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Saraswati puja 2021: सरस्वती पूजा और माता शबरी के हाथों भगवान श्रीराम के जूठे बेर खाने का यह है कनेक्शन

Saraswati puja 2021 माता सरस्वती के दिव्य अवतरण का मंगल सूचक है वसंत पंचमी। हर साल माघ मास के शुक्ल पक्ष के पांचवे दिन वसंत पंचमी मनाई जाती है। इस वर्ष 16 फरवरी मंगलवार को यह मनाई जाएगी।

By Ajit kumarEdited By: Published: Mon, 15 Feb 2021 07:49 AM (IST)Updated: Tue, 16 Feb 2021 08:17 AM (IST)
शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी से उल्लेखित किया गया है।

पूर्वी चंपारण, जासं। Saraswati puja 2021: हिन्दू पंचांग के मुताबिक हर साल माघ मास के शुक्ल पक्ष के पांचवे दिन यानी पंचमी तिथि को वसंतपंचमी मनाई जाती है। आयुष्मान ज्योतिष परामर्श सेवा केन्द्र के संस्थापक साहित्याचार्य ज्योतिर्विद आचार्य चन्दन तिवारी ने बताया कि इस वर्ष 16 फरवरी मंगलवार को यह मनाई जाएगी। इस दिन मां देवी सरस्वती की आराधना की जाती है। इस ऋतु में प्रकृति का सौंदर्य मन को मोहित करता है। इस ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पांचवे दिन भगवान विष्णु और कामदेव की पूजा की जाती है, जिससे यह बसंत पंचमी का पर्व कहलाता है। शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी से उल्लेखित किया गया है। बसंत पंचमी को श्रीपंचमी और सरस्वती पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। बसंत पंचमी के दिन को देवी सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है।

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बसंत पंचमी कथा

सृष्टि रचना के दौरान भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की। ब्रह्माजी अपने सृजन से संतुष्ट नहीं थे। उन्हें लगा कि कुछ कमी है जिसके कारण चारों ओर मौन छाया है। विष्णु से अनुमति लेकर ब्रह्मा ने अपने कमण्डल से जल का छिड़काव किया, पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही कंपन होने लगा। इसके बाद वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति प्रकट हुई। यह शक्ति एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री थी। जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरे हाथ में वर मुद्रा था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। ब्रह्माजी ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हुई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हुआ। पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब ब्रह्माजी ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा। सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है।

बसंत पंचमी का महत्त्व

पंचमी बसंत का पौराणिक महत्त्व रामायण काल से जुड़ा हुआ है। जब मां सीता को रावण हर कर लंका ले जाता है तो भगवान श्री राम उन्हें खोजते हुए जिन स्थानों पर गए थे उनमें दंडकारण्य भी था। यहीं शबरी नामक भीलनी रहती थी। जब राम उसकी कुटिया में पधारे, तो वह सुध बुध खो बैठी और प्रेम वश चख चखकर मीठे बेर राम जी को खिलाने लगी। कहते हैं कि गुजरात के डांग जिले में वह स्थान आज भी है जहां शबरी मां का आश्रम था। बसंत पंचमी के दिन ही रामचंद्र जी वहां पधारे थे। आज भी उस क्षेत्र के वनवासी एक शिला को पूजते हैं, जिसमें उनकी श्रध्दा है कि भगवान श्रीराम आकर यहीं बैठे थे। यहां शबरी माता का मंदिर भी है।

बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा भी की जाती है। मां सरस्वती ज्ञान की देवी मानी जाती है। गुरु शिष्य परंपरा के तहत माता-पिता इसी दिन अपने बच्चे को गुरुकुल में गुरु को सौंपते थे। यानी बच्चों की औपचारिक शिक्षा के लिए यह दिन बहुत ही शुभ माना जाता है। विद्या व कला की देवी सरस्वती इस दिन मेहरबान होती हैं इसलिए उनकी पूजा भी की जाती है। कलाजगत से जुड़े लोग भी इस दिन को अपने लिए बहुत खास मानते हैं। जिस तरह सैनिकों के लिए उनके शस्त्र और विजयादशमी का पर्व, उसी तरह और उतना ही महत्व कलाकारों के लिए बसंत पंचमी का है। चाहे वह कवि, लेखक, गायक, वादक, नाटककार हों या नृत्यकार, सब इस दिन का प्रारम्भ अपने उपकरणों की पूजा और मां सरस्वती की वंदना से करते हैं।


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