 लाख आबादी त्राहि-त्राहि कर रही है।

पानी ने पिता की ले ली जान

कालीनगरी निवासी ललन प्रसाद कहते हैं, इसके पानी से कभी भोजन बनाते थे। आज कई बीमारियां हो रही हैं। राजन यादव कहते हैं कि उनके पिता इसके पानी के चलते लीवर सिरोसिस से ग्रसित हो जान गंवा बैठे। सुंदरपुर निवासी कृष्णा का कहना है कि 1981 में कुष्ठ रोगी पिता के साथ यहां आए थे। इस नदी के पानी से बीमारी ठीक हो गई थी। पुष्पा बाई बताती हैं, पहले इसमें प्रतिदिन दीपदान करती थी। इसकी दशा से आंखें भर आती हैं।

लगातार चल रहा आंदोलन

सरिसवा बचाओ आंदोलन चलाने वाले पर्यावरणविद प्रो. डॉ. अनिल कुमार सिन्हा कहते हैं कि दिसंबर 2010 में दोनों देश के प्रधानमंत्री और पर्यावरण मंत्री को ज्ञापन भेजा गया। 10 हजार पोस्टकार्ड भारत के प्रधानमंत्री और पर्यावरण मंत्री को भेजे गए। 2011 में बिहार विधान परिषद में मामला उठा। लोकसभा में स्थानीय सासद डॉ. संजय जायसवाल ने इसे उठाया। भारतीय और नेपाली जनता सड़क पर आई तो डीएम पर्सा ने जाच कमेटी बनाई। इसने 31 जनवरी 2011 को रिपोर्ट सौंपते हुए 46 उद्योगों को चिन्हित किया। इस पर नेपाल सरकार ने 15 दिनों में कार्रवाई का निर्देश दिया, लेकिन कुछ नहीं हुआ। प्रो. सिन्हा कहते हैं, रक्सौल में यह नदी 15 किमी तक बहती है। यह सिकरहना नदी में मिलने के बाद बूढ़ी गंडक होते हुए गंगा में पहुंचती है। इससे गंगा भी प्रदूषित हो रही है। इसके प्रदूषण मुक्त होने तक आदोलन जारी रहेगा। पीएम नरेंद्र मोदी को पत्र भेजा गया है।

करोड़ों मिले, फिर भी काम नहीं

भारत सरकार की पहल पर बीरगंज महानगरपालिका के नालों से निकले पानी को रीसाइकिल करने के लिए विश्व बैंक ने 320 करोड़ रुपये दिए। इससे सीमा क्षेत्र में सीवरेज प्लाट लग रहा है। नो मेंसलैंड के निकट इन्फ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लाट की स्थापना होनी है।


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